Friday, January 1, 2016

नववर्ष

आओ नववर्ष तुम्हारा स्वागत है ।

खुशियों से भरपूर  हमारा आगत है।

पिछला दुख भूल गये अभिनन्दन में

अपना सब अर्पण तेरे वन्दन में।

जो पौधा रोपा था फल उसके आने है

खट्टे -मीठे का स्वाद कराते जाने है ।
तुम  धैर्य  हमारा  बन  जाओ
शक्तिसम्पन्न  बना  जाओ ।

मन की दुर्बलता हर जाओ,

साहस  का पाठ पढा जाओ ।

जो भी होगा अच्छा होगा.

सूत्र वाक्य समझा जाओ।

नववर्ष तुम्हारा स्वागत है।

मानवता का स्वागत है।

Thursday, December 31, 2015

आज वर्ष २०१५ का अंतिम दिन ,अभी चार घंटे बाद ही सबके फोन बधाई सन्देश देने के लिए बजने शुरू हो जायेंगे| युवा पीढ़ी अपने -अपने तरीकों से नववर्ष का आगाज करेगी|कहीं पटाखे फोड़े जायेंगे तो कहीं होटलों में नव वर्ष की मस्ती के नाम पर बहुत कुछ ऐसा घट जाएगा जिसे हेप्पी न्यू ईयर के बहाने दबा दिया जाएगा |लोग बड़े-बड़े संकल्प लेंगे ,कम से कम एक सुबह तो उन संकल्पों पर टिके भी रहेंगे|पर अगले दिन से यह स्थिरिता धीरे धीरे कम होती जायेगी|
अपने ही घर में अपने बच्चों को न्याय दिलाने में दिल को बहुत बड़ा करना पड़ता है और कभी-कभी तो अपने निजी हितों का त्याग करना पड़ता है और जब- जब आप ऐसा करते हैं तो आपको आपके घरेलू सदस्य विचित्र नज़रों से देखते हैं आप पर घर का भेदी होने के आरोप भी लगते हैं पर क्या किसी सत्य बात पर अड़े रहना अपराध होता है ,यदि आप अपनी अधिकतम हानि सहकर भी किसी को न्याय दिला पाते हैं तो उससे मिलने वाला सुख आप की हानि से कई गुना बड़ा होता है|
बस ,न्याय की प्रक्रिया इतनी लंबित न हो कि न्याय पाने वाला न्याय पाने की आस में अपनी सांस ही छोड़ दे|

