होली को तो हर वर्ष आना ही था
सो इस बरस भी आ गई |
अबीर,गुलाल,पिचकारी
तो मिला करते हैं बाजार में
पर नहीं मिला करती
मन की उमंगें|
मौसम तो फागुनी
हो ही जाता है
पर नहीं होते स्पन्दित
मन की वीणा के तार|
होली मन की खुशियों
का त्यौहार है
इससे कोई फर्क नहीं पडता
कि वह महीना फागुन हो या बसंत |
अभी कुछ बरस पहले
चिलचिलाती दुपहरी में
मन खुशियों का खजाना था|
तन बिन वस्त्र आभूषण के
ओज से दीप्त था
और दीवारें बिना रंग-रोगन के
भी उल्लसित थी|
आँगन दुधिया चादनी से
नहाया था|
अचानक मौसम बसन्ती हो आया
रंगों की फुआरें पड़ी
और होली,दीवाली सब एक
साथ घर में घुस आई|
होली है होली है
रंग बिरंगी होली है|
यह तो कहा ही जाता है
पर होली
हमेशा होली नहीं हुआ करती |
होली आती कहाँ होली तो लायी जाती है जज्बातों से।
ReplyDeleteहोली तो अब सामने खेलेंगे सब रंग।
मँहगाई ऐसी बढ़ी फीका हुआ उमंग।।
होली की शुभकामनाएं।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सारे त्यौहार हमारे मनोभावों का प्रतिबिम्ब ही तो हैं ! मन के हारे हार है मन के जीते जीत ! जब मन में खुशी होती है तो दुनिया बहुत ख़ूबसूरत लगती है और जब मन उदास होता है तो सब कुछ बेरंग हो जाता है ! बहुत सुन्दर कविता है ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteरंग बिरंगी होली को जीवन में लागू करने पर जीवन खूबसूरत हो जाएगा}
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