मेरे अच्छे पिताजी ,
आज आठ वर्ष पूरे हो गयेआपको इस संसार को छोड़े | न जाने किस लोक में होंगे आप और पता नहीं मेरी बात सुन भी पायेंगे या नहीं |हमने संस्कार आपसे तो ही ग्रहण किए कभी आपने कुछ कहा नहीं पर आपका व्यक्तित्व सब कुछ कह देता | आपके चेहरे पर फ़ैली वह निशल मुस्कराहट किसी को भी प्रभावित कर देने के लिए काफी थी|किसी भी दुःख में आपको विचलित होते नहीं देखा| मुझे आज भी वह शाम याद है जब घर में छुटकी के बीमार होने पर हम सभी बहुत परेशान हो गए थे और आपको शांत और अविचिलित देखकर मैंने आपसे कहा भी था आप इतने शांत कैसे रह सकते है ?आपका उतनी ही गंभीरता से भरा जबाव था बेटा दुःख में हाथ पैर छोडने से काम नहीं चलता ,धैर्य रखो और प्रभू का स्मरण करो सब ठीक हो जाए गा | हम संसारी जीवो को उस समय आपका ये गीता जैसा सन्देश अखरा था पर आप कितना सही थे यह बाद में जाना | आपने ही तो सिखाया कि मुसीबत उतनी बड़ी नहीं होती जितना हम उसे आंक लेते हैं किसी समस्या का हल खोजना तो बुद्धिमानी हो सकता है पर उसको लेकर चिंतित होकर बैठ जाना कोई विकल्प नहीं| कितनी यादे आज मेरे जेहन में आरही है| लोग कहते थे कि शर्माजी ५ बेटियों के पिता है फिर भी कैसे मुसकाते रहते हैं |हाँ , पापा शायद आप के कंधे इसीलिए नहीं झुके क्योकि आपने अपनी पुत्रियों को संस्कारवान और मजबूत बनाया | पर पापा, हम बच्चिया आपके लिए बस एक लडकी ही बनी रही |कभी भी संतान होने के दायित्व की पूर्ति नही कर पाई| जो किया भी वह भी इस भाव के साथ कि जैसे कोई अहसान कर रहे हो|आपका अंतिम समय पास था पर हमने कभी भी आपको कमजोर पड़ते नहीं देखा |
कैसे कर पाते थे आप ये सब |दादी तो आपको ९ माह का ही छोड कर चल बसी थी और आपका बचपन इधर-उधर ही बीता |शायद अनुभव ने आपको समय से पहले ही गंभीर बना दिया |आपने अपनी सीमित आमदनी में कैसे हम सबको शिक्षित भी कर दिया| कभी किसी के आगे कभी हाथ पसारते नहीं देखा \सब को अच्छे घरों में ब्याह दिया |पर पापा हमने क्या किया|कभी आप से यह भी नहीं कह सके कि पापा अब आप आराम कीजिये ,हम सब सभाल लेगे |अरे कभी कुछ बाजार से ला भी दते थे तो ऐसा महसूस करते मानो हम बहुत बड़ा बोझ ढोकर लाये है |मैंने बहुत सोचा और अब मुझे लगता है कि फिर मैं आपकी बेटी बनकर ही जन्म लूंगी|
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