Friday, April 24, 2009
बच्चे मन के सच्चे
कहने को तो ये गाने की एक पंक्ति है पर इसकी सच्चाई उस समय मालूम होती है जब आप किसी बच्चे के साथ अपने को जोड लेते है और उसके मन को समझने का प्रयास करते हैं। ऐसी ही एक घटना मेरे साथ घटी जिसे मएं आपके साथ शेअर करना चाहती हूं।
Saturday, April 11, 2009
मासूम बचपन

मासूम बचपन ,बेचारा बचपन, अभागा बचपन, माता-पिता के प्यार से वंचित बचपन, ,चाय के झूठे प्याले धोता बचपन,भीख मांगता बचपन, बडो की डांट फटकार खाता बचपन ,बस्तो के बोझ से लदा बचपन ,अधिक अंक लाने की होड मे खुद से जूझता
प्रदर्शन ,आदर्श के नाम पर फिल्मी हीरो –हीरोइन का नाम,संस्कृति के नाम पर पाश्चात्यमूल्यो का पोषण,मॉ –पिता के बदलते संस्करण मोम-डैड ,सिस मे बदलती बहना
अंकल और आंटी मे बदलते चाचा-चाची,ताऊ-ताइ,मौसा-मौसी,बुआ-फूफा, कजिन मे बदलते ,ममेरे ,ततेरे,फुफेरे,मौसेरे,चचेरे भाई-बहिन|
क्या आपका बच्चा भी इन सब स्थितियों होकर गुजर रहा है तो सावधान होने की जरुरत है।दरअसल ये वे मूल्य हैं जिन्हें हम और आप जाने-अनजाने अपने बच्चोंमें संक्रमित करते रहते हैं।हमारा अपना व्यवहार माता-पिता के रुप में आदर्श नहीं होता ।हम अपनी कथनी और करनी को एक नहीं कर पाते ।उपदेश की भाषा बडी आलंकारिक और आदर्श से युक्त होती है पर हमारा व्यवहार कुछ और ही संकेत करता है।बच्चे जिन्हें हम छोटे और नादान मानकर चलते हैं बडी सूक्ष्मता और ध्यानपूर्वक् माता पिता के व्यवहार का निरीक्षण करते हैं। एक तरह से कहें तो अपने बच्चों को चोरी ,झूठ और फरेब हम ही सिखाते हैं।कभी हम व्यवहारिकता के चलते तो कभी स्वार्थ वश ऐसा करते है पर बच्चा उसी घटना को मिसाल मान लेता है। रिश्तेदारों के आगे हम अपने बच्चे की प्रशंसा करवाने के लिये उसे गीत, कविता ,गिनती ,वर्णमाला,और उसे जो भी नया आता है सुनाने के लिये कहते हैं।यदि बच्चा ऐसा नहीं करता तो डांटडपट कर बाध्य कर देते हैं। सच मानिये बच्चाभी अपना एक मन रखता है जिसे गाहे बगाहे स्वीकृति मिलनी ही चाहिये।बच्चों की मनस्थिति समझ कर ही नाजुक उम्र में उन्हें संस्कारित किया जा सकता है।
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