Monday, February 21, 2011

वह बूढ़ा नीम और मेरे बाबा जी

कुछ यात्राएँअचानक ही विस्मरणीय बन पडती है| कल ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ| मेरे चचेरे भाई के बेटे की सगाई का अवसर था | मैं और मेरी मेरी बहिन वहां पहुँच गए | वैसे भी हम दोनों ऐसे किसी भी अवसर को नहीं छोडते जहां हमारे अपने लोगों से मिलानाजुलना होताहो| | सब कार्यक्रम की चमक दमक में खोए हुए थे | मैंने भाई से कहा- भैया क्या हम अपना पुराना घर देख सकते हैं ?मुझे सपने में भी विशवास नहीं था कि भाई इतनी जल्दी मेरे इस प्रस्ताब को मान लेंगे | कुछ ही देर मैं हम उस अहाते में थे जहां मेरे पिता का बचपन बीता था और जहां मेरी माँ ब्याह कर आई थी\ वहाँ पहुंचते ही मुझे माँ की बताई छोटी-छोटी बातें बेहद याद आरही थी कि कैसे छत से गिरकर बाबा के प्राण छूटे थे और कैसे उस घर में चोरों के किस्से माँ ने हमें सुनाये थे|वह लिपा -पुता अहाता आज भी अपने गौरवशाली अतीत को बयान कर रहा था|
वहाँ दो भैंसे बंधी हुई थी और सालो पहले जैसा चित्रण माँ किया करती थी उसमें कोई भी बदलाब नहीं हुआ था | मैनें अपने बाबा को कभी नहीं देखा | मेरी बडी दीदी और भैया जब ५-६ साल के रहे होंगे तभी उनका देहावसान हो गया था| उस समय शायद फोटो खींचने का रिवाज नहीं होता होगा सो हमने बाबा को कभी चित्रों में में नहीं देखा था| बस बाबा जीवंत थे तो केवल माँ और पिता के द्वारा बताई गई घटनाओं में| उसी अहाते में एक बहुत- बहुत बूढ़ा नीम का पेड़ था| जब मैंने अपने ताऊ जी से पूछा कि क्या यह पेड़ पिताजी के समय भी था तो वहाँ खड़े एक बुजुर्ग बोले - लाली तेरे बाप के बाप यानी तेरे बाबा का लगाया हुआ पेड़ है यह | सच में मैं बहुत भावुक हो उठी और दोनों हाथों से कसकर उस बूढ़े पेड़ को पकड़ लिया और बाबा कहते हुए फफक उठी | किसी की समझ में नहीं आरहा था कि आखिर मुझे हो क्या गया है | मैं बीना जिसने कभी अपने बाबा को देखा तक नहीं ऐसा क्यों कर रही हूँपर सच बताऊँ न जाने मुझे ऐसा क्यों लगा कि मेरे बाबा अपनी पोती को सूखे पत्ते गिराकर आशीर्वाद दे रहे हों | वो स्पंदन मेरा पीछा आज भी नहीं छोड़ रहा | मन करता है बस उस अपने नीम बाबा के नीचे कुछ पल और गुजार लेती |मेरे अंधे बाबा अपने अंतिम समय में मुझे लेकर क्या कल्पनाएँ कर पाए होंगे मैं नहीं जानती क्योंकि उस समय तक तो मेरा अस्तित्व भी नहीं था |
पर हमारे पूर्वज हमेशा हमारे साथ स्सये की तरह बने रहते हैं | उस नीम बाबा को देखकर ही मुझे ख्याल आया कि पिताजी के हाथों लगा वह बूढ़ा पीपल शायाद्बाबा के नीम की ही प्रेरणा रहा होगा| सारी की सारी यादों ने अपने सभी पाठ खोल दिए है और मैं बाबली सी कभी इधर तो कभी उधर जाती अपने लगाए छोटे-छोटे पौधों अपनी संतानों के लिए बूढ़ा नीम और पीपल बनाने के स्वप्न देखने लगी हूँ कि कभी मेरे नाती-पोते भी इन पेडों में हमें अनुभव कर पायेंगे|

3 comments:

  1. काश ये भावनाएं भावी पीढी में भी बनी रहे।

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  2. हां जिन्हे अपने बुजुर्गो की इज्जत का ख्याल होता हे, उन से प्यार होता हे उन्हे उन की लगाई चीजो से भी उतना ही प्यार होता हे जितना उन से, आप की भावना देख कर दिल भर आया, धन्यवाद

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  3. बहुत सुन्दर व भावपूर्ण लेख।

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