Saturday, September 3, 2011

कहाँ हो मेरी माँ ?

हाँ माँ आज फिर वही सब आँखों के आगे घूम रहा है | आपकी डूबती साँसें और हमारा डाक्टरों से बार- बार आपको बचा लेने का पुरजोर आग्रह | और फिर एक साथ सब कुछ समाप्त हो गया | हम रोते रहे पर न आपको कुछ सुनना था और न ही हमें चुप कराना था| बस सब कुछ समाप्त और हम बच्चिया आपके कलेजे की टुकड़े मा और पिता के साये से मरहूम हो गए |
शायद हमारा और आपका इतना ही साथ लिखा होगा| अब यदि कुछ कहना भी चाहे तो किससे कहें ,अब हमारी माँ तो शेष नहीं और माँ का विकल्प कुछ नहीं होता| पर आपकी यादों से हम आज भी भरे पूरे हैं | आपने जितना दिया वही हमारा पाथेय है| हर संकट में आपकी शिक्षाएं ही हमारा मार्ग दर्शन करती हैं|और यह दुनिया तो आज भी वैसी ही निर्मम और कठोर ही है जैसी आपके सामने हुआ करती थी| अच्छा ही हुआ जो आपने हमें चरित्र की द्रढता दी | नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाया वरन आज के स्वार्थ की आंधी में हम तो कब के फिसल गए होते | और सुनो माँ कल तक जो किनारा करते रहे आज बड़े हमदर्द बन कर सामने आये है पता नहीं ये सब बहुरूपिये हैं या उनके मन वाकई बदल गए हैं ?जिनको सदा हम अपना मानते रहे ,जिनके लिए अपना सब कुछ सोंप दिया आज वही नज़रे चुरा रहे हैं | कभी तो लगता है शायद हमारी पढाई सैद्धांतिक ज्यादा हो गयी और हम दुनियादारी से अन्जान रह गए | पिताजी कहते थे कि बेटा खूब पढ़ो और आगे बढ़ो | आज पिताजी होते तो जरूर पूछती पिताजी इस दिनिया में पढाई भी कई किस्म की होती है हमने जो पढ़ा और उसे जीवन में उतारने लगे तो लगा दुनिया में कोइ बहुत बड़ा तूफ़ान आगया| शायद गांधीजी को पढाना तो ठीक था पर उनके आदर्शों पर चाकर तो सभी दुश्मन हो गए लगते हैं | पर माँ जब से अन्ना की जीत हुई मुझे फिर लगाने लगा कि मेरे माता अपनी जगह ठीक थे और उनहोंने हमें जो दिया उसके सहारे भी जन्दगी बिताई जा सकती है| पिताजी तो यही कहते बेटा राम और्क्रश्ना की बाते करती हो तो उनके जितने कष्ट सहने की हिम्मत भी पैदा करो|
माँ वैसे तो सब ठीक है और सभी अपनी परिस्थितियों में सहज बने हिउए हैं | बस कभी कभी बहुत मन होता है कि एक बार आप और पिताजी आजाते तो अपने मन की सभी बातें कह सुन लेती\ जब भी जन्म मिले आप ही मेरे माता-पिता के रूप में हो |