कल तो मेरा बचपन लौट आया ,
अपने पचास वर्षों को पीछे छोड़ ,
मैं अपने माँ-बापू के घर आँगन की ,
चिड़िया बन खूब फुदकी |
चोर सिपाही खेली ,
माटीकेबर्तन बनाए ,
ढेरों लाल-पीले -नीले हरे
गुब्बारे खरीदे और उन्हें लेकर खूब खेली |
फिर दीबले की चुस्की भी खाई ,
पापा के कंधे पर बैठ मेला देखा,
झूला झूला और खुशी-खुशी
माँ की छाती में दुबक सोगई |
मेरे घर की छत पर
बच्चों की किलकारी के बीच
मैं भी खूब चहकी |
हाँ मैं खुश हूँ बहुत खुश हूँ
मेरा बचपन जो लौटा है|
तुम्हारा क्या
तुम तो मुझे कल भी पागल कहते थे|
जब मैं खुले मैदान में
यूं ही दौड़ लगाने के लिए,
तुम्हारे निहोरे करती थी |
और तुम बड़े होने का वास्ता दे
मुझे गुमसुम रहने की सीख देते थे|
आओ,मेरे संग
तुम भी बच्चा बन जाओ
कुछ क्षण के लिए |
और देखो बचपन कितना भोला होता है
और हमें ऊर्जावान बना जाता है|
तुम भी बच्चा बन जाओ
ReplyDeleteकुछ क्षण के लिए |
सुन्दर आह्वान, बच्चा बन जाने का सुख क्या कहने
sahi kaha...bachpan sach me bada urjavaan hota hai...
ReplyDeleteतभी कहते हैं बच्चों का बचपन नहीं गँवाओ।उन्हें खेलने दो ।
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