Sunday, June 7, 2009

मेरी मां की साडी

जब हुआ हो उनमेंवैचारिक मतभेद

शायद तात ने खींची हो मां की साडी

जी हा ंमां की साडी, जो फट गई ठीक बेचारी

आये थे घूम पिता श्री 

मन में उल्लास भरा था
थे धूम्रपान के मद में

पकडी ठीक मां की सारी

जी हां मा की साडी ,जो जल गई थी बेचारी

दिया जन्म था हमको

हम आठों की  ही जननी

करते थे मूत्र विष्ठा भी

आधार थी मां की साडी,

जी हां मां की साडी,जो सब सहती थी बेचारी

थे उत्पात मचाते

हम बाहर जाना चाहते

रहती थी हमको जल्दी

भिगो पानी में पल्ला

मुख पोंछा था हम सबका

वह भी थी मां की साडी

जी हां मां की साडी,जो टोवल बनी बेचारी

निहित सभी था उसमें

जो कुछ भी उसने भोगा



प्रप्रेम समर्पण मुख्य ध्येय था

इच्छा अनिच्छा का प्रश्न नहीं था

चुप सहती थीबेचारी     

जी हां मा की साडी,जो पर्दा बनी बेचारी।

धोया था मां ने उसको फैलाया था आंगन में

हम खेल रहे थे छुपा-छुपी उसके ही मस्त गगन में

असीम प्रेम था उसका,वह भी ठीक मां की साडी

जी हां मां की साडी,जो सीमा हीन बेचारी

हो गई थी बहुत पुरानी

पर फैंकी नहीं गई थी

उससे बना बिछौना

सोयेगा नन्हा छौना

जो गद्दी बनी पडी थी

वह भी थीमांकी साडी

जी हां मां की साडी ,जो कल्पवृक्ष थी सारी।



1 comment:

  1. veenaji maaMM kebaare me ek sundar aur bhav may abhivyajkti hai maa aisee hotee hai apne liye kahaan sochti hai bahut achhi post hai aabhaar
    www.veerbahuti.blogspot.com

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