Friday, July 31, 2009

जाना मां का

धीरे धीरे अगस्त भी आ गया। मा पिछले साल इन दिनों अकसर बीमार रहा करती थी।लेकिन उतनी बीमारी में भी अपने सभी बच्चों के लिये उसकी चिंता उसी रूप में बरकरार ठीक जैसे हम आज भी छोटे से नन्हे मुन्नेहो ।हर क्षण
अपने सभी बाल गोपालों की खबर सुध लेती रहती।और जब खुद उसे दुनिया छोडनी थी तो हम सभी को खाने पर भेज दिया छोटी से भी तुतते स्वर में बतरा ली और खुद अपनी आखिरी सांसोको छोडते वक्त उतनी ही मौन बनी रही जैसे वहअक्सर रहा करती थी। जब तक मां रही मुझे कभी उन पर लिखने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई।बस मां ठीक तो मैं सब विषयों पर लिखना सकती ठीक सिवा मां के। मेरी हर रचना की पहली पाठक और श्रोता वही रही।कभी मैंने उन्हें सुख में उछलते और दुख में जार -जार रोते नहीं देखा। सब कुछ कितनी सहजता से लेती रही।
कभी मैं उनको अधिक खुशी में भी सामान्य व्यवहार करते देखती तो कहना शुरु कर देती कितना भी पदं लो, कितने भी इनाम जीत कर आओ कभी भी खुश नहीं होती और मां हमेशा की तरह सौम्य मुसकान बिखेरती धीरे से कह्ती बेटा ये जिन्दगी की सामान्य बातें है उन्हें इसी तरह लिया कर।जब पिचली जुलाई में मुझे प्रोफेसर का पद मिला तो श्हयद पहली बार चहक कर बोली ठीक चल तुने अपने पिताजी का सपना पूरा कर दिया। पता नहीं अपनी इस संतान में उन्हें क्या नजर आता वह अक्सर मेरे विद्यार्थियों में महादेवी के घीसा तो कभी गु6गिया को डूढ लेती और मेरे भविश्य में महादेवी की कल्पना करने लगती। शायद मां अपनी संतान को लेकर ऐसा ही सोचती हो।सच पूचे तो मुझे उनके बताये प्रसंगों ही अपनी रचनाओं के अनेकों पात्र मिले। आज जब मां का मेरे बालों को सहलाता हाथ नहीं हैं पर मेरे पूरे जेहन में मां आज भी साकार हो उठी है। मेरे हर कष्ट में उसकी सौम्य मुर्ति मेरी आंखों के सामने आजाती है और मैं फिर से चार्ज हो जाती हूं। अज मुझे मां की बहद याद आरही है बस मैंने अपने को आप सबके साथ बांट लिया।

4 comments:

  1. माँ तो कभी मरा नहीं करती
    है हमारे इर्द - गिर्द ही रहती
    महसूस अहसास हमारे हैं जो
    करते माँ से किनारे हैं !

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  2. माँ ऐसी ही होती हैं...और वो हमेशा हमारे पास रहती हैं

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  3. माँ का रिश्ता सर्वोच्च होता है,निस्वार्थ होता है माँ ईश्वर का दूसरा रूप होती है वह कभी जाती नहीं,सदा हृदय में रहती है।

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