Sunday, July 5, 2009

आया सावन झूम के

कल से सावन लग रहा है और सावन के ढेरों गीत मेरे जेहनमें गूंजने लगे हैं। मां के घर में पीपल और सरिस के पेड पर मोटी रस्सी का डलता झूला.ऊंचे-ऊंचे झोटे लेते और रिम्झिम फुआरों के बीच सावन कीमल्हारें गाती हम बहिनें और हमारी सखियां।सच में वह सब मैं कभी भी नहीं भुला पाती।आज मां-पिता तो नहीं रहे पर पीपल और सरिस के बूढे होटल पेड आज भी अपने आंचल में हमें लेने के लिये बेताब हैं।सावन हमेशा से बहिन -बेटियों के लिये ढेरों सौगातलेके आता है।हरियाली तीजें,नाग पच्मी, और भाई-बहिन का प्यारा सा त्योहार राखी।हर सुबह एक नई उमंग. घर कमें बनते ढेरों पक्वान,पूएऔर खीर।हाथों में रचती मेंहदी और सुबह उठते ही यह होड कि किस्की मेंहदी अधिक अच्छी रची है।
अरी मेरी बहिना सातों सहेली चलो संग झूला पे चल के झूल ले, तो कभी मेंहदिया के लम्बे चौडे पत्ता ,पपीहा बोले।कबी गोबर्धन को बीजना हरियाली तीजें आयेंगी,तो कभीराधा किशन के गीत।आधी रात तक झूलने के बाद भी मन नहीं भरता था।मां आस्पास के घरों में भी झूलने का न्योता भिजबा देती।हमारा पूरा घर भरा- भरा लगता और हम बच्चे सावन की बूंदों में भीगने का आनन्द उठाते रहते।
कहने को तो आज भी हरियाली तीजों पर हरे रेंज की साद्यों की नुमायश होती है पर अब सब कुछ हाईटेक हो चुका हैआज मुझे लगने लगा है कि जो भी शेश बचा है उसे कस के पकड लूं कहीं सब कुछ हाथों से फिसल ना जाये

3 comments:

  1. यह सब कुछ बचा रहे यही इच्छा है

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  2. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति .

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  3. सावन महीने का सावन सबके लिए हरियाली लानेवाला हो जरूरी नहीं पर मन का सावन हमें हमेशा हरा रख सकता है।जरूरत है मन के सावन को हरा रखने की।

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