Monday, July 16, 2012

सखी ,सावन आयो है |

सावन आयो है मन भावन सावन आयो है | क्या हुआ आज आँखों के आगे आगरे के कांवरियों का झुण्ड नहीं है तो यहाँ भुवनेश्वर में झुण्ड के झुण्ड कांवरिये महानदी से जल लेकर पुरी में लोकनाथ मंदिर और भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर में महादेव की आराधना में लींन है| राम मंदिर के पास सावन मेले का आयोजन भी हुआ है |सारी की सारी स्थितियां तो मुझे सावन की यादों में ले जारही है | कहाँ तक भूलूँ अपना बचपन और झूले पर बैठकर गाई सावन की मल्हारें -अरी मेरी बहना सातों सहेली चलो संग झूला पे चल कर झूल लें या मेंहदिया के लंबे चौड़े पत्ता पपीहा बोले या सावन आयो अधिक सुहावनो जी | वह हाथों पर रचती मेंहदी और बोईया में रखे माँ के हाथों बनाए पूड़ी और पकबान की सुगंध तो आज भी नथुनों में भरी है| सावन का महीना हो और खीर ना खाई जाए ऐसा भला कैसे हो सकता है| पिताजी का आम और सरिस के पेड पर मोटी रस्सी का झूला डाल देना और हमारा घर की दुछत्ती से पटली निकाल लेना ,सावन की रिमझिम फुआरे और ऊंचे झोटो के साथ स्वर लहरी का ऊंचा होता जाना पास-पडौस की महिलाओं और सखियों का इकठठा होना| सबका बारी- बारी से झूला झूलना और देर रात गए तक झूले से ना उतरने की जिद मुझे बार -बार मेरे बचपन की और खींच ले जाती है |आज भी बल्केश्वर में पिता के हाथों रोपे गए पीपल और सरिस के बूढ़े हो चुके पेड ज़िंदा है पर अब उन पर कोइ झूला नहीं डालता |अब वह हमारा मायका नहीं रहा |माँ-पिता चल बसे और वह मकान किसी और का हो गया | किसे कहूँ अपना मायका ,पीहर| मेरी सारी की सारी यादें तो उसी घर से जुडी हैं| हाँ भाई का घर है पर मुझे वहाँ औपचारिकता अधिक लगती है | सावन आया है तो हरियाली तीजें जरूर आयेंगी और माँ के कहे वाक्य भी बार -बार गूंजेंगे -बेटा ले ये सौ रुपये नई चूडिया खरीद कर पहन लेना |और देख हाथों में मेंहदी रचाना न भूलना | ये त्यौहार सुहागिनों के श्रंगार के होते हैं| नाग पंचमी है तो रसोई की दीवार पर कच्चे कोयले से नाग तो जरूर ही अंकित किये जायेंगे और सपेरे को दूध भी दिया जाएगा |इस दिन साँपों का दर्शन करना शुभ माना जाता है और जब पूर्णिमा आयेगी तो राखी की हलचल शुरू हो जायेगी|मिट्टी के सकोरों और कुल्लड में गेंहू और जौ बोये जायेंगे ,उन्हें गूंगा कहा जाता |है रक्षा बंधन से एक दिन पूर्व उन्हें पूजा जाएगा, झूला झुलाया जाएगा और राखी की शाम उन्हें नदी में विसर्जित किया जाएगा | उगे हुए धान्य को पिता और भाइयो को देकर पैसा माँगा जाएगा | बादलों की गडगडाहट और बिजली की चमक के साथ ही घर की महिलायें पुरुषों की रक्षा के लिए अपने हाथों में कच्चे धागे से गाज बाँध लेंगी दसवें दिन उसे खोल कर मीठा पकवान खालेंगी| गाज का गजरौटा बाप खाय ना बेटा मैं देश के किसी भी कोने में रहूँ कहाँ भूले जायेंगे ये सावन भादों |

Wednesday, May 2, 2012

चलो फिर चलें


चलो आज फिर से परिचित हुआ जाए उन छूटे लम्हों को छू लिया जाए खो गए थे जो कहीं भीड़-भाड में और उग आये थे केक्टस हमारी राह में | अब जब दिन निकला है सूरज जागा है वासन्ती हवा की छुअन और मीठी सी यादें सब कुछ तो याद हो आया है | चलो आज फिर कहीं दूर खूब दूर निकल चलते हैं और जी आते हैं अपने पुराने दिन फिर से नए और ताजा होने के लिए|

Wednesday, November 16, 2011

सब कुछ

सब कुछ वैसा ही
जैसा पहले हुआ करता था ।
बस मर गई है सम्वेदनाये
ठंडे पड्गये है अरमान
और बुझ से गये है चेहरे।
स्वार्थी लोगो के दोगले व्यक्तित्व
दुतरफा बाते ,पीठ मे धंसी कटारे
और मोथरी होती हमारी बाते
सब जेहन मे चित्र लिखित सा
ज्यो का त्यो अंकित है ।
जबकि करोडोपल गुजर चुके
टनो सांसो की आवाजाही
और सूरज भी निकला हर रोज ।
शिथिल और स्तम्भित् से हम
सब के साक्शी तो बने
पर कर ना पाये कुछ भी
बस यू ही मूढ से बैठे
दर्शक बने ताकते रहे
चित्रलिखित से बैठे रहे
और झेलते रहे अपने कहे
जाने वालेअपनो के
निर्मम प्रहारो को ।

Saturday, September 3, 2011

कहाँ हो मेरी माँ ?

