Tuesday, May 18, 2010

मेरा बचपन लौट आया

कल तो मेरा बचपन लौट आया ,

अपने पचास वर्षों को पीछे छोड़ ,

मैं अपने माँ-बापू के घर आँगन की ,

चिड़िया बन खूब फुदकी |

चोर सिपाही  खेली ,

माटीकेबर्तन बनाए ,

ढेरों लाल-पीले -नीले हरे

गुब्बारे खरीदे और उन्हें लेकर खूब खेली |

फिर दीबले की चुस्की भी खाई ,

पापा के कंधे पर बैठ मेला देखा,

झूला झूला और खुशी-खुशी 

माँ की छाती में दुबक सोगई |

मेरे घर की छत पर

बच्चों की किलकारी के बीच 

मैं भी खूब चहकी |

हाँ मैं खुश हूँ बहुत खुश हूँ 

मेरा बचपन जो लौटा है|

तुम्हारा क्या

तुम तो मुझे कल भी पागल कहते थे|

जब मैं खुले मैदान में

यूं ही दौड़ लगाने के लिए,

तुम्हारे निहोरे करती थी |

और तुम बड़े होने का वास्ता दे 

मुझे गुमसुम रहने की सीख देते थे|

आओ,मेरे संग

तुम भी बच्चा बन जाओ 

कुछ क्षण के लिए |

और देखो बचपन कितना भोला होता है

और हमें ऊर्जावान बना जाता है|

3 comments:

  1. तुम भी बच्चा बन जाओ
    कुछ क्षण के लिए |
    सुन्दर आह्वान, बच्चा बन जाने का सुख क्या कहने

    ReplyDelete
  2. sahi kaha...bachpan sach me bada urjavaan hota hai...

    ReplyDelete
  3. तभी कहते हैं बच्चों का बचपन नहीं गँवाओ।उन्हें खेलने दो ।

    ReplyDelete