मैं मैं हूं
और तुम नहीं हो सकती
मैं केवल एक शरीर नहीं
मुझमें भावनाओं का
अपार समुन्द्र लहराता है
मेरा अपना वजूद है
जो मुझे जिन्दा बनाये रखता है
मैं कठपुतली नहीं हूं
जो केवल तुम्हारे इशारे पर नाचती रहूं
मेरी डोर अभी तक मेरे हाथों में सुरक्षित है।
मेरे न्यायाधीश बनते शायद तुम भूल गये
कि तुम भी सर्वाधिकार सम्पन्न नहीं
तुम तो पदेन हो ,कुछ समय के लिये
सताधीश बनाये गये हो
हम जैसो की स्वीकृति केबाद
मत इतराओ इतना कि अपना बोध खो बैठो
वर्चस्व सदैव कायम नहीं रहा करता
ये तो समय है कि तुम सत्ताधीश बना दिये गये हो
पर भूलो मत,मानवता का दामन छोडो मत
क्या जानो किस स्वाभिमानी के हाथों तुम्हारा पतन हो
मेरा तो क्या ,मेरा वजूद तो तब भी कायम रहेगा
जब तुम्हारा पतन होगा
पर तुम्हारे लिये बन्द होते सारे रास्ते
और तुम्हारा बिलखना मुझसे देखा न जायेगा
इसलिये सुन सकते हो सुनो
सत्ता के मद मेंचूर तुम जोभी हो
तुम्हारा नाम जो भी हो
वही करो जो उचित लगे
मैंने तो अपना मार्ग चुन लिया
अब मुझे क्या,तुम गिरना चाहते हो तो गिरो
पर फिर मत कहनाकि
मेरा कोई शुभ चिंतक नहीं रहा
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अब मुझे क्या,तुम गिरना चाहते हो तो गिरो
ReplyDeleteपर फिर मत कहनाकि
मेरा कोई शुभ चिंतक नहीं रहा
सार्थक संदेश ,अच्छी रचना
आत्मविश्वास से लबरेज़ बहुत ही सार्थक कविता । यह आपके ही व्यक्तित्व का एकदम सच्चा प्रतिबिम्ब प्रतीत होता है ।
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