Tuesday, July 27, 2010

सावन तो आयो है

फिर आया मनभावन सावन
याद आ गया बाबुल का आँगन
पीपल सरिस पे झूला डल गए
माजी की बांछे अब खिल गई |
आयेगी अब बिटिया रानी
घर भर में खुशिया दौडेंगी
साबन की मल्हारे गूंजेगी |
भैया जी मगन हो गए
बहना का अब लाड मिलेगा
बचपन फिर किलकारी लेगा |
सोच सोच कर सब ही खुश थे
पर ये कैसा सावन आया
बुंदिया बरसी मेहदी रच गई
पर प्यारी लाडो न आई |
अब आया था उसका मेल
मैया बापू दुखी हो गए
देख के बिटिया का येखेल |
सावन बावन क्या होता है
झूले तो अब बीत गए है
अब सब ये है बीती बातें |
अब तो मैं हूँ क्लब में जाती
हरे रंग की साडी पहने
हरियाली तीजे मनती है|
झूला ,पटली और मल्हारे
किसको अब अच्छी लगती है |
सावन आये भादों जाए
क्या मतलब अब इन बातों का
हमने तो इतना जाना है
तीन ही ऋतुएं होती है अब
जाड़ा ,गर्मी और बरसात |

Friday, July 23, 2010

प्राथमिक शिक्षा ही पूरी शिक्षा व्यवस्था की नींव है।

बडे दुख का विषय है कि अभिभावक अपने पाल्यों की प्राथमिक शिक्षा के प्रति सतर्क नहीं है।इसे अक्षर ज्ञान के अतिरिक्त और कुछ नहीं माना जाता जबकि सारी इमारत इसी नीव पर आधारित होती है।किस कक्षा को पढाती हो ,क्या कहा पहली दूसरी को तब तो समझो तुम कुछ नही कर रही हो । तुम्हारे तो मजे ही मजे है ।बस अपना टाइम पास किये जाओ । इन टिप्पणियों को सुनते-सुनते तो मुझे भी एकबारगी यही लगने लगा कि बच्चों को अक्षर ज्ञान देना बहुत ही सरल कार्य है ।शायद यही कारण हो इन प्राथमिक शालाओ के अध्यापको को विशेष तरजीह नहीं दी जाती।उसे केवल पट्टी ,स्लेट अथवा कापी पर किटकिन्ना डालने वाला मान लिया गया । बहुत हुआ तो सामूहिक रूप से गिनती या पहाडे बुलबाने के लिये अधिक्रत मान लिया गया।
जब मैं अपने बी.एड. प्रशिक्षणार्थियो के साथ प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं मे गई तो कमोवेश मैंने गुरुजी का यही रूप देखा ।कक्षा मे एक बच्चे को खडा कर दिया और वह सभी बच्चों को सामूहिक अभ्यास करवा रहा है और गुरूजी अपने अन्य कार्य में व्यस्त हैं |बहुत हुआ तो एक डंडा उठाकर बच्चों पर फटकार दिया और चुप होने का निर्देश दे दिया |
जिस समय में बच्चे को गुरूजी का स्नेह ओर व्यक्तिगत निर्देशन चाहिए था ,वह कीमती समय केवल चुप बैठने में बीत गया | किसी तरह से पहली दूसरी तीसरी और अन्य कक्षाएं चढता गया पर न तो उसे शुद्ध लिखना आया और न पढना| और हम अध्यापक बस बच्चे में दोष देखते रहे |जब मैंने प्रयास में बच्चों को अक्षर ज्ञान देना प्रारम्भ किया ,तब पाया कि एक व्यक्ति ढेरों भूलें इसलिए करता है क्योंकि वह उसका सही रूप जानता तक नहीं |
मात्राओं का ज्ञान और संयुक्त वर्ण बनाना सिखाते समय यदि सावधानी बरती जाती तो आज ये त्रुटियाँ नहीं होती| जिस समय में मूल्योंका विकास किया जा सकता था ,वह समय बहुत बोझिल पाठ्यक्रम की भेंट चढ गया |हम अपने बच्चों को अंकों की अधिकता से ही नापते रहे और बच्चों के कंधे भारी बस्ते के बोझ तले दब कर झुकते चले गए|मासूम बचपन जो कहानियों का भूखा होता है पता नहीं बड़ी –बड़ी बातों को जानने में चूक गया| वह अपनी कोलोनी और अपने परिवेश से अपरिचित ही रह गया और हम उसे देश और विदेश के पाठ रटाते रहे| वह अपनी मात्रभाषा पर पकड़ नहीं बना पाया और हम उसे आर ए टी रेट और केट ही रटाते रहे |
