Saturday, February 27, 2010

अब के बरस

होली को तो हर वर्ष आना ही था 

सो इस बरस भी आ गई |

अबीर,गुलाल,पिचकारी

तो मिला करते हैं बाजार  में 

पर नहीं मिला करती

मन की उमंगें|

मौसम तो फागुनी

हो ही जाता है

पर नहीं होते स्पन्दित

मन की वीणा के तार|

होली मन की खुशियों

का त्यौहार है

इससे कोई फर्क नहीं पडता

कि वह महीना फागुन हो या बसंत |

अभी कुछ बरस पहले

चिलचिलाती दुपहरी में 

मन खुशियों का खजाना था|

तन बिन वस्त्र आभूषण के

ओज से दीप्त था 

और दीवारें बिना रंग-रोगन के

भी उल्लसित थी|

आँगन दुधिया चादनी से 

नहाया था|

अचानक मौसम बसन्ती हो आया

रंगों की फुआरें पड़ी 

और होली,दीवाली सब एक 

साथ घर में घुस आई|

होली है होली है

रंग बिरंगी होली है|

यह तो कहा ही जाता है

पर होली

हमेशा होली नहीं हुआ करती |

Thursday, February 25, 2010

सपना

उनींदी आँखों से सपना देखती बची ,

भय से चिल्लाती  है ,

पानी -पानी  की रट लगाती है |

माँ का हाथ ,पीठ सहलाता है,

बच्ची  फिर सपने में खो जाती है|

अनदेखे पिता धीरे-धीरे साकार होते हैं ,

बच्ची उनकी अंगुली पकड़ 

मेले में जाती है

,भीड़ में एक अनजान चेहरा 

पिता को दूर खींच लेता है |

पापा-पापा चिल्लाती बच्ची

माँ को पुकारती है|

माँ-माँ मेरे पास आओ 

पास सोती माँ वक्ष से

और अधिक सटा लेती है |

चुप, सोजा ,मैं यहाँ हूँ |

आश्वासन पा,वक्ष की अलभ्य  गरमाई में

बच्ची फिर सपने में खो जाती है |

अब की बार ,एक देव पुरुष 

आता है ,बच्ची को माँ -पिता के बीच 

सुलाता है ,बच्ची सुख से 

सोती है,नींद टूटती है 

पर आँखे नहीं खोलती

कहीं सपने के पापा 

फिर रूठ कर ना चले जाए

और बच्ची को माँ को 

फिर चुपाना पड़े|

रोती माँ के आंसू पोंछती 

बड़ी होती बच्ची कम से कम 

सपने में 

अपनी उम्र की तो 

रह पाती है |

Saturday, February 20, 2010

होली -बचपन और पचपन

एक  सप्ताह बाद होली है ,यह मेरे सामने लगा कलेंडर बता रहा है पर वातावरण में होली की मस्ती नहीं घुल पाई है | ना तो घर और ना ही बाजार गुलजार  हुए,फिर भी होली तो आ ही गई|  मसलन पत्रिकाएं होली विशेषांक निकाल रही हैं ,मित्र ई-कार्ड भेज रहे हैं मानो कम्पयूटर   के रंग ही आपको सराबोर कर देंगें| कहीं महिला समितिया अपने अपने आयोजनों में होली का मसला ले आई हैं ,कहने के तो कार्यालयों में भी होली मिलन की औपचारिकता पूरी की जायेगी पर कही  भी फागुनी बयार की मादकता दिखाई नहीं देती|

