Saturday, November 21, 2009

क्या ये कच्ची भावुकता भर है?

आज बहुत सारी यादों को दफन कर 

उन पर एक भारी सा पत्थर रख दिया

मैंने अपने को ,अपने आंसुओं के सैलाब को रोकने 

की कोशिश ,भरसक कोशिश की

पत्थर दिल बनने का नाटक भी रचा

पर ज्यों ही मेरा बचपन ,मेरी अनमोल यादें,

दुछत्त्ती पर छुपा-छुपाई याद आई

अपने बगीचे की मिट्टी  की सोंधी खुशबू

नथुनों में समाई,सपनों में सारी की सारी दीबारें  

गले लिपट कर रोई,बालपन कीशरारतें 

याद आई,मेरा सारा का सारा बड्बोलापन 

कपूर सा उडनछू हो गया,और मेरी आंखों से 

बहती गंगा-जमुना को नेरा आभिजात्यपन 

भी नहीं रोक पाया ,

मुझसे ही सवाल जबाब शुरु कर दिये

मेरे जमीर ने ,तो यही तेरा असली चेहरा

उतर गये सारे नकाब ,खुल गई सारी असलियत 

अब मैं  खुद से ही नजरें चुराती हूं,अपने को 

और अकेला पाती हूं,लोगों का क्या

वे मेरी कविता को कच्ची भावुकता भर मानते हैंं

और व्यावहारिक होने की सलाह देते 

शायद भूल जाते हैं कि हमारा अतीत कैसा भी हो 

आखिर हमारा होता है और सब कुछ बदल जाने पर

भी हमारा दामन नहीं छोडता ,सात समुन्दर पार भी

साथ चला आता है हमें बताने कि 

सब कुछ यूं ही खतम नहीं हो जाता।


Sunday, November 1, 2009

सब कुछ अच्छा ही होता है।

विपरीत परिस्थिति में ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आता है। कहने को तो ये उपदेश सुनने का सबसे बेहतर समय होता है।आप आप नहीं रहते बल्कि एक सब्जेक्ट बन जाते हैं जिस पर प्रयोग किये जासकते है।पिछले दो माह से मैं स्वयम इस स्थिति से गुजर रही हूं। कभी-कभी मुझे लगने लगा कि मेरे हाथ -पैर बांध दिये गये हैं और मैं इंच भर भी नहीं हिल सकती।इन दिनों मैंने खूब पढा और पढाही नहीं कुछेक बातों को तो अमल में भी लाई।और देखा कि जिन्दगी का हर पल खूब शिद्दत से जीना चाहिये।दर असल जिन्दगी में करने के लिये इतना कुछ है कि आप कभी रुक ही नहीं सकते।हां,यह आपको ही निशिचय करना होता है कि आप कौन सी दिशा चुने। आप कठिनाई को पहाड समझे या उसे जिन्दगी का एक अहम हिस्सा माने।जिन दिनों मैं अस्वस्थता की शिकार रही,उन दिनों ही मैंने सीखा कि मुस्कराकर आप अपना दर्द ही कम नहीकरते बल्कि सामने वाले के मन में भी उत्साह

का संचार कर देते हैं।इन दिनों मुझे बच्चों को नजदीक से देखने और समझने का अवसर मिला।कितनीकितनी बातें होती है उनके पास जिसे वह आपके साथ शेअर करना चाहते है। मेरे अच्छे मित्र हमेशा मुझे सकारात्मक सुझाब देते रहते है। और अब तो मैंने दर्द के साथ जीना भी सीख लिया है। आज बहुत दिनों बाद लिख रही हूं लेकिन अब नियमित लिखूगीं।