Tuesday, June 30, 2009

मेरी कविता

क्यों होती है एक औरत रोज-रोज परेशान

क्या उसे हक नहीं होता अपनी जिन्दगी जीने का?

क्यों एक आकार नहीं ले पाते उसके अपने सपने?

क्यों हर कदम पर उसे एक -एक इंच बढ्ने से पहले 
सोचना होता है कई-कई बार?

क्योंउसकी जिन्दगी के फैसले दूसरों की स्टाम्प के होते है मोह्ताज?

आखिर क्यों और क्योंहोता है ऐसा?

पढ्ते हुए ढेरों-ढेरों पन्ने किताबों के

देखते हुएहजारों सच्ची घटनाओंको

अब लगने लगाहै

होता है ऐसा

क्योंकि औरत कभी नहीं चुनती अपना जन्म

कुछ और की आस में पलती रहती है नन्हींजान

और जब आती है इस दुनिया में

ढेरोंविसंगतियोंका शिकार होकर

अपनी जिजीविषा के बल पर

चुनौतियों का सामना करती जातीहै

चलती जाती है अपनी उस मंजिल पर 
जिसे उसने कभी चुना ही नहीं होता

बस अपनों की खुशियों की खातिर

हर मुसीबत को झेलती कभी उफ तक नहीं करती

पर वही अपने जब देते हैं दगा

कर देते है उसे यूंही बदनाम

तो वह टुटती ही जाती है और एक दिन
बिना किसी शिकवा-शिकायत के 
 सब कुछ छोड चल देती है फिर किसी को खुश करने

क्योंकि उसका जन्म ही

दूसरोंकी इच्छा पर निर्भर होता है

और इतना ही नहीं अब तो उसकी मौत भी 
दूसरे हे तय करने लगेगी है।

-- 
Dr.Beena Sharma
http://prayasagra.blogsp

2 comments:

  1. sach me aurat ke saath yahi hota aaya hai....

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  2. बहुत मार्मिक रचना । अति सुन्दर ।

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