Sunday, December 19, 2010

ये चुप्पी कब टूटेगी ?

एक लंबे अंतराल के बाद फिर उपस्थित हूँ |मैं इतने दिनोंतक मौन क्यों हो गई?क्यों मेरी अंगुलिया कीबोर्ड को नहींछूपाई?
आज क्या हुआ कि हाथ फिर से गति पकड़ रहे हैं ?सच सवाल तो बहुत हैं पर उत्तर कहीं नहीं दिखाई देता |क्या आपके साथ भी ऐसा होता है जब आप अचानक चुप हो जाए और आपको ही कारण पता नहीं हो | क्या इन दिनों कुछ भी ऐसा नहीं घटा जिसे मैं आपके साथ बाँट पाती ,या जो घटा उसे इतना निजी समझा गया कि उसे कहने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई|कभी-कभी तो ये अंतराल बहुत सुखद होता है जब आप अपनी ऊर्जा को फिर से संचित कर आ बैठते हैं |
पर सच कहूँ कभी-कभी घटनाओं को पचाने में बहुत समय लग जाता है और हम तुरंत टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं होते ?क्या ऐसा ही होता है पति और पत्नी का रिश्ता कि एक साथी दूसरे के प्रति इतना क्रूर हो जाए कि उसके टुकड़े-टुकड़े कर दे और बच्चों को खबर तक ना हो | क्या ये दंपत्ति फेरों के समय दिए गए वचनों को नहीं सुनते अथवा इन्हें टेकिन फॉर ग्रांटेड ले लेते हैं /और यदि प्रेम विवाह है तो स्थिति और भी अधिक शोचनीय है |आखिर हम किस प्रेम के वशीभूत होकर अपने लिए जीवन साथी का चयन करते हैं ? क्या विवाह करने का अर्थ केवल सामने वाले को अपने अनुकूल ही बना लेना हैं| क्या एक व्यक्ति अपनी अस्मिता खोकर ही दूसरे में निमग्न हो तो प्यार और कहीं उसने भी अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश की तो हश्र हमारे सामने | आखिर आप जीवन साथी चुन रहे होते है या अपने अहम की तृप्ति के लिए एक गोटी खरीद रहे होते है |जैसा एक चाहता है यदि दूसरा वैसा बन गया तो मामला ठीक और कहीं उसने भी अपनी जिदें अपने अभिमान को या कहें स्वाभिमान को रखना शुरू कर दिया तो सबकुछ खत्म | आखिर क्यों हो जाते हम इतने पजेसिब कि सामने वाले की हर छोटी बड़ी बात हमने चुभने लगती है | शायद हमने कभी सीखा ही नहीं कि आप दो एक हो रहे हैं ना कि एक अपना अस्तित्व खो रहा है | क्या हमारी संवेदनाएं बिलकुल ही मर गई ? हमारे पढ़े-लिखेपन ने ही हमें ऐसा जानवर बना दिया कि छोटे मोटे मुद्दोंपर हम इतने असहनशील हो गए कि हमें सामने वाले को मारना ही रास आया | दर असल हमें इस द्रष्टि से कभी सोचने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई ?बस पढलिख लिए ,नौकरी मिल गई और हमने शादी कर ली| विवाह जैसे महत्वपूर्ण मसले पर इस द्रष्टि से कभी सोचा ही नहीं गया |आखिर विवाह की ढेरों तैयारी के मध्य ये अहम मसला क्यों उपेक्षित छूट जाता है |हम वर और वधु देखते हैं ,उसकी पढाई-लिखाई ,घर ,संस्कार देखते है पर कभी भी यह आवश्यक नहीं समझते कि विवाह से पूर्व भावी जीवन साथियों को उन महत्वपूर्ण मसलों पर चिंतन करनेयोग्य बना दें जिनकी आवश्यकता उन्हें जीवन में हर पल पडती हैं |एम.ए. ,बी.ए. और एम.बी.