Wednesday, June 3, 2009

कहां गये वे खेल खिलौने?

कहां गये वे खेल खिलौने ? समय बदलने के साथ सब कुछ बदल गया।छुपा_छुपाई,आइस-पाइस,किलकिल कांटे,सातटप्पे बाला गेंद का खेल,गिट्टीफोड, चोर् -सिपाही,अटकन-बटकन दही चटाके-वन फूले बंगाले,बाबा बाबा आम दो,बाबा बाबा कहां जारहे गंगा नहाने,गुटके खेलना,इमली के चीयों से चक्खन पे खेलना,जमीन पर आक्रति बना उसमेंगोटी डाल इक्कम दुक्कम खेलना,सहेलियोंकेसाथ रस्सी कूदना,पेड्पर रस्सी डाल झूला झूलना,मां का पुराने कपडों से सुन्दर सी गुडिया बना देनाऔर सहेली के गुड्डे से उसका ब्याह रचाना,मोहल्ले मेंहाथोमेंपेड की टहनी पकड बारात निकालना,गुदिया की शादी मेंढेर सारेझूठ-मूठ के पकवान बनानाआदि-आदि। मुझे तो अपना वह समय आज भी याद है जब होली के मेले मेंमिट्टी के खिलौनों के लिये हमारी पहली फरमायश् होती थी,रंग बिरंगे गुब्बारों पर हमारी ललचाती निगाहें टिकी रहतीथीऔर जब तक वे गुबारे हमारे हाथों की शोभा नही बन जाते थे हम बच्चोका रूठना मटकना बरकरार रहता था।  

पुरानी आदत वश जब मेले में जाकर मैंगुब्बारे और मिट्टी के खिलौने खरीदने लगी,संसथा में बच्चो के लिये कपडे की गुडिया बनाने लगी ,मिट्टी के खिलौने बनबाने लगी तोमुझे पहली टिप्प्णी कुछ इस रूप में मिली क्या इस जमाने में भी पचास सालो को वापिस लाने की कोशिश कर रही हो,समय के साथ कदम मिला कर चलो बाजार में सब कुछ मिलता हैक्यों खुद को और बच्चों को परेशान कर रही हो।मुझे लगता है हम अपने आलस को छुपाने के लिये नये जमाने का तर्क गढ़् लेते हैं


 
आज जब बच्चों के खेल और खिलौनौ की बात आती है तो सारे केसारे विध्वंसात्मक खिलोने हमने उनके हाथ में पकडा दिये है6कहींढिसुम-ढिसुम करती बन्दूके है तो कहीं भयंकर आवाजेंकरती गाडियोंऔर हेलीकोप्टरों के मोडल है।खेल के नाम पर या तो वीडियोगेम है अथवाहाथों में रिमोट लिये कार्टूनों को देखतेऔर एक ही स्थान पर बैठे जादुई प्रभाव में बन्धे बच्चे।शारीरिक व्यायाम के नाम पर हम उन्हें दो कदम भी नहीं चलने देते।क्या यही आधुनिकता है जिसके चलते हम अपने बच्चों को अपंग बना रहे हैं आज हम केवल उसके बौद्धिक विकास में ही अपनी पूरी शक्ति झोंक रहे हैऔर उसे भी एक रिमोट के रूप में तैयार कर रहे रहे है।उन खिलौनों और खेलों से बच्चों का जितना शारीरिक और मानसिक विकास होता था कहां गये वे खेल-खिलौने?

5 comments:

  1. chaliye achha hai yadi ham sab us puraane samay ko yaad kar rahe hain to chaahe ab wo samay laut kar naa aaye..magar ek na ek din bachchon ko lubhaayengee uskee kahaaniyaan...uskee yaadein...haan wo samay anmol tha.....

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  2. खूब याद किया आपने बचपन को और इसी के माध्यम से एक सकारात्मक संदेश भी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. aapka kahna bilkul sahi hain beena ji ,pahle ke khel khikauno ki bat hi kuch aur thi

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  4. YAAD DILANE KE LIYE SHUKRIYA.
    EK-EK KHEL KI JANKARI DE SAKO TO YEH KHEL AAJ FIR JINDA HO SAKTE H.
    M TO JARUR KARNE KA PARYAS KARUNGA.

    RAMESH SACHDEVA
    hpsdabwali07@gmail.com

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  5. वक्त की धूल ने सबको दबा दिया।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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