ना जाने क्यों
ये मन
मौसम हो आया है |
जब गर्म हवाएं चलती है
लू सबको झुलसाती है
घर के एसी ,कूलर भी
गरम हवाएं देते हैं
इस मन का क्या हाल कहें
मुरझाई ककड़ी जैसा है|
जब पारा कमहो जाता है
सर्द हवाएं चलती है
जाडे की लंबी रातें
बातों में कट जाती है
यह मन जाने क्यों
भुनी मूंगफली होता है|
जब आती बरखा रानी है
और चाय पकौड़ी चलती है
बरसाती रातों में मन
जाने क्यों भीगा-भीगा है|
पतझड़ का मौसम आया है
पीले पत्तों से बाग अटे
चर-चर मर-मर ध्वनियों से
अपने ही पागल कान ढके
मन भी झरता-झरता सा है|
बासंती मौसम आया है
पीपल की लाल नई कोंपल
मेरे मन को भा गईहै
मन हरियाला सावन है
अब हवा भी देखो महक उठी
आँगन अपना सरसाया है
मन मौसम हो आया है|