Saturday, April 11, 2009

मासूम बचपन


मासूम बचपन ,बेचारा बचपन, अभागा बचपन, माता-पिता के प्यार से वंचित बचपन, ,चाय के झूठे प्याले धोता बचपन,भीख मांगता बचपन, बडो की डांट फटकार खाता बचपन ,बस्तो के बोझ से लदा बचपन ,अधिक अंक लाने की होड मे खुद से जूझता 

 बचपन, गलियो मे भटकता अबोध बचपन,माता-पिता के प्यार के स्थान पर बेश कीमती खिलौनो से खेलता बचपन ,बचपन् की कौन सी परिभाषा चुनी है आपने अपने लाडले के लिये? गीत के नाम पर किसी फिल्म का अश्लील गाना और नाच के नाम पर शरीर का बेहूदा 
प्रदर्शन ,आदर्श के नाम पर फिल्मी हीरो –हीरोइन का नाम,संस्कृति के नाम पर पाश्चात्यमूल्यो का पोषण,मॉ –पिता के बदलते संस्करण मोम-डैड ,सिस मे बदलती बहना 
अंकल और आंटी मे बदलते चाचा-चाची,ताऊ-ताइ,मौसा-मौसी,बुआ-फूफा, कजिन मे बदलते ,ममेरे ,ततेरे,फुफेरे,मौसेरे,चचेरे भाई-बहिन|
क्या आपका बच्चा भी इन सब स्थितियों होकर गुजर रहा है तो सावधान होने की जरुरत है।दरअसल ये वे मूल्य हैं जिन्हें हम और आप जाने-अनजाने अपने बच्चोंमें संक्रमित करते रहते हैं।हमारा अपना व्यवहार माता-पिता के रुप में आदर्श नहीं होता ।हम अपनी कथनी और करनी को एक नहीं कर पाते ।उपदेश की भाषा बडी आलंकारिक और आदर्श से युक्त होती है पर हमारा व्यवहार कुछ और ही संकेत करता है।बच्चे जिन्हें हम छोटे और नादान मानकर चलते हैं बडी सूक्ष्मता और ध्यानपूर्वक् माता पिता के व्यवहार का निरीक्षण करते हैं। एक तरह से कहें तो अपने बच्चों को चोरी ,झूठ और फरेब हम ही सिखाते हैं।कभी हम व्यवहारिकता के चलते तो कभी स्वार्थ वश ऐसा करते है पर बच्चा उसी घटना को मिसाल मान लेता है। रिश्तेदारों के आगे हम अपने बच्चे की प्रशंसा करवाने के लिये उसे गीत, कविता ,गिनती ,वर्णमाला,और उसे जो भी नया आता है सुनाने के लिये कहते हैं।यदि बच्चा ऐसा नहीं करता तो डांटडपट कर बाध्य कर देते हैं। सच मानिये बच्चाभी अपना एक मन रखता है जिसे गाहे बगाहे स्वीकृति मिलनी ही चाहिये।बच्चों की मनस्थिति समझ कर ही नाजुक उम्र में उन्हें संस्कारित किया जा सकता है।

12 comments:

  1. हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका सादर स्वागत है....

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  2. इस जगत में आपका स्वागत है .

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  3. Beena ji,
    bahut achchha likha hai apne..bachchon ke bare men hamen sochna hoga.shubhkamnayen.
    Poonam

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  4. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  5. बहुत खूब बचपन पर आपने जो दर्द महसूस किया है ऐसी ही छटपटाहट मुझे भी होती है। फिर भी बचपन आज होटलों में बर्तन धोने पर विवश है।

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  6. Beena ji,
    ap kam se kam bachchon ke bare men itna soch to rahee hain...lekin apne bahut sare prashnon ko ek sath likh diya hai ...fir bhee achchhee koshish hai.
    main bhee bachchon kee behtaree ke liye ek chhotee see koshish apne blog par kar raha hoon.samaya mile to padhiyega.
    HemantKumar

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  7. बेहद प्रभावशाली लेखन ....अच्छा लगा

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  8. अच्‍छी संवेदना

    व्‍लाग जगत मे स्‍वागत है

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  9. लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।
    यों बोझ किताबों का दबाती है जिन्दगी।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  10. सच........बिलकुल सही और खरा लिखा आपने.....अक्षरशः सहमत हूँ.........निदा साहब ने फरमाया था न
    बच्चों के छोटे हाथों को चाँद-सितारे छूने दो
    चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे....!!

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  11. पहली बार आपके ब्लोग पर आया,बहुत गंभीर विषय पर लिखा आपने।आपके विचारों से सहमत हूं।बचपन खो नही रहा,बल्कि छीना जा रहा है॥

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  12. अच्छा लिखा है आपने , इसी तरह अपने विचारों से हमें अवगत करते रहे , हमें भी उर्जा मिलेगी

    धन्यवाद
    मयूर
    अपनी अपनी डगर

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