Wednesday, August 25, 2010

अब कोई चिठठी क्यों ं नहीं लिखता?

इस एस.एम.एस. ,मोबाइल,फेसबुक और न जाने क्या _ क्या के युग में चिठ्ठी पत्री की बात करना पिछडापन कहलाता होगा ै।पर मैं क्या करूं मुझे जो आनन्द पत्र पढने और लिखने में^ आता है उसकी बात ही निराली है।आज मैंने अपने पत्रों की फायल निकाली और मां का पत्र बार-बार पढा। मेरी मां जो बहुत कम बोलती थी पर पत्र में मुखरित होती थी ।
मैंअपनी नौकरी पर पहली बार घर से बाहर हैदराबाद निकली थी और घर को बहुत याद करती थी ।मां -पिता महीने में एक पत्र जरुर लिखते थे और वह पत्र मुझे दुनिया दारी सिखाते थे ।उन पत्रों मे6 घर की हर-छोटी -बडी सूचना होती थी। वे पत्र मुझे जगत से जोडे रहते थे । केवल हम भाई बहिनों के बारे में ही नहीं ,बल्कि घर के पालतू जानवर ,सेवकों और यहां तक कि अडोस-पडोस की सभी बातें विस्तार सेहोती थी । सम्बोधन ही इतना मधुर हुआ करता था किलगता था माँ^ अपने हाथो^से प्यार से खाना खिला रही हो|पिताजी का एक वाक्य तो आज भी नौकरी में समय का पाबन्द बनाए हुए है| बार-बार लिखते थे _बेटा काम पर जाने में कभी देर मत करो|यदि दस बजे पहुचना हो तो कोशिश करो कि ९ -५५ पर पहुच जाओ|
छोटी कुक्कू अपने पत्रों में ढेरो सबाल लिख भेजती थी और घर में यदि कभी कुछ गडबड घट रहा होता तो उसकी सूचना सबसे पहले गुप्तचर के रूप में मुझे दे देती थी| भैया हमेशा ढाढस बंधाए रहते और दीदी हर पत्र में दुष्ट लोगो से बचने की सलाह देती रहती थी |
विवाह के दो साल बाद ही मुझे नौकरी पर जाना पड़ा था | पति ने जब पहला पत्र भेजा तो मन बहुत उमंगित था |पत्र देखते ही और सुन्दर हरफो में पते के स्थान पर अपना नाम लिखा देखा तो न जाने कितनी मधुर यादे साथ चली आई|सभीस्टाफ सदस्यों के बीच बैठी थी इसलिए पत्र खोलने का साहस नहीं हुआ |जैसे ही शाम को घर पहुची ,दरवाजा खोलते ही पहला काम किया पत्र को पढना| पत्र पढती जाती थी और अपने घर को जीती जाती थी |पति के पहले पत्र के नाम पर जो कल्पनाएँ पाल रखी थी सब धराशाई हो गई| पत्र की शुरुआत प्रिय से थी |बहुत ही सधी भाषा में कुछ जरूरी सूचनाये थी |माँ-बाबूजी और बिट्टू की परेशानियों^ का जिक्र था और अंत में
तुम्हारा प्रिय लिखकर पत्र खत्म हो गया था|सच मानिए वह छोटा सा सूचनाओ से भरा पत्र मुझे उर्जावान बना गया था | न जाने दिन में^ कितनी बार उन पंक्तियोंको पढती और धीरे-धीरे पूरा पत्र ही कंठस्थ हो गया था|
मेरी सखी पत्र के रूप में^साहित्य ही लिख दिया करती|आज भी मेरे मित्रों^ के यदा-कडा पत्र आजाते है^ पर उन्हें^ पत्र कहना पत्र विधा का अपमान करना है |अब पत्र मनोयोग से नही लिखे जाते वरन दो लायनेघसीट दी जाती है |मै ठीक हूँ आशा है तुम स्वस्थ होगी | बस पत्र समाप्त |अरे भाई नेहरूजी ने तो पत्र के माध्यम से ही अपनी बेटी को पूरे भारत के दर्शन करा दिए थे |पत्र लेखन तो एक कला है |आपकी लिखावट आपके व्यक्तित्व का दर्पण है\आपकी लेखन शैली ,आपके जीवन दर्शन को बताती है| आपकी शब्द संपदा विस्तृत होती है|पत्र चाहे औपचारिक हो ,अनौपचारिक अथवा व्यावसायिक हो ,अपनी बात कहने का माध्यम तो है|फिर इन पत्रो६ से परहेज कैसा ?|ठीक है आपके पास सूचना संसाधन के ढेरो विकल्प मौजूद है आप फोन,मेल फेक्स कर सकते है पर पत्र लिखने के अपने लाभ है|आज भी अपने सगे संबंधियो को चिठ्ठी-पत्री अवश्य लिखे |अपने बच्चों उनके जन्म दिन पर एक अच्छा पत्र लिखकर अवश्य दे^| पत्र संबंध सुधारने का अच्छा जरिया है|आपका पत्र एक विशिष्ट पत्र है जो आपके भावों-विचारों को खोलता है |अब आप इसका फ़ोर्मेट भी इंटरनेट से डाउनलोड करते है तो इसमे आपका अपना क्या है?अपने प्रियजनों के जन्मदिन ,विवाह,त्योहारों के अवसर पर शुभकामनाये भी ग्रीटिंग कार्ड भेजकर इतिश्री माँ ली जाती है| क्या हम एन अवसरों पर अपने भावो को व्यक्त करने के लिए एक सुन्दर पत्र नहीं लिख सकते ?अब कबूतर की आवशयकता भी नहीं महसूस की जाती क्योकि किसी को अपने पहले प्यार की पहली चिठ्ठी जो नहीं लिखने होती|अब खातों में फूल नहीं भेजे जाते | अब तो हम इतने व्यस्त हो गए है कि पत्र लिखने और पत्र पढाने के लिए हमारे पास समय ही नहीं है,फिर कितने कागज़ की बचत भी हो रही है ना |

2 comments:

  1. अब तो हम इतने व्यस्त हो गए है कि पत्र लिखने और पत्र पढाने के लिए हमारे पास समय ही नहीं है........

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  2. आपकी हर बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ ! पत्र मन की गहराई में दबी छिपी भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे अच्छा माध्यम है ! फोन पर भी कितनी बात हो सकती है ! मानव स्वभाव से ही संकोची होता है, सामने कुछ कहने से बचना चाहता है ! लेकिन पत्र के माध्यम से उसकी भावनाओं का झरना निर्बाध बहता जाता है और वह अपना ह्रदय खोल कर रख देता है ! भावनाओं का यह प्रदर्शन सामने वाले के लिए कितना मजबूत सहारा बन जाता है इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता ! अब जब पत्र लिखने की परम्परा प्राय: विलुप्त होने के कगार पर है रिश्तों की गहराई भी कम होती जा रही है और अनेकों हृदयों की भावनाएं अनकही ही रह जाती हैं ! बहुत सार्थक एवम् विचारोत्तेजक आलेख !

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