                   मन लौट चलता है अपने बचपन की गलियों में जहां होली के नाम पर इतना उत्साह है कि संभाले नहीं संभालता |बसंत पंचमी से ही घर में उठापटक शुरूहो गई है| अबकी होली कैसे मनाई जायेगी,घर-मुहल्लों में चर्चाओं का बाज़ार गर्म हिमान रोज गोबर लाने की ताकीद कर देती है बेटा सुबह ही गोबर ले आना ,गूलारी जो बनानी है|मन में होड़ मची हुई है कि किसकी होली ऊंची होगी | हम बच्चिया घरों में ढेरों गूलारी,और थाल बनाने में लगी हुई है| लड़के गली मोहल्ले की होली के लिए सूखी लकड़ी इकठ्ठा करने में लगे हुए हैं कहीं चन्दा इक्ट्ठा किया जा रहा है,तो कही. होली गाने -बजाने की तैयारियां चल रही हैं |माँ का तो पूरा दिन इतनी व्यस्तता से भरा हुआ है  कि हम सभी उसमें सहयोग दे रहेहैं कभी पापडों के लिए उबाले जारहे हैं तो कभी आलू के चिप्स काटे जा रहे हैं| किसी दिन बेसन के नमकीन और मीठे सेब छाटा जा रहा है तो कही चावल के हिरसे बनाने के लिए चाब्लों को पीसा जा रहा है | हर दिन एक नया आइटम बनाने की तैयारी होती है | मन इतना उल्लसित है थकान का दूर-दूर तक नामोंनिशान नहीं|पापड जितने तैयार होते है उसी दिन शाम को उन्हें तल और भून कर उदरस्थ कर दिया जाता है और माँ अगले दिन फिर जुट जाती है|

     पिताजी से रोजाना पिचकारी आर रंग लानेकी फर्मायाषा होती है| भाई घर पर आलू को दो हिस्सों में बाँट कर ठप्पा बना कर ,उस पर ४२० लिखा कर देते है. हम उसमें स्याही लगा कर दोस्तों की पीठ पर लगा रहे है और सहेलियों में शिरमौर बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं| लो अब तो होली के बस तीन दिन ही बचे हैं अब पिताजी से खोअया लाने की बातचीत हो रही है भला होली पर गुझिया ना बने ये कैसे हो सकता है| पता नहीं पिताजी कैसे हमारी सारी जिदें पूरी कर देते हैं कभी डांटते भी नहीं |अब घर- घर गुझिया बा रही हैं एनी घरों से चाची ताई सब घर में आगई है क्योंकि गुझिया बनाना अकेले का काम नहीं. है अब गुझिया को सुलाया जा रहा है थोड़ी देर में उन्हें सेंका जाएगा और हम गरम गुझिया खाने की जिद करेंगे| और माँ,उन्हेंतो आजकल राज ही सोने में बारह बज जाते है |आज होई है घर में माँ ने उपवास रखा है पर दिन भर के पकवानों को बनाने में व्यस्त है दोपहर हो गई अब माँ होली पूजने जा रही है हम बच्चे गेहू की बाले लेकर उनके पीछे चल दिए हैं शाम होते-होते कल के लिए ढही बड़े बनाने की कवायद जारी है रात होगी है और पिताजी शोर कर रहे है अरे बच्चों चलो बाहर सर होली की आगालाए|

हम चिमटा लेकर चल दिए वहा होले और जाऊ की बालें भूनी जारही है सब बहुत खुश्हाई फिर घर की होली में आग लगाई जाती हैं पिटा बैठा कर होली गाराहे है आज ब्रज मेन्होले रे रसिया माँ ने होली की आगपर एक लौटा पानी रखा दिया है सुबह उठाकर हम बच्चों को चेहरा उसी पानासे धोना जो है|सभी बड़ों को जाऊ की बालें देकर राम-राम की जारही है| मुश्किल से दो घंटे सो पाए है कि माँ फिर होली खेलने के लिए पुराने कपडे निकाला रही है| बच्व्ह्चों की टोली रन गुलाल ,गुब्बारे और पिचकारियों के साथ आ पहुची है होली है भी होली है | माँ ने थालियों में गुझिया पापड चिप्स सेब और ना जाने क्या-क्या सजा दिया है पर आने बाले माँ के हाथो के बने दहीबदों की फरमायश कर रहें है और पिताजी के दोस्तो को तो बस गाजर की कांजी चाहिए |

