Friday, January 29, 2010

क्या आप बच्चों को पढ़ाते हैं

शिक्षण एक जीवंत प्रक्रिया है |पुस्तकीय ज्ञान को सरलतम रूप में प्रस्तुत कर अध्येता तक पहुंचाने का कार्य कक्षा शिक्षक का ही है|प्राथमिक स्तर पर यह कार्य और बढ़ जाता है|बच्चों को पढाना एक टेड़ी खीर है | यहाँ आपकी विद्वता काम नहीं आती वरन बालमनोविज्ञान  का ज्ञान काम आता है|बच्चों की रूचिया और स्वभाव जानना पहली शर्त है |गिजुभाई बधेका ने बाल शिक्षण के लिए दस खंडों में जो कार्य प्रकाशित किया है ,वह प्राथमिक शालाओं के अध्यापको के लिए मील का पत्थर है|

 दर असल बालक कल्पनाशील होते हैं|वे कुछ नया करना चाहते हैं,अपने तरीके से चीजों में बद्लाब चाहते हैं|वे एकरसता पसंद नहीं करते ,उनको कक्षा में रोजाना कुछ नया चाहिए|तारे जमी पर फिल्म में अध्यापक पढाने के लिए जो ट्रिक अपनाते हैं,उससे पूरी कक्षा रोमांचित हो जाती है और विषय को समझाने में रूचि लेते है |कक्षा में पढ़ाना जितना महत्वपूर्ण है,उससे कई गुना यह बात मायने रखती है कि आप बच्चों को किस रूप में ग्रहण करते है?

एक तानाशाह अध्यापक जितनी देर कक्षा में रहता है ,जोर-जोर से बोलकर सबको आतंकित करता है|बेबजह डांटता रहता है,बच्चों की कोई बात नहीं सुनता |उसे इस बात से कोई सरोकार नहीं कि बच्चे क्या पढना चाहते हैं

बल्कि वह इस बात पर विशेष बाल देता है कि उसे क्या पढ़ाना है|बच्चे कहानी सुनना बहुत पसंद करते है|उनको इसमे बहुत आनंद आता है|बच्चे ही क्यों .बूढ़े भी इसमें आनंद लेते है|कहाने तो एक माध्यम हैजिसका प्रयोग कर सन्देश भेजा जाता है |कुछ पात्रो की रचना कर ,उनके कार्य-कलापों को संकेतित करके सन्देश मुख्य भूमिका निभाता है|पात्र के क्रिया-कलाप तो गुना है,मुख्य तो सन्देश ही है|पर इस सन्देश को पहुचाने का कार्य  अध्यापक का है|कैसे खेल-खेल में, बातो-बातों में वह एक मूल्य संप्रेषित कर देता है,यह छात्रों के ध्यान में नहीं आता|उसके लिए तो कहानी बस एक कहानी है|पर इस कहानी से मूल्य सम्प्रेषण कार्य अनजाने ही हो जाता है|

प्रतिदिन अपनी कक्षा एक कहानी से शुरू करें|देखिये यह एक ऐसा सूत्र है जिसकी सफलता शत-प्रतिशत है| मैं बच्चों के साथ यह प्रयोग कर रही हूँ|मुझे बच्चों की  कल्पनाशीलता और रचनात्मकता ने बहुत प्रभावित किया |

गिलहरी और कौ आ  की कहानी का अंत बच्चों ने जिस उलाहने के साथ किया  ,वह मै आपके साथ शेअर करना  चाहूंगी- फिर गिलहरी ने कौ आ  से कहा -और बैठ ले डाल पर ,और पीले ठंडा पानी ,खाले चुपड़ी रोटी |

          बस यही मेरा उद्देश्य था कि मै उन्हें कहानी से जोड़ कर रखूँ| आप एक दिन कहानी सुनाये और दूसरे दिन बच्चों से सुने \ चाहे तो कभी लिखवा भी लें| इस कार्य में केवल ५ मिनट लगते है लेकिन कक्षा चार्ज हो जाती है| यदि आप स्वयं कहानी लिख सकते है ,तो सोने में सुहागा| यदि आप चाहे तो मुझसे मदद ले सकते है| मैंने अपने बचपन में सुनी कहानियों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया है| 

संवेदनाओ का बाजार

क्या अब मान लिया जाए 

कि मेरी -तेरी -इसकी -उसकी 

संवेदनाएं चुकती जा रही है?