जो समय उसे छोटे –छोटे गीत सिखाने का था उसमें हमने अश्लील और द्विअर्थी गानों पर ठुमकना सिखा दिया और इतराते रहे कि हमारा बालक आधुनिकता के सारे पैमानों पर खरा उतर रहा है |हमने उसे स्वतन्त्र व्यक्तित्व माना ही कब उसे लेकर हम अपने सपनों को पूरा करते रहे| उसकी क्या योग्यताएं है ,वह किस क्षेत्र में अपनी प्रतिभाओं का प्रदर्शन कर कुशल बन सकता था यह सब तो हमारे लिए बहुत गौण हो गया|हमने अपने स्तर को मेंटेन रखने के लिए सब कुछ तय कर लिया | हमने उस विद्यालय केवातावन को जानने की कोशिश भी नहीं की जहाँ हमारा लाडला दिन का एक महत्वपूर्ण समय बिताने जा रहा था |
क्या अपने पाल्य की शिक्षा –दीक्षा को लेकर हमें सजग नहीं हो जाना चाहिए ?बच्चे के घर लौटनेपर कितनी सारी बातें होती हैं जिन्हें वह अपने माता-पिता को बताना चाहता है ,क्या बच्चों का होमवर्क करवाना देना अथवा उसके लिए भी किसी ट्यूटर की व्यवस्था कर देना काफी है? क्या आपका बच्चा स्कूल से लौटकर यह नहीं चाहता कि आप उसका सर सहलाते हुए उससे बातें करें | यदि वह किसी दिन्स्कूल नहीं जाना चाहता तो उसकी भी कोई निशिचित वजह होती है| हो सकता है वह स्वयं अपने से परेशान हो आप उसकी सभी बातों को सुनने के लिए समय निकालें और उसकी परेशानियों पर ध्यान दें |
ये कुछ छोटी-छोटी बातें हैं जिनके प्रति अभिभावकों को सतर्क होना बहुत जरूरी
है|अपने बच्चों पर केवल पैसा खर्च कर ही हम माता- पिता के दायित्व से मुक्त नहीं हो सकते||

Wednesday, July 14, 2010

मेरी पाठशाला

नन्हे-नन्हे ये शिशु
अपनी तुतलाती भाषा में
जब कहते है
दीदी हम तो खेलेंगे
पढेंगे नहीं |
तब मैं अकसर सोचने पर विवश
हो जाती हूँ
क्या गलत कहते हैं
शुभम,शाहीन और सोनिया |
ये उम्र ही खिलंदड़ी की है
जब हम जबरन उन्हें अ से अनार और
आ से आम रटाते है
और वह बोलने के बजाय अनार और
आम खाने की फरमायश करते है |
ल से लट्टू सिखाने पर
लट्टू चलाने की जिद
तो प से पतंग उसे आकाश
में उडती नजर आती है \
रेट माने चूहा और
केट माने बिल्ली कहते ही
वे नन्हे -मुन्ने चूहें बिल्ली की
अपनी ढेर सारी बातें
मसलन दीदी बिल्ली सारा दूध पी गई
और चूहे ने मेरा कपड़ा
कुतर दिया |
बों बतराना चाहते है|
और कमाल है
इन की बातें कोई
नहीं सुनना चाहता |
सब बस उसे मारपीट कर
उसके छोटे से दिमाग में
सब कुछ भर और ठूस देना चाहते है|
तब समझ आया इन बच्चों की तो
एक बिलकुल निराली दुनिया है
जहा किताबे नहीं
केवल आपका स्नेह और ममत्व चाहिए|
फिर सीख तो वे यूं लेते है
कि बस ज़रा सा सहारा
भर लगा दीजिए |
सच कहूँ तो
मैं इन बाल-गोपालो को
नहीं सिखाती
बल्कि ये ही मिल कर मुझे
रोजाना एक नया सबक
सिखा देते हैं|

