Saturday, June 6, 2009

जीओ तो सकारात्मक सोच के साथ्

आज हम सभी चिंता और तनाव मेंघिरे हुए हैं।पूरी दुनिया के प्रति हमने नकारात्मक सोचअपनालियाहै॥सबबुरेहै,सबखराबहै, पता नहीं मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है,भगबान भी मेरी परीक्षा लेता रहता है, इतना करने पर भी लोग मुझे मान्यता क्यों नहीं देते आदि- आदि।इन सभी धारणाओं के साथ जीने से हम सबसे पहले और सबसे बडा नुक्सान अपना ही करते है। सब कुछ उतना खराब भी नहीं होता जितना हम सोच लेते है।अपनी असफलताओके लिये दूसरों को दोष देना बहुत सरल काम होता हैपर उन असफलताओ के कारणो का विवेचन करना हमारा पहला काम होना चाहिये।

सकारात्मकता बाबा के मोल नहीं मिला करती और न ही ये एक दिन मे उपजती है ।दर असल यह जीवन जीने की कला है।यदि किसी व्यक्ति के साथ हमें रहना ही है तो क्यों न हम उसके गुणों को खोजें वनसपत  हर समयछोटी
  छोती बातों को आधार बनाकर उसकी आलोचना ही करते रहे ं परेशानी आने पर अपने को कोसने लगना समस्या का विकलप नहीं हुआ करता।किसी  की कोइ भी समस्या इतनी बडी नहीं हुआ करती कि उसके पीछे जीवन को ही दांव पर लगा दिया जाये।किसी बात के छोटे -छोटे पहलुओं पर विचार करने से आधे समाधान हो जाते है।

सब कुछ अच्छा ही होगा इस भावना के साथ काम करने से मनोबल बढता है।अच्छा सोच आपके जीवन के प्रति दृष्तिकोण  को दर्शाता है।किसी से मिलने पर तीसरे की आलोचना करना यह दिखलाता है कि आप की वृत्ति  सबको क्रिटिसाइज करने की है। हम सबसे पहले अपने को देखना शुरु करें कि हमारे अन्दर क्या कमिया है और उन्हें हम कैसे दूर कर सकते है।अच्छे विचारो के स्वामी बनें और अपने नकारात्मक सोच को बदले।

3 comments:

  1. बिलकुल ठीक बात कही आपने बीना जी, दरअसल हमारी सोच ही परिस्थितियों को सकारात्मक या नकारात्मक बना देती हैं.....हालांकि कई बार बहुत मुश्किल होता है सिर्फ सकारात्मक सोचना....मगर कोशिश तो यही होनी चाहिए...प्रेरणास्पद लेख....

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  2. acchha aap to maha nikale

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