अब सब कुछ भौतिक संपदा 

के दायरे में सिमटता जा रहा है ?

मनुष्य अपने झूठे  अभिमान 

के वशीभूत हो

केवल कागज़-कलम के 

शब्दों में बंधता जा रहा है ?

यदि यही सच है

तो क्या मानव मानव रह पायेगा ?

 वह केवल कुछ लिखित नियमों 

 के दायरे में ही अपनी 

जिंदगी कैद नहींरखता|

जाने-अनजाने बहुत ही

संवेदन शील होने  का

स्वांग भी  रचता है|

 अपने -पराये के विभेद का ध्यान रखते

वह कभी मोम सा कोमल होता है

तो कभी वज्रादपि कठोर भी होता है|

मतलब संवेदनायें मरा नहीं करती 

केवल अपने

पराये के दायरे में 

सिमट भर जाती है|

उनकी संवेदनाओं का विस्तार 

नहीं हुआ करता |

अर्थात मानव

संवेदनाओं का दास नहीं हुआ करता

अपितु वह संवेदनाओं को

अपने अनुकूल बदलने में 

माहिर हुआ करता है |

यह भी एक बाजार है

जहां सब कुछ मतलब पर, स्वार्थ पर 

आधारित होता है|

कुब्बत तो आपकी है 

कि आप किसकी संवेदनाओं 

को कितना भुना पाते हैं|

Tuesday, January 19, 2010

सांस्कृतिक पर्यावरण और शिक्षा

शिक्षा मानव को शिक्षित ही नहीं करती,अपितु उसे विचारसंपन्नऔर सचेतन भी बनाती है|शिक्षा का मुख्य उद्देश्य 

सूचनाओं का संग्रहण नहीं,मनुष्य का सर्वागीण विकास है|प्राथमिक स्तर पर बालको के शैक्षिक विकास का स्वरूप इतना विशाल आकार ले चुका हैकि उसके आगे बचपन बौना हो चुका है |वह किताबो के बोझ से दब गया हैऔर अपने आसपास फैले प्राक्रटिक सौंदर्य का आनन्द भीनही ले पाताजब्की इस उम्र तक्बच्चो को केवल आक्षरिक और अन्कीय ज्ञान ही दिया जाना चाहिए |शेष समय्पर्यावारंके माध्यम से शिक्षा के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए |

हमारा पूरा का पूरा पर्यावरण शैक्षिक और प्राक्रतिक संदेशो से घिरा हुआ है |पर्वत की ऊचाई,सागरी गहराई ,लहरों की उमंग.आकाश की विशालताऔर प्रथ्वी का धैर्य कविता की इन ्पंक्तियोमे सिमट  जाता है-पर्वत कहता शीश उठाकर तुम भी ऊचे बन जाओ अथवा प्रकृति हमें देती है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे |पर्यावरण शिक्षा पाठ्यपुस्तको के स्थान पर क्रियात्मक रूप सेदीी जानीचाहिये|मानसिक स्वास्थ्य का मुख्य आधार पर्यावरण में प्राप्त सांस्कृतिक धरोहर है|हम जैसा सुनते है,देखते है और अनुभव करते है वैसे विचार ही हममे विकसित होते है |

                         मानव मूल्यों के शैक्षिक सन्दर्भ उपेक्षणीय हो अपितु शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति में ऐसे गुणों का विकास किया जा सके जिससे निराशा के क्षणों में उत्साह का संचार हो , असफलता में धैर्य बना रहे , निर्णय में विवेक हो, व्यव्हार में शालीनता हो , विपत्ति में सहनशीलता हो , इश्वर और स्वयं में विश्वास रहे , काम में लगन हो , दया क्षमा ,शील शांति गुणों का विकास हो|

                         शिक्षा के माध्यम से इन मूल्यों को विकसित करने के लिए कुछ व्यावहारिक उपायों पर विमर्श किया जा सकता है -

                            *     ध्यान रखें जैसे शब्द हमारे कानो में पड़ते है , हम जैसा सुनते है , वैसे ही विचारों के                                                स्वामी हम बन जाते है | ये विचार ही परिपक्व होकर द्रष्टिकोणबनाते हैऔर द्रष्टिकोण ही   