ए की पढाई पढकर नौकरी तो की जा सकती है ,पैसा तो कमाया जा सकता है पर गृहस्थी चलाने के लिए ,एक दूसरे को समझने के लिए ,उत्तरदायित्व निभाने के लिए जो शिक्षा उसे चाहिए वह तो कभी दी नहीं गई |बस मानलिया गया कि तुम बड़े हो गए हो पढ़-लिख गए हो ,नौकरी पेशे में होतो चलो अब शादी कर देते हैं |और जब ये बच्चे इस जिंदगी को निभाने में असफल हो गए तब कहा जाने लगा अरे भाई अपनी शादी भी नहीं बचा सकें| वे बेचारे क्या करें कभी अपने माता-पिता के दाम्पत्य से सीखते है तो कभी अपने हमउम्र दोस्तों से सलाह लेते हैं | कहीं भी कोई कोशिश इनं विवाह सम्बंधोंको बचाने की नहीं हो रही| यदि बुजर्गों से पूछो तो वे कह देते हैं अरे हमने इतनी निभा ली तुमसे इतना भी नहीं होता |और अब तो एकल परिवार ही अधिक है जहां सब कुछ अकेले ही निपटाना है | सबके जीवन जीने के तरीके अलग-अलग होते हैं | कोई जरूरी नहीं जो आपको बहुत पसंद हो वही दूसरे की भी पसंद हो | फिर भी साथ रहने के लिए कुछ तो कोमन होना जरूरी होता है मसलन एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान ,पारिवारिक कार्यों को मिलबांट कर पूरा करना ,बच्चे की परवरिश का साझा दायित्व ,एक दूसरे के प्रति और उनके सम्बन्धियों के प्रति सामान्य व्यवहार ,सामने वाले के दुःख का अहसास | पर इन गुणो को विकसित करने की तो जिम्मेवारी ही नहीं समझी जाती |बस ले बेटा बडे से कोलेज में एडमीशन ,कर टॉप ,और फिर खोज नौकरी कम से कम लाखोंके पैकेज वाली |बस यहीहम सिखाना चाहते थे और यही उसने सीख लिया |फिर शिकायतें क्यों और किससे / कोई भी व्यक्ति एक दिन में ही बहुत खराब और अच्छा नहीं हो जाता | दिनप्रति दिन का व्यवहार उसके व्यक्तित्व को निर्धारण करता है |अब्बल तो हमारा ध्यान इस ओर जाता ही नहीं और कभी चला भी गया तो इसे बेबकूफी जैसी बातें मानकर नजर अंदाज कर दिया जाता है| हम कितने धैर्यवान है,विपरीत परिस्थितियों में अपने को कितना व्यवस्थित रख पाते है ,हमारा चिंतन कितना सकारात्मक हैकईबार जब हमारा कोई काम बिगड जाता है तो हम अपना विश्लेषण करने के बजाय अपने से कमजोर पर बरस बैठते हैं | बस सारी गलती उसके सर डाली और हो गए मुक्त |पर ऐसा कितने दिन चल पायेगा |कभी तो सामने वाले की सहन शक्ति भी जबाव देजायेगी |फिर आप क्या करेंगे|
समस्या तो अब इतनी गंभीर होती जा रही है कि अब विवाह करने से पहले व्यक्ति बहुत बार सोचता है ,कहीं यह जिंदगी भी दूभर न हो जाए | जीवन साथी की तलाश जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए की जाती है अब यदि जिंदगी न रहे ,वह ही किसी के क्रोध और पागलपन की भेंट चढ जाए तो काहे का जीवनसाथी और कैसा जीवन साथी | अब विवाह माता-पिता के लिए केवल अपने दायित्व से मुक्ति ही नहीं है ,केवल हाथ पीले कर देना ही नही है बल्कि अपने बच्चों को ढेर सारी योग्यताओं के साथ जीवन जीने की कला में निपुण कर देना भी है|यदि समय रहते यह चुप्पी नहीं टूटी ,तो परिणाम बहुत ही भयंकर हो सकते हैं| भलाई इसी में है कि हम सभी समय रहते जाग जाएँ |

