काश अभी हम बच्चे होते
बच्चे होते सच्चे होते
किंत अकल के कच्चे होते।
काश कि मां जी फिर आ जाती
मूं गफली पापाजी ला ते,
बिस्तर में ें घुस शौक से खाते
खाते- खाते बातें करते
कब सो जाते पता न चलता
माथा मेरा पिता सहलाते
े काश अभी हम बच्चे होते
बच्चे होते सच्चे होते
पर अकल के कच्चे होते
मां चूल्हे पर दाल चढाती
गरम-गरम खाना दे जाती
नखरे करते नखरे सहती
हमको लेते गोद सुलाती,
पापाजी के कांधे चढते
काश अभी हम बच्चे होते
बच्चे होते सच्चे होते
किंतु अकल के कच्चे होते
खेल -खेलना खूब सुहाता
पढना -लिखना कभी ना भाता
कभी -कभी शैतानी करते
पिता पहाडे खूब रटाते
काश अभी हम बच्चे होते
बच्चे होते सच्चे होते
किंतु अकल के कच्चे होते
गरमी में तरबूजा आता
जाड ामुझको खूब सुहाता
फिर जल्दी से बारिश आती
कागज की हम नाव चलाते
काश अभीहम बच्चे होते
बच्चे होते सच्चेहोते
किंतु अकल के कच्चे होते
सुन्दर चाहत
ReplyDeleteअच्छी कविता
हम भी अगर बच्चे होते ..नाम हमारा होता बब्लू डब्लू ,,,,,,
ReplyDeleteकी तर्ज पर आपकी रचना बढ़िया लगी. खूब लिखती रहिये...
आपकी कविता के शब्द यान पर चढ़ कर बचपन की अनेकों गलियों की सैर कर आई और अनेकों कोमल और मधुरतम् अनुभूतियों की स्मृतियाँ जागृत हो गयीं । सच में बचपन कितना खूबसूरत होता है । एक बहुत ही हृदयग्राही और आत्मीयता से परिपूर्ण रचना । बधाई और शुभकामनायें ।
ReplyDeletebachpan ki yaad dila di aapne
ReplyDeleteकुछ पंक्ति में लिखा हुआ है बच्चों का अरमान।
ReplyDeleteसच कहतीं हैं सच्चापन ही बच्चों की पहचान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com