Thursday, February 25, 2010

सपना

उनींदी आँखों से सपना देखती बची ,

भय से चिल्लाती  है ,

पानी -पानी  की रट लगाती है |

माँ का हाथ ,पीठ सहलाता है,

बच्ची  फिर सपने में खो जाती है|

अनदेखे पिता धीरे-धीरे साकार होते हैं ,

बच्ची उनकी अंगुली पकड़ 

मेले में जाती है

,भीड़ में एक अनजान चेहरा 

पिता को दूर खींच लेता है |

पापा-पापा चिल्लाती बच्ची

माँ को पुकारती है|

माँ-माँ मेरे पास आओ 

पास सोती माँ वक्ष से

और अधिक सटा लेती है |

चुप, सोजा ,मैं यहाँ हूँ |

आश्वासन पा,वक्ष की अलभ्य  गरमाई में

बच्ची फिर सपने में खो जाती है |

अब की बार ,एक देव पुरुष 

आता है ,बच्ची को माँ -पिता के बीच 

सुलाता है ,बच्ची सुख से 

सोती है,नींद टूटती है 

पर आँखे नहीं खोलती

कहीं सपने के पापा 

फिर रूठ कर ना चले जाए

और बच्ची को माँ को 

फिर चुपाना पड़े|

रोती माँ के आंसू पोंछती 

बड़ी होती बच्ची कम से कम 

सपने में 

अपनी उम्र की तो 

रह पाती है |

4 comments:

  1. बहुत सुंदर शब्दों के साथ ...बहुत सुंदर रचना....

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब .....आपको होली के ढेर सारी शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  3. सुन्दर रचना!!

    होली मुबारक!!

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर भाव एवं और भी अधिक सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

    ReplyDelete