बदलती घटनाओं से
कभी चमत्कृत होती
तो कभी संशय में आजाती हूँ|
दरअसल घटनाएँ जिस रूप में
मोड लेरही हैं आजकल
उसे क्या नाम दूं |
बरसों के भटके रिश्ते
बड़ी आत्मीयता जता रहे हैं
और वे नाते जिन्हें
इतने यत्नों से पाला पोषा
आज नज़रों से ओझल
होते जा रहे है|
मानो अब उनका टर्म
समाप्त होरहा हो |
आदतन सहज विशवास
कर ही लेती हूँ
बड़ी से बड़ी घटना पर|
पर रिश्तों का ये प्रत्यावर्तन
मुझे उलझन में
उलझा रहा है |
और मै अवश सी सब कुछ
ऐसे स्वीकारती हूँ
मानो ये सब नियति का हिस्सा है |
औरमुझे अब ये ही रोल अदा
करना है |
Sunday, April 24, 2011
Thursday, April 14, 2011
कब तक पुकारू ?
ये कैसी कठिन परीक्षा
मेरे प्रभु
मैं तो पुकार- पुकार
कर थक चुकी
पर तुम न आये |
मेरा विश्वास
अभी भी
जस का तस है
कि
प्रभु सच्चे मन
की पुकार सुनते तो जरुर होंगे|
पर अब तो गले से बोल भी नहीं फूटते
मैं शांत,अविचल और निश्चिंत
आज भी तेरी ही
राह तकती हूँ
क्या पता न जाने
कब और कहाँ से तेरा
आगमन हो
और मुरझाई बेल
फिर से पल्लवित हो जी उठे|
मेरे प्रभु
मैं तो पुकार- पुकार
कर थक चुकी
पर तुम न आये |
मेरा विश्वास
अभी भी
जस का तस है
कि
प्रभु सच्चे मन
की पुकार सुनते तो जरुर होंगे|
पर अब तो गले से बोल भी नहीं फूटते
मैं शांत,अविचल और निश्चिंत
आज भी तेरी ही
राह तकती हूँ
क्या पता न जाने
कब और कहाँ से तेरा
आगमन हो
और मुरझाई बेल
फिर से पल्लवित हो जी उठे|
Friday, April 1, 2011
हम कौन खेत की मूली है ?
रुकावटें नहीं हटतीं तो न हटें
सफलताएं नही मिलतीं तो न मिलें
अपने पराए होते हों तो होते रहें
खजाने खाली होते हों तो हुआ करें
दोस्त मुँह फेरते हो तो फेरते रहें
मुझे सच में कुछ भी बुरा नहीं लगता |
बस मेरा विश्वास
मेरी मान्यताएं
मेरे संस्कार
मेरी लेखनी
मेरा उत्साह
मेरे आदर्श
मेरा सकारात्मक सोच
कहीं भी और किसी भी परिस्थिति में
मेरा दामन न छोड़े|
चलती रहूँ सत्यपथ पर
न सूखे मेरी ममता का स्रोत|
और कम से कम हिम्मत
तो जबाव न दे
तो देखना ये छोटी छोटी बाधाएं
ये गहराते से संकट
ये लम्बी चुप्पी
ये दोगली सामाजिकता
ये दोहरे व्यक्तित्व
भला क्या बिगाड़ पायेंगे
सिवाय इसके कि स्वयं ही
अडिग पत्थरों से
टकरा- टकरा कर
खुद अपना अस्तित्व खो दें|
और सच ,
गर्वोन्नत सच
अपनी तेजोमय गरिमा के साथ
अपनी धारदार प्रखरता के बल पर
फिर से प्रतिष्ठित
होगा इस भूतल पर |
धैर्य तो रखो बंधु
ज़रा विश्वास तो रखो|
जब राम ,मर्यादा पुरुषोत्तम राम
अकारण ही चौदह वर्ष
का वनवास झेलते हैं |
और पांडव वन-वन मारे फिरते हैं
योगीराज कृष्ण के जन्म से पूर्व
ही कंस क्रूर बन जाता है|
विवेकानंद और दयानंद भी
नहीं बखसे जाते तो
भला हम कौन
खेत की मूली है ?
सफलताएं नही मिलतीं तो न मिलें
अपने पराए होते हों तो होते रहें
खजाने खाली होते हों तो हुआ करें
दोस्त मुँह फेरते हो तो फेरते रहें
मुझे सच में कुछ भी बुरा नहीं लगता |
बस मेरा विश्वास
मेरी मान्यताएं
मेरे संस्कार
मेरी लेखनी
मेरा उत्साह
मेरे आदर्श
मेरा सकारात्मक सोच
कहीं भी और किसी भी परिस्थिति में
मेरा दामन न छोड़े|
चलती रहूँ सत्यपथ पर
न सूखे मेरी ममता का स्रोत|
और कम से कम हिम्मत
तो जबाव न दे
तो देखना ये छोटी छोटी बाधाएं
ये गहराते से संकट
ये लम्बी चुप्पी
ये दोगली सामाजिकता
ये दोहरे व्यक्तित्व
भला क्या बिगाड़ पायेंगे
सिवाय इसके कि स्वयं ही
अडिग पत्थरों से
टकरा- टकरा कर
खुद अपना अस्तित्व खो दें|
और सच ,
गर्वोन्नत सच
अपनी तेजोमय गरिमा के साथ
अपनी धारदार प्रखरता के बल पर
फिर से प्रतिष्ठित
होगा इस भूतल पर |
धैर्य तो रखो बंधु
ज़रा विश्वास तो रखो|
जब राम ,मर्यादा पुरुषोत्तम राम
अकारण ही चौदह वर्ष
का वनवास झेलते हैं |
और पांडव वन-वन मारे फिरते हैं
योगीराज कृष्ण के जन्म से पूर्व
ही कंस क्रूर बन जाता है|
विवेकानंद और दयानंद भी
नहीं बखसे जाते तो
भला हम कौन
खेत की मूली है ?
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