Monday, October 4, 2010

करवट

मौसम बदल रहा है
नीयत बदल रही है
किस्मत हमारी देखो
मुँह ढकके सो रही है |

हमने कुरान बांची
गीता भी सुन चुके हैं
आरती परमपिता की
रोज कर रहे हैं|

न जाने क्योंकर रूठी
किस्मत हमारी हमसे
सुबह भी हो चुकी है
करवट न बदली उसने|

कोशिश भी कर चुके हैं
हम धैर्य रख चुके हैं
कभी हम बरस चुके हैं
अब रीते हो चुके हैं|

आख़िरी है कोशिश
और दांव आख़िरी है
कर्मों के हम पुजारी
किस्मत भुला चुके हैं|

ताकत न हमने परखी
अपने ही बाजुओं की
अब समझ चुके हैं
कटवट बदल चुके हैं|

4 comments:

  1. किस्मत पर भरोसा करना छोड दे और बाजुओं पर करें , यही है ना इसका सन्देश ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद

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  4. बहुत खूबसूरत रचना ! अपने आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति को डगमगाने ना दें किस्मत खुद हाथ बाँधे आपके सामने नत मस्तक खड़ी होगी मुझे पूरा विश्वास है ! बधाई और शुभकामनाएं !

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