Tuesday, December 8, 2009

मां की पाती

मेरे प्यारे बच्चे,

कहा जाता है संतान कलेजे का टुकड़ा होती है।माता-पिता के रक्त से पोषित होती है।माता-पिता अपना भविष्य संतान के आइने में देखते है।खुद गीले में सोकर उसे सूखे में सुलाते हैं,खुद भूखे रहकर उसकी क्षुधा शांत करते हैं।वे यह सब करते हैं क्योंकि वे जानबूझ कर,कृत संकल्पित हो उस जीव को दुनियां में लाते है।वे संतान पर कोई अहसान नहीं कर रहे होते,वरन, प्रकारांतर से अपनासुख ही खोज रहे होते हैं।

दुनियादारी की रीत से तुम भी कोख में आये,अपने अन्दर अपने अंश को समाये जननी आत्ममुग्ध  होती रही,तुम्हे अपनी गोद में पा निहाल हो उठी,बधावे गाये जाने लगे,सब और सुख और चैन की वंशी बजने लगी।शिशु से बालक,किशोर और युवा होते तुममें शैशव ही तलाशती रही,अपने हाथों की ओट लगातुम्हारा सुरक्षा घेरा ही बने रही।जान ही न पाई कि उसका अंश कब इक व्यक्तित्व बन गया,भरापूरा व्यक्ति,अपना भला-बुरा समझने बाला,अपने निर्णय पर अडिग रहने वाला समझदार सा शासक बन गया।अपने फैसले खुद लेने वाला एक इंसान,अपने भबिष्य की योजनाओं को मूर्त रूपदेने वालाएकपरिवार का स्वामी।

जन्मदाता  ठगे से देखते रह गये,जो संसकार डाले थे,न जाने कहां लुप्त हो गये।तुम अपने वैज्ञानिक सोच और तर्कों में इतने मशगूल हो गये कि माता-पिता की कोमल भावनायें तुम्हारे ताकतवर जूतों के नीचेदब कर रह गयी.

ठोडा बहुत सिसकी भी होंगी,तो पोप मूजिक का शोर इतना अधिक थाकि किसी को कुछ सुनाई भी नहीं दिया। और सुनाई पडा भी हो तो किसके पास इतनी फुरसत थी कि उस पर ध्यान देता।

समय बीता,तुम पल्लवित,पुश्पित होते रहे,गाहे-बगाहे आधी -अधूरी सूचनायें मिलती रही।माता-पिता एक स्वप्न से जागे तो देखा सब कुछ बदल गया था,न वह उल्लासथा और न उमंगे।अब क्या करते,जीने के लिये किसको लक्ष्य बनाते।अब तक जो भी था, वह तुम्हारे आस-पास तक ही सीमित था।बिखरता मनोबल संभाला,जो शेष था,बटोरा और अबका लक्ष्य चुना जिसमें प्यार तो था,भावनायें तो थी पर साथ ही साथ अनुरक्ति नहीं थी ,था तो केवल इक कर्तव्य बोध .अप्ने शेष जीवन को हंसी-खुशी बिताने की इच्छा,जो बीत गया.उससे उबरपाने  की सामर्थ्य,और एक दूसरे को जान पाने का संकल्प।

मैं यह सब तुम्हें एसलिये लिख रही हूंताकि सनद रहे,अपनी संतान के हाथों प्रवंचित होते  तुम टूटो नही,फिर से जी उठने का साहस रखो,क्योंकि समय बदला है तो बयार बदलेगी ही।मां हूंना, इसलिये लिख भर दिया है चाहो तो पढलेना और जरूरत महसूस न हो तो अन्य बेटों के लिये छोड देना।दुनिया बहुत बडी होती है,जननी न सही,पालिता के भी अनेक-अनेक संतानें हुआ करती है,मेरे ऊपर उनका भी ऋणबकाया है, सो वह भी मां के दिल की बात सुन लेंगें।

                         मां           मां          मां            मां                      =---------------

3 comments:

  1. माँ बेटे सम्बन्ध पर रचना है कुछ खास।
    बेटा यह क्यों भूलता दुहराता इतिहास।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. अत्यंत हृदयस्पर्शी पाती है । आज के पारिवारिक मूल्यों के विघटन को बड़ी मार्मिकता के साथ उकेरा है आपने । बधाई और शुभकामनायें । गीता के निष्काम कर्म के दर्शन के अनुसार फल की इच्छा के बिना कर्तव्यपालन किये जाना ही शायद आज के माता-पिता की नियति है ।

    ReplyDelete
  3. बहुत अच्छा लिखा है आपने यह हम सबके मन के भाव है ।

    ReplyDelete