कठपुतली का खेल दिखाते
,बन गई औरत कठपुतली|
अपनी इच्छा और अनिच्छा
डोर के हाथों दे डाली|
पढ़ना-लिखना डिग्री लेना
बात पुरानी हो गई अब|
अपने सोच को गिरबी रखना
उसकी किस्मत बन गई अब |
ऐसी होती है कठपुतली
जान गई है औरत सब|
अपने निर्णय खुद ले डालो
डोर का फंदा काटो अब |
अपने अंदर की शक्ति की
कीमत जल्दी जानो सब|
सोचा है अब कर ही डालो
कल पर कुछ भी छोड़ो मत|
आज हमारा अपना होगा
कल को किसने देखा कब|
अपनी शक्ति को पहचानो
भीख कभी ना स्वीकारो|
तुम स्वयं में शक्ति पुंज हो
आओ दुष्टों को संहारो|
bahut aacha
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायी कविता ! बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteभले हमें कठपुतली बनाने की कोशिश की जाए पर नाचना तो हमारे हाथ में है न?उसे तो नकार ही सकते हैं।
ReplyDeleteKathputali banna hamare hath mein hai. Aaj ke is yug mein aurat kathputali bankar nahi rah sakti. Kanchan Verma
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