Thursday, April 14, 2011

कब तक पुकारू ?

ये कैसी कठिन परीक्षा
मेरे प्रभु
मैं तो पुकार- पुकार
कर थक चुकी
पर तुम न आये |
मेरा विश्वास
अभी भी
जस का तस है
कि
प्रभु सच्चे मन
की पुकार सुनते तो जरुर होंगे|
पर अब तो गले से बोल भी नहीं फूटते
मैं शांत,अविचल और निश्चिंत
आज भी तेरी ही
राह तकती हूँ
क्या पता न जाने
कब और कहाँ से तेरा
आगमन हो
और मुरझाई बेल
फिर से पल्लवित हो जी उठे|

3 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  2. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

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  3. हृदयग्राही एवं भावपूर्ण रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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