Thursday, July 23, 2009

बचपन् मासूम

अपनी संस्था प्रयास में पढाते हुए मुझे बहुत ही रोमांचक अनुभव हो रहे हैं। एक भी बच्चा ऐसा नहीं है जो पढ्ना नहीं चाहता हो। बस सबके सीखने की गति और तरीका अलग -अलग है।किसी को केबल लिखना पसन्द है तो कोईखुउब बोलना चाहता है। किसी को दीदी को छूना अच्छा लगता है तो कोई अपने नई फ्राक दिखाने के लिये इतना उत्सुक है कि जब तक उसकी बात सुनाओ न ली जाये वह पढने के लिये तैयार ही नहीं होता। सोनिया लिखने में कुछ कच्ची जरूर है लेकिन जब उसे खेलने के लिये खिलौना दिया गया तो एक अच्छे नेता की तरह उसने सभी बच्चों को खेलने का अवसर दिया और सबको अनुशासन में रखे रही।मुस्कान सबकी कोपी इक्कठे करने का काम बखूबी कर लेती है। ये बच्चे चोरी करना नहीं जानते पर जो उन्हें पसन्द आजाता है उसे बदे भोलेपन से ले लेते हैं और पूछने पर उतनी ही मासूमियत से स्वीकर भी कर लेते हैं हां दीदी मैंने उसकी चीज लीहैपर चोरी नहीं की हैऔर तो इनके शब्द कोश में झूठ बोलना भी नहीं हैं पर डांट से बचने के लिये और अपनी बडी दीदी के सामने अच्छा बनने के लिये ये सही बात नही बता ते ।जब उन्हें यह विशवास दिलाया जाता हैकि जो भी तुमने किया है बता दो , कोई कुछ नहीं कहेगा तो ये मासूम अपनी तोतली जुवान में सब कुछ बयान कर देते हैं।मैंने अक्सर पाया हैकि वे अपने को सबके सामने अच्छा दिखाना चाहते हैं। उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है जब आप उसे नजर अन्दाज कर देते है और उसके मित्रों के सामने उसकी कमियों को उजागर करने लग जाते हैं।आलोचना औरकमियां गिनाने से उसमें कोइसुधार तो सम्भव नहीं होता ।हां मन में हीनता की भावना और बदला लेने की भावना अवश्य आजाती है।बच्चो को पढाते समय बेहद साबधानी अपेक्षितहै।बाल मनोविग्यान का ग्यान बहुत सहायक है।ये वेबच्चे हैं जिन्हे यदि किसी गलत हाथों में सौंप दिया गया तो उनका पूरा भविश्य चौपट हो जायेगा।अपने बच्चे के लिये अध्यापक चुनते समय इन छोटी बातों को नजर अन्दाज कभी भी ना करें।।

4 comments:

  1. ji aapne theek socha...bachchon ke baare me bahut alag tareeke se padhana aur seekhana padta hai...

    ReplyDelete
  2. achha laga
    bahut achha ............
    badhaai !

    ReplyDelete
  3. परमात्मा से यही प्रार्थना है कि आपके मार्ग में कोई बाधा न आए।

    ReplyDelete