हाँ माँ आज फिर वही सब आँखों के आगे घूम रहा है | आपकी डूबती साँसें और हमारा डाक्टरों से बार- बार आपको बचा लेने का पुरजोर आग्रह | और फिर एक साथ सब कुछ समाप्त हो गया | हम रोते रहे पर न आपको कुछ सुनना था और न ही हमें चुप कराना था| बस सब कुछ समाप्त और हम बच्चिया आपके कलेजे की टुकड़े मा और पिता के साये से मरहूम हो गए |
शायद हमारा और आपका इतना ही साथ लिखा होगा| अब यदि कुछ कहना भी चाहे तो किससे कहें ,अब हमारी माँ तो शेष नहीं और माँ का विकल्प कुछ नहीं होता| पर आपकी यादों से हम आज भी भरे पूरे हैं | आपने जितना दिया वही हमारा पाथेय है| हर संकट में आपकी शिक्षाएं ही हमारा मार्ग दर्शन करती हैं|और यह दुनिया तो आज भी वैसी ही निर्मम और कठोर ही है जैसी आपके सामने हुआ करती थी| अच्छा ही हुआ जो आपने हमें चरित्र की द्रढता दी | नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाया वरन आज के स्वार्थ की आंधी में हम तो कब के फिसल गए होते | और सुनो माँ कल तक जो किनारा करते रहे आज बड़े हमदर्द बन कर सामने आये है पता नहीं ये सब बहुरूपिये हैं या उनके मन वाकई बदल गए हैं ?जिनको सदा हम अपना मानते रहे ,जिनके लिए अपना सब कुछ सोंप दिया आज वही नज़रे चुरा रहे हैं | कभी तो लगता है शायद हमारी पढाई सैद्धांतिक ज्यादा हो गयी और हम दुनियादारी से अन्जान रह गए | पिताजी कहते थे कि बेटा खूब पढ़ो और आगे बढ़ो | आज पिताजी होते तो जरूर पूछती पिताजी इस दिनिया में पढाई भी कई किस्म की होती है हमने जो पढ़ा और उसे जीवन में उतारने लगे तो लगा दुनिया में कोइ बहुत बड़ा तूफ़ान आगया| शायद गांधीजी को पढाना तो ठीक था पर उनके आदर्शों पर चाकर तो सभी दुश्मन हो गए लगते हैं | पर माँ जब से अन्ना की जीत हुई मुझे फिर लगाने लगा कि मेरे माता अपनी जगह ठीक थे और उनहोंने हमें जो दिया उसके सहारे भी जन्दगी बिताई जा सकती है| पिताजी तो यही कहते बेटा राम और्क्रश्ना की बाते करती हो तो उनके जितने कष्ट सहने की हिम्मत भी पैदा करो|
माँ वैसे तो सब ठीक है और सभी अपनी परिस्थितियों में सहज बने हिउए हैं | बस कभी कभी बहुत मन होता है कि एक बार आप और पिताजी आजाते तो अपने मन की सभी बातें कह सुन लेती\ जब भी जन्म मिले आप ही मेरे माता-पिता के रूप में हो |

Monday, June 13, 2011

आपका बच्चा कैसे खेल खेलता है ?