     अब औरतों की तोलिया आगई है माँ को रंग में डुबोया जा रहा हैआज कहीं कोई टेंस नहीं है सबके मन खिले हुए है बारह बजाते ही होली खेलने से रोका जारहा है और पिताजे ने टेसू के फूलो का रंग हम-भाई-बहिनों पर डाल दिया है सभी नहाने कीतैयारी में है बेसन और सा बुन से घिस-घिस कर रंग छुडाये जा रहे है | माँ सबके  लिए खाना परोस रही है |अब शाम हो गई है और घर पर मिलाने बालों का तांता लगा हुआ है| थक हार कर सब सो गए है| दूसरे दिन दौज है| आज पिताजी से मेला ले चलने की फरमायश की जा रही है| पालीबाल पार्र्क में वृद्धजन सम्मान और होली मिलन समारोह है| हम वहाँ भी जा पहुँचते है| पिताजी सबसे परिचय करवा रहे है अपने परिवार के सदस्योंका| हमें तो झूला झूलना है और मिट्टी का बना हुआ लाला खरीदना है|अब खिलौने खरीद लिए, घर आगये और अब एक सप्ताह  तक घर में आने जाने वालों की चहल -पहल बनी हुई है|

     एक सप्ताह बाद शीतला माता की पूजा है , अब बासोडे की तैयारी चल रही है | माँने रात में ही पकवान बना कर रख दिए है,सुबह सब बच्चों के ऊपर से माँ पूजा की थाली बार रही है |मुख से बुदबुदाती जाती है- मैया बालकोंके

फोड़ा-फुंसी सही हो जावें ,रोग शोक दूर हो जावें|उस दिन घर में वही बासी  खाना खा जाएगा| और अब होली अगले साल आयेगी |

 काश ,कि वे दिन लौट आते| अबके बरस भी सब होगा पर समय की कमी बताकर गुझिया,नमकीन बाजार से खरीद ली जायेगी.| आज तो सब कुछह पैसों से मिलता है तो क्या जरूरता है ईतना सर खपाने की| पर अब होलीमें वो मजा नहीं आता| मैं अपने बच्चों को वह सब देने की कोशिश करती हूँ पर माँ जितना नहीं कर पाती | बस इसी बहाने बच्चे हमारे बचपन से परिचित हो जाते है|उनके लिए तो यह सब इतिहास भर है| फिर भी बीते पलों को समेटने की तैयारी में जुटी रहतीं हूँ|

Friday, February 19, 2010

कठपुतली

कठपुतली का खेल दिखाते

,बन गई औरत कठपुतली|

अपनी इच्छा और अनिच्छा 

डोर के हाथों दे डाली|

पढ़ना-लिखना डिग्री लेना

बात पुरानी हो गई अब|

अपने सोच को गिरबी रखना

उसकी किस्मत बन गई अब |

ऐसी होती  है कठपुतली 

जान गई है औरत सब|

अपने निर्णय खुद ले डालो

डोर का फंदा काटो अब |

अपने अंदर की शक्ति की

कीमत जल्दी जानो सब|

सोचा है अब कर ही डालो

कल पर कुछ भी छोड़ो मत|

आज हमारा अपना होगा 

कल को किसने देखा कब|

अपनी शक्ति को पहचानो 

भीख कभी  ना स्वीकारो|

तुम स्वयं में शक्ति पुंज हो

आओ  दुष्टों  को  संहारो|

Monday, February 15, 2010

खुशियों की बारात

आई है मेरे घर खुशियों की बारात

 छाई है छत पर किलकारी की सौगात 

कुम्हलाये चेहरे पर बहुत दिनों बाद

आई  मुस्कानों   की   बरसात 

मेरे नन्हे से अंकुर सुनना मेरी बात

मिल जाता है लक्ष्य सभी को 

इतनी निश्चित बात है

अपने बोये बीजों का 

फल सभी के साथ है |