Saturday, February 20, 2010

होली -बचपन और पचपन

एक  सप्ताह बाद होली है ,यह मेरे सामने लगा कलेंडर बता रहा है पर वातावरण में होली की मस्ती नहीं घुल पाई है | ना तो घर और ना ही बाजार गुलजार  हुए,फिर भी होली तो आ ही गई|  मसलन पत्रिकाएं होली विशेषांक निकाल रही हैं ,मित्र ई-कार्ड भेज रहे हैं मानो कम्पयूटर   के रंग ही आपको सराबोर कर देंगें| कहीं महिला समितिया अपने अपने आयोजनों में होली का मसला ले आई हैं ,कहने के तो कार्यालयों में भी होली मिलन की औपचारिकता पूरी की जायेगी पर कही  भी फागुनी बयार की मादकता दिखाई नहीं देती|

                   मन लौट चलता है अपने बचपन की गलियों में जहां होली के नाम पर इतना उत्साह है कि संभाले नहीं संभालता |बसंत पंचमी से ही घर में उठापटक शुरूहो गई है| अबकी होली कैसे मनाई जायेगी,घर-मुहल्लों में चर्चाओं का बाज़ार गर्म हिमान रोज गोबर लाने की ताकीद कर देती है बेटा सुबह ही गोबर ले आना ,गूलारी जो बनानी है|मन में होड़ मची हुई है कि किसकी होली ऊंची होगी | हम बच्चिया घरों में ढेरों गूलारी,और थाल बनाने में लगी हुई है| लड़के गली मोहल्ले की होली के लिए सूखी लकड़ी इकठ्ठा करने में लगे हुए हैं कहीं चन्दा इक्ट्ठा किया जा रहा है,तो कही. होली गाने -बजाने की तैयारियां चल रही हैं |माँ का तो पूरा दिन इतनी व्यस्तता से भरा हुआ है  कि हम सभी उसमें सहयोग दे रहेहैं कभी पापडों के लिए उबाले जारहे हैं तो कभी आलू के चिप्स काटे जा रहे हैं| किसी दिन बेसन के नमकीन और मीठे सेब छाटा जा रहा है तो कही चावल के हिरसे बनाने के लिए चाब्लों को पीसा जा रहा है | हर दिन एक नया आइटम बनाने की तैयारी होती है | मन इतना उल्लसित है थकान का दूर-दूर तक नामोंनिशान नहीं|पापड जितने तैयार होते है उसी दिन शाम को उन्हें तल और भून कर उदरस्थ कर दिया जाता है और माँ अगले दिन फिर जुट जाती है|

     पिताजी से रोजाना पिचकारी आर रंग लानेकी फर्मायाषा होती है| भाई घर पर आलू को दो हिस्सों में बाँट कर ठप्पा बना कर ,उस पर ४२० लिखा कर देते है. हम उसमें स्याही लगा कर दोस्तों की पीठ पर लगा रहे है और सहेलियों में शिरमौर बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं| लो अब तो होली के बस तीन दिन ही बचे हैं अब पिताजी से खोअया लाने की बातचीत हो रही है भला होली पर गुझिया ना बने ये कैसे हो सकता है| पता नहीं पिताजी कैसे हमारी सारी जिदें पूरी कर देते हैं कभी डांटते भी नहीं |अब घर- घर गुझिया बा रही हैं एनी घरों से चाची ताई सब घर में आगई है क्योंकि गुझिया बनाना अकेले का काम नहीं. है अब गुझिया को सुलाया जा रहा है थोड़ी देर में उन्हें सेंका जाएगा और हम गरम गुझिया खाने की जिद करेंगे| और माँ,उन्हेंतो आजकल राज ही सोने में बारह बज जाते है |आज होई है घर में माँ ने उपवास रखा है पर दिन भर के पकवानों को बनाने में व्यस्त है दोपहर हो गई अब माँ होली पूजने जा रही है हम बच्चे गेहू की बाले लेकर उनके पीछे चल दिए हैं शाम होते-होते कल के लिए ढही बड़े बनाने की कवायद जारी है रात होगी है और पिताजी शोर कर रहे है अरे बच्चों चलो बाहर सर होली की आगालाए|

