Saturday, July 25, 2009

रिश्ते

न जाने क्यों बदल जाते है रिश्ते
पल और क्षण में
और मैं बाबरी सी उन रिश्तों की याद में
खोई -खोई सी न जाने क्यों
उस जगत में घूम -घूम आती हूं
पढते हुये तसलीमा के फेरा को
सोचा भी न था कि कल मैं भी
फेरा की कथावस्तु को दुहराती सी
अपने बचपन और अपने बच्चे की
तुतलाहट भरी यादों को मन ही मन
गुनगुनाउगी,बोलूंगी ,बतराउगीं
कभी मन भटकता है पिता के
लगाये पीपल,सरिस और जामुन में
तो कभी भरती हूं उडान शिशु की
अठखेलियोंकी,मा तू सबसे प्यारी है नुमा वाक्यों की
और अब समय हाथ से फिसलता जा रहा है
पैरों तले गीली बालू भी सरक रही है होले-होले
फिर भी जिन्दा हूं कि रिश्ते कभी मरा नहीं करते
केबल रूप बदला करते है।















न में

8 comments:

  1. पैरों तले गीली बालू भी सरक रही है होले-होले
    फिर भी जिन्दा हूं कि रिश्ते कभी मरा नहीं करते
    केबल रूप बदला करते है।
    बीना जी बहुत सुन्दर परिभाशा है रिश्तों की शुभकामनायें

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. सटीक कहा है .. सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  4. कुछ न कुछ करना है, करते रहो, भड़ास निकलती रहेगी!
    कविता और कृति का क्या वोह तो स्वयं बनती रहेगी !!

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  5. कुछ न कुछ करना है, करते रहो, भड़ास निकलती रहेगी!
    कविता और कृति का क्या, वोह तो स्वयं बनती रहेगी !!

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  6. rishte hote hi aise hai jo kabhi bhimarate nahi.

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  7. rishte hum se hai hum rishto se nahi.jabtak hum chahe tabtak rahenge.

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  8. पैरों तले गीली बालू भी सरक रही है होले-होले
    फिर भी जिन्दा हूं कि रिश्ते कभी मरा नहीं करते
    केबल रूप बदला करते है।

    Bahut sunder rachna hai...

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