Sunday, July 11, 2010

क्या हुआ

क्या हुआ जो हमारे वे हो न सके
हम पर मर न सके हम से जी नसके ।

जब -जब हमने बुलाया वे आ न सके
हाल अपने दिल का सुना ना सके।

हमने सपने बुने और बुनते रहे
उनको अपना जहा हम दिखा ना सके।

हमने आंसू बहाये उन्ही के लिये
वे आंसू की माला बना ना सके।

हमने उनको चुना और वे समझे नही
हम उन्ही के ख्बावो मे डूबे रहे ।

इंतहा हो गई और वे आये नही
हमको पूछा नही और छूआ नही ।

पर हम उनके हुए और होते रहे
साथ उनका कभी भी मिला ही नही ।

अब हम भी चले उनसे सब तो कहा
पर वे समझे नही तो हम क्या करे।

Thursday, July 8, 2010

आंख क्यो भर आई है

कदम -कदम पर अपनो का दंश
व्यक्ति को किस कदर तोड देता है ।
ये अपने कहे जाने वाले
क्यो हर कदम पर केवल
अपना और अपना स्वार्थ ही देखते है।
अब कैसे कहे इन्हे हम अपना
और जब अपने है ही नही तो
क्यो ना अपना जगत अलग बनाये
जहा अकेले है तो क्या
निक्रष्ट स्वार्थ की गन्ध तो नही
जब पूरी वसुधा ही कुटुम्ब है
तो क्या अपने और क्या पराये
इन मानवो से अच्छे तो
वे शुक शावक है
जिन्हे हम पशु -पक्षी की
संज्ञा से नवाजते है।
कदम -कदम पर दुतकारते है ।
और वही देते है हमारा साथ अंत तक
जैसे सत्यवादी युधिष्ठर का
साथ दिया था श्वान ने
अरे मुझे तो ये पषु-पक्षी बहुत ही भाते है
कम सेकम बच्चो का सा
निर्मल हृदय तो रखते है ।

Monday, July 5, 2010

प्राथमिक शिक्षा ही पूरी शिक्षा व्यवस्था की नीव है।

बडे दुख का विषय है कि अभिभावक अपने पाल्यो की प्राथमिक शिक्षा के प्रति सतर्क नही है।इसे अक्षर ज्ञान के अतिरिक्त और कुछ नही माना जाता जबकि सारी इमारत इसी नीव पर आधारित होती है।किस कक्षा को पढाती हो ,क्या कहा पहली दूसरी को तब तो समखो तुम कुछ नही कर रही हो । तुम्हारे तो मजे ही मजे है ।बस अपना टाइम पास कर रही हो। इन तिप्पणियो को सुनते-सुनते तो मुझे भी इकबारगी यही लगने लगा कि बच्चो को अक्षर ज्ञान देना बहुत ही सरल कार्य है ।शायद यही कारण हो इ प्राथमिक शालाओ के अध्यापको को विशेष तरजीह नही दी जाती।उसे केवल पट्टी ,स्लेट अथवा कापी पर किटकिन्ना डालने वाला मान लिया गया । बहुत हुआ तो सामूहिक रूप से गिनती या पहाडे बुलबाने के लिये अधिक़्रत मान लिया गया।
जब मै अपने बी.एड. प्रशिक्षणार्थियो के साथ प्राथमिक और माध्य्मिक शालाओ मे गई तो कमोवेश मैने गुरुजी का यही रूप देखा ।कक्षा मे इक बच्चे को खडा कर दिया और वह सभी बवच्चो को सामूहइक अभ्तयास करवा रहा है और गुर्