                                 हमारे जीवन के दिशानिर्देशित करते हैअत:सदैव सत्साहित्य का चुनाव करे|अश्लील 

                                साहित्य न पढ़े|

                          .अपने आस-पास के वातावरणमे अच्छे संगीत को प्राथमिकता दें|शिक्षा परक गीतों,देशभक्ति गीत और संदेशपरक कविताओ को सुने,गुनगुनाये और कंठस्थ करे जिससे ये मूल्य हमारे व्यवहार के अंग बन जाए\ पतंजली योगपीठ का इस दिशा में सराहनीय है|

                        .विवेकानंद,लालबहादुर शास्त्री,गुरुनानक,रामप्रसाद बिस्मिल,चंद्रशेखर आजाद,भगत सिंह  आदि महापुरुषों की जीवनी अवश्य पड़े और जाने कि व्यक्ति अपने कर्मो से महान बनाता है\छोटी-छोटी बात ेजीवन को बड़ा बनाती है|

                         .जीवन के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करे|सकारात्मक चिंतानाच्छे व्यक्तियों के साथ और अच्छी पुसतको के अध्ययन से विकसित होता है |

                          .अपने रोलमोडल स्वयम निशचित करे|शोर्टकट प्रवृति का त्याग करे|

                         .ध्रुव ,प्रहलाद और आरुणी के आदर्शो की उपेक्षा न करे | ये आदर्श आज भी हमारे मनोमस्तिश्क को आलोडित करते है|

                       .नैतिक कथाओं का श्रवण व्यवहार का अंग हो |चरित्र अनुसरण को केवल सैद्धान्तिक विषय न माने उसे व्यवहार में डालने का प्रयत्न करे|

                        .मानसिक प्रदूषण अधिक खतरना क है|हम जैसा खाते पीते है उससे हमारा शरीर प्रभावित होता है लेकिन कानो से सूना और आँखों से देखा गया तो सीधा हमारी अंतरात्मा में प्रविष्ट होता है और मन मस्तिष्क पूरा विषाक्त हो जाता है|

                   .खाए-पीये का विष तो वमन और औषधि द्वारा निकल जाता है  पर सांसकृतिक प्रदूषण का कोई इलाज नहीं है| यह धीमा जहर हमारे अंदर इन्सर्ट किया जा रहा है और हम बिना किसीचू-चपड़ के उस विष के आदि होते जा रहे है| हमें इसा स्थिति के प्रति सतर्क रहना है|

                                                         

Monday, January 18, 2010

रिश्ते जो

       रिश्ते जो

झूठ की बुनियाद

पर टिके हो

उनका विच्छेदित होना

ही बेहतर है|

संबंध जो

स्वार्थ के धरातल पर

बने हो

उनका खत्म होना ही

लाजिमी है

ऊची अट्टालिकाये

जिनकी नीव 

पुख्ता न हो

उनका भरभराकर गिरना

सुनिशिचित है

छद्मवेष धारी

दोगले व्यक्तित्वो 

की भीड़

से बेहतर है

अकेलापन 

और 

सत्य की शक्ति

Sunday, January 17, 2010

भाव

भक्त और भगवान का
 मध्यस्थ बस इक भाव है
भाव के भूखे प्रभूजी
भाव ही इक सार है|
अन्न,धन और स्वर्ण
होते सभी बेकार है
आप हो जाए प्रभू के
इक यही सत्कारहै|
भाव बिन सूनी पुकारे
देवता सुनते नहीं
भाव बाले भक्त ही
करते उन्हें लाचार है|
भाव बिन हीरा भी देदो
तो भी वे लेते नहीं
भाव का इक फूल भी 
कर लेते वे स्वीकार है|
आगया जो शरण में
करते प्रभू उद्धार है
भक्त और भगवान का
भाव ही से तार है|
भाव यदि रखते नहीं
चिंता तेरी बेकार है
भाव बाले भक्त का
भरपूर उस पर भार है|
भाव की जंजीर से
बांध लेते भक्त ही
इसलिए इस भूमि पर
लेते प्रभू अवतार है|

