क्या हमारा दायित्व केवल अपने परिवार के लिये ही है?
क्या उन हजारों बच्चो के लिये हमारी सम्वेदना समाप्त हो गयी है जिंनके ऊपर से माता पिता.का साया उठगया है अथवा जिनके अभिभावक उनके प्रति सजग नहीं हैं?
क्या हम इतने स्वाथी हो गये हैं कि अपने हित के अलावा कुछ सोच ही नही सकते?
क्या हमारा दायित्व केवल अपने परिवार के लिये ही है?
क्या उन हजारों बच्चो के लिये हमारी सम्वेदना समाप्त हो गयी है जिंनके ऊपर से माता पिता.का साया उठगया है अथवा जिनके अभिभावक उनके प्रति सजग नहीं हैं?
क्या जिन्दगी का मकसद केवल और केवल अपना पेट भरना है?
यदि ऐसा नहीं है तो हमें सोचना होगा कि हम क्या क्या करें जिससे अपनी यदि आपकी जिन्दगी को नया अर्थ मिल सके।
यदि आपके पास कोई हुनर है तो उसे दूसरों को सिखायें।
अपने ज्ञान को दूसरों के साथ बाँटें ।
दूसरों की समस्याओं को हल करने में अपना योगदान दें।
छोटी -छोटी सहायता कर के आप उनका दिल जीत सकते हैं।
आपके पास जो भी अतिरिक्त है उसे तत्काल दूसरों को दे दें।
अपनी आवश्यकताओं को सीमित करे।
अपने ऊपर विश्वास रखें कि आप जो भी कर रहे हैं वह आपकी द्रष्टि से बिल्कुल ठीक है।