Wednesday, December 1, 2010

कब टूटेगा ये भ्रम

मुझे लोगों से मिलना अच्छा लगता है सो मैं अपनी तरफ से कोई भी ऐसा अवसर छोड़ना नहीं चाहती |जहां भी मौक़ा मिलता है आज की युवा पीढ़ी से बात करने का कोई ना कोई बहाना तलाश लेती हूँ |
बेरोजगार युवाओं को रोजगार केलिए प्रशिक्षितकरने के लिए एक संस्था में मुझे जाने का अवसर मिला |वहाँ मुझे मानव मनोविज्ञान विषय पर बातचीत करनी थी | जब मैंने वहाँ का पाठ्यक्रम देखा ,उनकी माध्यम भाषा के विषय में जानकारी ली तो पता चला कि सब कुछ अंगरेजी में था पर जब मैं कक्षा में प्रत्याशियों से मिली तब मालूम चला कि वहाँ तो बहुत कम लोग अंगरेजी जानते थे | उन्होंने अपनी पढाई हिन्दी माध्यम से की थी ,अंगरेजी एक विषय के रूप में पढ़ी जरूर थी पर उस को बोलने ,सुनने और लिखने में महारथ हासिल न थी |कक्षा में दिए जाने वाले हर व्याख्यान को वे सुनते तो थे पर उनकी समझ में १०प्रतिशत ही आता था कारण था माध्यम भाषा |
कहीं भी कोई कोशिश उन छात्रों से जुडने की नहीं थी बल्कि हर स्तर पर उनमें यह अहसास भरा जा रहा था कि तुम बहुत कमतर हो क्योंकि तुम अंगरेजी नहीं जानते और दुनिया का पूरा ज्ञान केवल इसी भाषा में ही ह्रदयंगम किया जा सकता है, यदि तुम अंगरेजी नहीं जानते तो तुम कुछ भी नहीं हो ,कही स्टेंड नहीं करते और आज के युग में बिना अंगरेजी जाने जॉब का मिलना तो बहुत मुश्किल है | इन सब धारणाओं का परिणाम कमोबेश यही होता है कि हर माता-पिता अपने उस बच्चे को जिसे अभी अपनी मातृभाषा पर भी दक्षता हासिल नहीं हुई होती उसे अन्य भाषा के भंवर में भटकने के लिए छोड़ देते है फल स्वरूप वह न तो अपनी भाषा कों ही जान पाता है और न अन्य भाषा में कुशल होपाता है| |परिणाम यह कि न वह घर का रहता है और न घाट का |हिन्दी कों तो उसने कुछ माना ही नहीं सोच यह लिया कि येतो अपने घर की बात है आ ही जाए गी |बस अंगरेजी सीखना बहुत जरूरी ह| हाँ किसी भी भाषा को जानना बहुत जरूरी है पर आधा -अधूरा नहीं ,चारों भाषाई कौशलों (सुनना ,बोलना ,लिखना और पढना )के साथ| सारी शक्ति उसमें लगा देते तो भी अच्छा था पर यहाँ तो किसी भी भाषा पर दक्षता नहीं हो पाती |इसलिए आजकल अध्यापक और छात्र के मध्य एक नई भाषा प्रचालन में आ रही है जिसे आप खिचड़ी भाषा कह सकते है जिसमें हिन्दी और अंगरेजी का मिला-जुला रूप है| पढाने वाले ने तो पढ़ा दिया और माँ ले कि पढाने वाले ने समझ भी लिया पर जब परीक्षा में आपको किसी एक माह्यम भाषा का चुनाव करानाहोता है और आप अपने उत्तर्किसी एक भाषा में लिखना चाहते है तब सारी समस्या शुरू होती है| मेरे पास अक्सर छात्र आते रहते हैं और अपनी समस्या का हल पूछते हैं|
और एक नजर आज के माहौल पर ,हर व्यक्ति इंग्लिश मीडियम में अपने बच्चे का प्रवेश कराना चाहता है बिना ये जाने कि जिस प्राथमिक स्तर पर उसे अपनी भाषा की सबसे अधिक आवश्यकता होती है वहीं उसका सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि उसे ज्ञान प्राप्ति के लिए एक ऐसी भाषा पर निर्भर रहना पढ़ता है जिसे वह केवल रट कर ही सीखता है |कुछ सूचनाओं को केवल हम फीड कर देते है पर उस भाषा में वह अपने विचारों को व्यक्त करने में असमर्थ होता है | किसी विषय पर निबंध लिखना हो ,अपने अनुभवों को लिखना हो तो एक मात्र सहारा टूशन वाले सर रह जाते है जिनकी संकल्पना ही स्कूल में दिये जाने वाले ग्रह कार्य को पूरा करवाने में सहायक के रूप में की जाती है |
और आज के समय में कक्षा के अतिरिक्त किसी अध्यापक से पढना भी चलन बनाता जा रहा है |अरे जब ये अध्यापक आपको सबकुछ अतिरिक्त समय में सिखा ही देते हैं तो कक्षा में जाकर सीखने की आवश्यकता ही क्या है?
सच है सब कुछ्चल रहा है और हमसब आँख बंद कर देखने के आदि हो गए हैं | खासकर प्राथमिक स्तर पर तो अन्य भाषा की बात हीनहीं की जानी चाहिए कम से कम माध्यम भाषा के रूप में |मेरी संस्था में अभी कुछ दिनों पूर्व एक बच्ची आई जो किसीस्थानीय विद्यालय में दूसरी कक्षा में पढती थी ,उसके पिता वहाँ की शुल्क देने में असमर्थ थे तो मेरे पास अपने तीनो बच्चों को लेकर आये | सच में मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैंने उस बच्ची का बेग खो कर देखा तो उस बेग में हिन्दे,नैतिक शिक्षा,गणित,अंगरेजी,सामान्यज्ञान और विज्ञान की कापी थी जिसमें टूटे फूटे अक्षरों में गलत सलत कुछ सूचनाए फीड थी पर सब कुछ गलत था वह बच्ची हिन्दी की वर्णमाला भी नहीं जानती थी उसे वर्णों की पहचान भी नहीं थी|

ये सोच बदलना बहुत जरूरी है | भाषा चाहे कोई भी हो उस पर दक्षता होना बहुत आवश्यक है |