शब्द

शब्द एक शब्द नहीं
शब्द निराकार है
शब्द सभल कर बोलिए 
शब्द महिमा अपार है|
शब्द ही औषध बना
शब्द से होते घाब
शब्द के दिखते नहीं
मुख, हाथ और पाव|
जो निकल जाता है मुख से
शब्द वापिस आता नहीं
दिल किसी का तोड के
चैन तू पाता नहीं|
शब्द पर रखता ध्यान तू
पा जाता सबका प्यार
मौन मुख काऔर मन का
कर देता भाव से पार|
मौन ही है देवता
मौन ही भगवान है
ज्ञानी को हर दम सदा
मौन का बस ध्यान है|
कुछ न कह कर भी 
बहुत कुछा मौन ने कहा
इसलिए कहते गुरुजी
शब्द ही विद्वान है|
सत्य बोलो प्रिय भी बोलो
कड़वा सच भाता नहीं
सर्व धर्म कहते यही
शब्द मीठा महान है|

Wednesday, January 6, 2010

दो बाल गीत

              १   

 बिल्लो बाई-बिल्लो बाई

हम तुमको दे दूध मलाई

चूहे पकड़-पकड़कर लाना 

और हमें सब देती जाना

हम उनसे खेलेगें खेल

आपस में रखेगे  मेल |

            २

 ओहो आया भालू काला

लंबे-लंबे बालों  बाला

आये लडके मोहल्ले भर के

खड़े हुए सब घेरा कर के

लिए मदारी था जो झोला

धरती पर रख उसको बोला

नाच दिखादे अपना भालू

पायेगा  तू  रोटी   आलू

और बजाया डमरू दमदम

लगा नाचने भालू छम-छम

फिर भालू  ने गाना  गाया

उछल-उछल कर नाच दिखाया

नाचो   भालू    ऐसे-ऐसे

बच्चे तुमको देगें पैसे

लगे बरसने पैसे खन-खन

उन्हें जेब में रखकर फ़ौरन 

हँसता आगे बड़ा  मदारी

भीड़ लिए बच्चों की भारी|

उन्हें

Tuesday, January 5, 2010

तीन बाल गीत

चंदामामा आजा आजा

आसमान का हाल बताजा

तुझे बनाऊंगा मैं राजा|

चम्पा, चुन्नी और चमेली

देख के तेरी छवि अलबेली

खुशा हो खूब बजाती ताली

आहा कैसी छटा निराली|

                २

           हुआ सबेरा मुर्गा बोला

         घर से चला टहलने भोला

         मिला राह में उसको भालू

         लगा माँगने रोटी आलू

         टूटी खाट गिर गया भालू

        अब न चाहिए रोटी आलू|

                      ३ 

     देखो एक मदारी आया

   साथ  तुमरी झोला लाया

    झोले में साँप निकाला

     वह था बिलकुल काला_काला

     लगा तुमरी वह बजाने

   साँप लगा तब नाच दिखाने

   अपना करतब खूब दिखाया

    सबने उसको दूध पिलाया

    बीन बजाता वह जाता था

   बच्चो^का मन बहलाता था |

ऐसा भी होता है।

थम   रही   है  साँसें  ,रूक       रहे           कदम है।

सब कुछ है गडमड होता,दिखता भी अब तो कम है। 

तार    हैं  अब    निश्चल   , वीणा  भी  सो  गई  है   ।

कितने  कदम की दूरी, तुझसे शे ष रह गई      है।

स्वर्गिक   सुख  की   छाया  , छू भर   गई     थी  ।

वेदना    की   लहरें    भिगो- भिगो    गई       है   ।

हर पल    तुझे     पुकारा,  कहीं  भूल  रह  गई  है।     

तेरी     कृपा    भी  ईश्वर , मरीचिका बन  गई है।     

अपनी  दया  की दृ ष्टि ,कर  दो मेरे  अब  ऊपर ।

बहुत  सह   लिया  है,    शक्ति     नहीं    बची  है।  

Sunday, January 3, 2010

जैसी हरि इच्छा

सब बातों का अंत यही है

मानव कीसीमा यहीहै

कर सकते थे हम जो उपाय 

कर बैठेथक हार भी बैठे

 हो गये अब निरुपाय

अब जो अच्छा होगा

यही सोच हम चुप हो बैठे

भगवन अब तो आना होगा

अपना रूप दिखाना होगा

हाथ धनुष तो लाना होगा

उपदेश तुम्हें तो देना होगा