हम सभी अपने बच्चों की पढाई को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं पर क्या कभी आपने गौर किया है कि आपका लाडला अपने बचपन में किस प्रकार के खेल खेलता है |ये आलेख लिखते -लिखते मुझे अपना बचपन याद आगया और मैंने वे सभी खेल यहाँ लिख दिए जो हम खेला करते थे| शायद आप भी बच्चों के लिए इसमें से कुछ चुन ले | वैसे तो आज के मॉडर्न युग में इतने बड़े-बड़े समर केम्प लगा दिए जाते हैं कि हम सभी अपने बच्चों को वहीं भेजने में अपना बडप्पन मानते हैं| पर अब भी कुछ खेल बाकी है जिनको खिलाकर हम अपने बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास कर सकते हैं |
1. पोसमपा भई पोसमपा
पोसम पा भई पोसम पा
डाकियो ने क्या किया
सौ रुपये की घड़ी चुराई
अब तो जेल में फंसना पडेगा
जेल की रोटी खानी पड़ेगी
जेल का पानी पीना पडेगा
अब तो जेल में रहना पडेगा|
2. तितली तितली रंग दे |
कैसा
मन चाहे जैसा
लाल
बच्चे लाल रंग की वस्तुओ को छूकर बताएँगे |
ऐसे ही सब रंगों का नाम लेकर बच्चों को रंगों की जानकारी देंगे |
३. सभी बच्चे छोटा गोला बनाकर घूमेंगे|
एक बच्चा बाबा बनेगा |
सभी बच्चे उससे पूछेंगे|
बाबा बाबा कहाँ जारहे
गंगा नहाने
गंगा तो ये रही
ये तो छोटी है
एक पैसा डाल दो
बडी हो जाएगी |
(बाबा बना बालक उसमें पैसा डालेगा और बच्चे गोले को बड़ा कर लेंगे|) आओ मिलकर गंगा नहाएं |
४. बच्चे अपनी मुठ्ठी एक दूसरे की मुठ्ठी के ऊपर रख लेंगे|
(बच्चे गायेंगे )
बाबा बाबा आम दो
( एक कहेगा )
आम है सरकार के
(सभी बच्चे )
हम भी हैं दरबार के
(पहला बच्चा कहेगा)
एक आम उठा लो
( सभीबच्चे आम उठा कर)
ये तो खट्टा है
दूसरा उठा लो
मीठा है मीठा है
मेरा आम मीठा है |
५. पक्षियों का नाम लेकर कहेंगे तोता उड़ ,चिड़िया उड़|
बीच –बीच में जानवरों का नाम लेकर कहेंगे- गाय उड़,कुत्ता उड़ | यदि बच्चा जानवर के नाम पर भी अपनी अंगुली उठा देता है तो वह खेल से निकल जायेगा|
६, सभी बच्चे अपना अपना हाथ जमीन पर रख लेंगे | एक बच्चा सभी के हाथों को छूता हुआ गाना गायेगा
अटकन बटकन दही चटकन वन फूले बंगाले
मामा लायो सात कटोरी एक कटोरी फूटी
मामा की बहू रूठी
काहे बात पे रूठी खाने को बहुतेरो
दूध दही बहुतेरो |
राजा के भयो लड़का
बिछा दे रानी पलका
अंतिम शब्द जिसके हाथ पर आएगा वह खेल में निकल जाएगा ऐसे करके सबसे बाद में जो बच्चा रह जाएगा सभी लोग उसके हाथों पर चपत मारेंगे उसे अपना हाथ बचाना होगा | इसी प्रकार खेल खेला जाएगा |
७. इन खेलों के अतिरिक्त गेंद के खेल (सेका सिकाई ,गिट्टी फोड ,सात टप्पे) ऊँच-नीच ,किल किल कांटे,नीली पीली साड़ी ,खो-खो ,रस्सी कूद ,गुटके ,स्टापू (जमीन पर आकृति बनाकर उसके खानों में गोटी डालना )अन्त्याक्षरी ,संज्ञा शब्द खेल (नाम-व्यक्ति, वस्तु, शहर,जानवर,पिक्चर )पर्ची खेल ( राजा, वजीर, चोर, सिपाही )छूहा छाही ,विष अमृत ,गुड़िया-गुड्डे के खेल ,केरम,साँप -सीढ़ी,लूडो ,पतंग,गुल्ली डंडा, कंचे गोली अवश्य खिलाए जाए | ये खेल बच्चों के शरीर को स्वस्थ रखते हैं साथ ही उनकी मानसिक क्षमता में वृद्धि भी करते हैं|बच्चे अनुकरण से सीखते हैं | कई बार वे अपने खेलों का निर्माण खुद कर लेते हैं जैसे डाक्टर बनकर सुईं लगाना और दवाई देना , टीचर बनकर बच्चों को पढ़ाना ,माता पिता बनकर उनके जैसा व्यवहार करना ये सभी खेल बच्चे स्वयं निर्मित करते हैं और अपने को अभिव्यक्त करते हैं |अपने बच्चों के बचपन के खेल देखकर हमें उनकी रूचि पता लगती है | कुछ बच्चों को कला बनाना बहुत पसंद है तो कुछ बच्चे अपने बेग में अपना खजाना रखते हैं मसलन चूड़ी के कुछ टुकड़े, कुछ तस्वीरें, कुछ कंचे कुछ टूटी पेंसिलें जो माता पिता और टीचर की निगाह में कूड़ा हो सकती हैं पर बच्चे को अपना ये खजाना बहुत प्रिय होता है बल्कि कहें कि वे इसे अपना राज्य मानते हैं और हम बड़े उस बच्चे के उस बेशकीमती खजाने को कूड़ा समझ कर फेंक देते हैं|मैंने भी कई बार ये गलती की कि जब बच्चों का बेग देखती थी तब उनकी बेशकीमती चीजों को बड़ी निर्ममता से फेंक दे देती थी| इस बार प्रयास के एक बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा दीदी क्या आपको पता है कि जो सामान आपने फेंक दिया वह मैं ने कितनी मुश्किल से ओदा था | सच ही हमें बच्चों के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा | अब इतना ही | शेष अगली पोस्ट में