Monday, October 25, 2010

आओ बातें करें।

पाठक गण, आपको आज का विषय अटपटा लग सकता है पर कितना जरूरी है इस छोटे से मुद्दे पर बात करना । आपने प्रताप नारायण मिश्र का आलेख बात तो पढा ही होगा ।तब से कितना पानी गुजर गया पर बात अपनी जगह अब भी कायम है। यह भी हो सकता है कि आज संचार् क्रांति के युग में फोन ,चेटिंग और एस एम एस ने बातों की जगह ले ली हो ।
और अब आमने सामने आप किसी से बातें करने का मौका न पाते हों। हम कितना बोलते हैंऔर कैसा बोलते हैं क्या कभी इस पर विचार किया है? क्या बोलने से पहले हम अपने शब्दों को तौलते है ? क्या जिससे बातें की जारही है उसके पद और गरिमा का ध्यान हम रख पा रहे है ं? हमारे मुंह से निकला एक एक शब्द कभी व्यतर्थ नहीं जाता ।हमारे शब्द किसी के चेहरे पर प्रसन्नता ला सकते हैं उअर किसी के चेहरे के नूर को छीन भी सकते हैं।कुछ दिनों पूर्व हमारे यहां एक सज्जन आये । यदि उनकी बातों का पूरा ब्योरा यहां दूं तो आप स्वत: ही समझ जायेंगे कि वे ह्रजरत ्पूरे समय केवल अपना गुणगान ही करते रहे ही करते रहे ।कभी- कभी तो अपने को इतने ऊंचे पाय्दान पर रख देते कि सुनने वाले को खीझ पैदा हो जाती।इतना बडबोला होना ठीक नहीं ।
बोलने से पहले शब्दों का चुनाव करें,उनकी वाक्य में स्थिति निशिचित करें ,माहौल का ध्यान रखें किसी खुशी के अवसर पर गये हैं तो वहा6गमी के े प्रसंग न सुनायें ,किसी बीमार को देखने गए हैं तो स्वस्थ होने की बातें करें न कि उन् प्रसंगों को छेडे जिनमें उस तरह के मरीज चल बसे हों। जीवम मृत्यु तो निशिचित है पर आप्की बातें बीमार और उनकेघर वालों पर बहुत प्रभाव डालती हैं।शादी सम्बन्ध के मामलों में बातें करते समय तो और भी सतर्क रहना चाहिए। सब कुछ सच बता देने पर कम से कम सम्बनधों में कटुता नहीं आती। पहले सब्ज्बाग दिखाकर सम्बन्ध तो तय किए जा सकते हैं पर उनका अंत कभी सुखद नहीं हुआ करता। भले ही यह सुझाव आपको व्यावहारिक न लगे पर सोलह आने सच तो यही है कि बातोमें स्पष्टता आपकी स्थिति को मजबूत बनाय्रए रखती है।
बहुत अधिक बोलने वाले अक्सर मात खा ही जाते है । बचपन में जब कहीं पत्र भेजना होता था तोमां कहती थी बेटा पहले रफ कागज पर ल्ख लो कहीं सक्शात्कार देने जाना होता तो उसका अभ्यास पहले घर पर करने की सलाह दी जाती थी ।आज मुझे उन सब बातो का औचित्य समझ आता है।बातें तो सभी करते हैं पर सोच समझ कर बोलंने वालों की तो बात ही कुछ और होती हैं।

2 comments:

  1. अरे वाह आप को भी मिलते हे ऎसे लोग... हमारे यहां भी कई मित्र हे, जब भी उन का फ़ोन आ आ जाये तो दो घंटे बेकार, हम सिर्फ़ हां हुं ही करते हे, ओर उन के कुत्ते से लेकर लडकी की सास की सारी बढाई हमे सुननी पडती हे, अगर बिमार हे तो उस बिमारी से कितनी मोते हुयी वो पहले गिना देगे:)चलिये पता चला हमारे जेसे भुगत भोगी ओर भी हे. धन्यवाद इस लेख के लिये

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  2. यह सत्‍य है कि आपका हर एक शब्‍द कीमती है, उसे सोच समझकर ही प्रयोग करना चाहिए। बहुत ही साधारण ढंग से कही गयी अच्‍छी बातें।

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