आज एक बच्ची के सवाल ने
कर दिया मुझे अनुत्तरित ।
जब सभी बच्चो ने
आजादी के तराने गाये
और कल के कार्यक्रम की
तैयारी मे वे ेउल्लसित
नज़र आये
े तब
कक्षा के बाहर झांकती
दो आंखो ने
बडी मासूमियत से
मुझ पर प्रश्न दागा ।
ए,दीदी मुझे भी बताओ ना
ये आजादी क्या होती है
भारत माता कैसी होती है
क्या वह भी मेरी मा की माफिक
दिन भर सिर पर
बोझा ढोती है ।
और क्या उसके बच्चे भी
मेरे जैसे फटेहाल घूमते है
क्या उसका नन्हा बेटा भी
भूख से े चीख -चीख कर
रोता है और बापू के
हाथो खूब पिटता है ।
क्या कल मेरी मा के
हाथो मे भी झंडा होगा
क्या कल मेरा शराबी बाप
हम बच्चो को नही पीटेगा
यदि ऐसा होगा तो यह आजादी
बहुत अच्छी मिठाई है
कल सेमै भी पढूगी
भारत माता की जय
और गन्धीजी अमर रहे
के नारो से प्रयास गुजादूंगी ।
अब बोलो न दीदी ये आजादी
रोज रोज क्यो नही आती ।
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... भावपूर्ण रचना, बधाई !!!
ReplyDeleteक्या वह भी मेरी मा की माफिक
ReplyDeleteदिन भर सिर पर
बोझा ढोती है ।
जी हाँ शायद ऐसी ही होती है. आखिर बोझ ही तो ढो रही है
भारत माता आज आजाद कहां ??
ReplyDeletebahut badhiyaa jee
ReplyDeletebachche ke azadi aur usse sambhavit parivartan ke apne sapne hai
बहुत सही लिखा है आपने --
ReplyDelete'ये आजादी क्या होती है
भारत माता कैसी होती है
क्या वह भी मेरी मा की माफिक
दिन भर सिर पर
बोझा ढोती है ।
और क्या उसके बच्चे भी
मेरे जैसे फटेहाल घूमते'
बीना जी ,
आज़ादी अभी तो,जनता से बहुत दूर है .
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बहुत सार्थक रचना और पबुद्ध जनों को सोचने के लिये विवश करती एक सारगर्भित प्रस्तुति ! क्या वाकई आज हम आज़ाद हैं ? बहुत बढ़िया बीनाजी ! बधाई !
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