Monday, July 16, 2012

सखी ,सावन आयो है |

सावन आयो है मन भावन सावन आयो है | क्या हुआ आज आँखों के आगे आगरे के कांवरियों का झुण्ड नहीं है तो यहाँ भुवनेश्वर में झुण्ड के झुण्ड कांवरिये महानदी से जल लेकर पुरी में लोकनाथ मंदिर और भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर में महादेव की आराधना में लींन है| राम मंदिर के पास सावन मेले का आयोजन भी हुआ है |सारी की सारी स्थितियां तो मुझे सावन की यादों में ले जारही है | कहाँ तक भूलूँ अपना बचपन और झूले पर बैठकर गाई सावन की मल्हारें -अरी मेरी बहना सातों सहेली चलो संग झूला पे चल कर झूल लें या मेंहदिया के लंबे चौड़े पत्ता पपीहा बोले या सावन आयो अधिक सुहावनो जी | वह हाथों पर रचती मेंहदी और बोईया में रखे माँ के हाथों बनाए पूड़ी और पकबान की सुगंध तो आज भी नथुनों में भरी है| सावन का महीना हो और खीर ना खाई जाए ऐसा भला कैसे हो सकता है| पिताजी का आम और सरिस के पेड पर मोटी रस्सी का झूला डाल देना और हमारा घर की दुछत्ती से पटली निकाल लेना ,सावन की रिमझिम फुआरे और ऊंचे झोटो के साथ स्वर लहरी का ऊंचा होता जाना पास-पडौस की महिलाओं और सखियों का इकठठा होना| सबका बारी- बारी से झूला झूलना और देर रात गए तक झूले से ना उतरने की जिद मुझे बार -बार मेरे बचपन की और खींच ले जाती है |आज भी बल्केश्वर में पिता के हाथों रोपे गए पीपल और सरिस के बूढ़े हो चुके पेड ज़िंदा है पर अब उन पर कोइ झूला नहीं डालता |अब वह हमारा मायका नहीं रहा |माँ-पिता चल बसे और वह मकान किसी और का हो गया | किसे कहूँ अपना मायका ,पीहर| मेरी सारी की सारी यादें तो उसी घर से जुडी हैं| हाँ भाई का घर है पर मुझे वहाँ औपचारिकता अधिक लगती है | सावन आया है तो हरियाली तीजें जरूर आयेंगी और माँ के कहे वाक्य भी बार -बार गूंजेंगे -बेटा ले ये सौ रुपये नई चूडिया खरीद कर पहन लेना |और देख हाथों में मेंहदी रचाना न भूलना | ये त्यौहार सुहागिनों के श्रंगार के होते हैं| नाग पंचमी है तो रसोई की दीवार पर कच्चे कोयले से नाग तो जरूर ही अंकित किये जायेंगे और सपेरे को दूध भी दिया जाएगा |इस दिन साँपों का दर्शन करना शुभ माना जाता है और जब पूर्णिमा आयेगी तो राखी की हलचल शुरू हो जायेगी|मिट्टी के सकोरों और कुल्लड में गेंहू और जौ बोये जायेंगे ,उन्हें गूंगा कहा जाता |है रक्षा बंधन से एक दिन पूर्व उन्हें पूजा जाएगा, झूला झुलाया जाएगा और राखी की शाम उन्हें नदी में विसर्जित किया जाएगा | उगे हुए धान्य को पिता और भाइयो को देकर पैसा माँगा जाएगा | बादलों की गडगडाहट और बिजली की चमक के साथ ही घर की महिलायें पुरुषों की रक्षा के लिए अपने हाथों में कच्चे धागे से गाज बाँध लेंगी दसवें दिन उसे खोल कर मीठा पकवान खालेंगी| गाज का गजरौटा बाप खाय ना बेटा मैं देश के किसी भी कोने में रहूँ कहाँ भूले जायेंगे ये सावन भादों |