हम चिमटा लेकर चल दिए वहा होले और जाऊ की बालें भूनी जारही है सब बहुत खुश्हाई फिर घर की होली में आग लगाई जाती हैं पिटा बैठा कर होली गाराहे है आज ब्रज मेन्होले रे रसिया माँ ने होली की आगपर एक लौटा पानी रखा दिया है सुबह उठाकर हम बच्चों को चेहरा उसी पानासे धोना जो है|सभी बड़ों को जाऊ की बालें देकर राम-राम की जारही है| मुश्किल से दो घंटे सो पाए है कि माँ फिर होली खेलने के लिए पुराने कपडे निकाला रही है| बच्व्ह्चों की टोली रन गुलाल ,गुब्बारे और पिचकारियों के साथ आ पहुची है होली है भी होली है | माँ ने थालियों में गुझिया पापड चिप्स सेब और ना जाने क्या-क्या सजा दिया है पर आने बाले माँ के हाथो के बने दहीबदों की फरमायश कर रहें है और पिताजी के दोस्तो को तो बस गाजर की कांजी चाहिए |

     अब औरतों की तोलिया आगई है माँ को रंग में डुबोया जा रहा हैआज कहीं कोई टेंस नहीं है सबके मन खिले हुए है बारह बजाते ही होली खेलने से रोका जारहा है और पिताजे ने टेसू के फूलो का रंग हम-भाई-बहिनों पर डाल दिया है सभी नहाने कीतैयारी में है बेसन और सा बुन से घिस-घिस कर रंग छुडाये जा रहे है | माँ सबके  लिए खाना परोस रही है |अब शाम हो गई है और घर पर मिलाने बालों का तांता लगा हुआ है| थक हार कर सब सो गए है| दूसरे दिन दौज है| आज पिताजी से मेला ले चलने की फरमायश की जा रही है| पालीबाल पार्र्क में वृद्धजन सम्मान और होली मिलन समारोह है| हम वहाँ भी जा पहुँचते है| पिताजी सबसे परिचय करवा रहे है अपने परिवार के सदस्योंका| हमें तो झूला झूलना है और मिट्टी का बना हुआ लाला खरीदना है|अब खिलौने खरीद लिए, घर आगये और अब एक सप्ताह  तक घर में आने जाने वालों की चहल -पहल बनी हुई है|

     एक सप्ताह बाद शीतला माता की पूजा है , अब बासोडे की तैयारी चल रही है | माँने रात में ही पकवान बना कर रख दिए है,सुबह सब बच्चों के ऊपर से माँ पूजा की थाली बार रही है |मुख से बुदबुदाती जाती है- मैया बालकोंके

फोड़ा-फुंसी सही हो जावें ,रोग शोक दूर हो जावें|उस दिन घर में वही बासी  खाना खा जाएगा| और अब होली अगले साल आयेगी |

 काश ,कि वे दिन लौट आते| अबके बरस भी सब होगा पर समय की कमी बताकर गुझिया,नमकीन बाजार से खरीद ली जायेगी.| आज तो सब कुछह पैसों से मिलता है तो क्या जरूरता है ईतना सर खपाने की| पर अब होलीमें वो मजा नहीं आता| मैं अपने बच्चों को वह सब देने की कोशिश करती हूँ पर माँ जितना नहीं कर पाती | बस इसी बहाने बच्चे हमारे बचपन से परिचित हो जाते है|उनके लिए तो यह सब इतिहास भर है| फिर भी बीते पलों को समेटने की तैयारी में जुटी रहतीं हूँ|

6 comments:

  1. मजेदार होते हैं बचपन के दिन .. पर ये लौटकर नहीं आते !!

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  2. दिन तो कभी नहीं लौटते पर आज तो हमारा है, जैसा भी है उसे अपनी शक्ति अनुसार सँवार सकते हैं और सँवारते हैं।मैने पूरी कोशिश की ,कोई कमी नही की।मैं सफल हूँ।

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  3. दिन लौट्कर नहीं आएँगे पर आज तो हमारा सजा ही सकते है अपनी पूरी कोशिश से और वह हम करते ही हैं और कर ही रहे हैं तो मुझे संतुष्टि है।

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