Thursday, August 27, 2009

पिता के लिये

दिन की शुरुआत,आज का सुप्रभात,पक्षिओंकी चह्चहाट,माता की कसमसाहट,भ्राता की घबराहट,बिटिया की अकुलाहट,नाती-पोतोंकी तुतलाहट'सब कुछ तुम्हे समर्पित है पिता।
पिता जब तुम थे,कभी जाना ही नही,पिता का न होना,कैसा लगता होगा,मासूमोंको।
बस किताबों पडी और्दादी-नानी की कहानी से सुनीकथाओं से भी कहांअनुमान लगा पाते थे ।
बस दुख मेंडूब कह भारत देते थे च-च वह पिताविहीन है,और हमपिता के साये तले फिर रुनझुन-गुनगुन मेंसिमट जाते।
जब हम खुद मा-पिता के पद से नवाजे गये तब भीतुम्हारे अनुभव हमें सहारा देतेऔर हम पित्रत्व के बोझ तले भी तेरी गोद में आबच्चे ही बने रहते ।
पर अब
जब तुम सिमा गये हो, राख बन बहा भी दियेगये होपवित्र गंगा में,तुम्हारी फोटो पर चडाया गयाचमकता बडा सा हार र्भी तुम्हारे जाने को नही ,अस्तित्व को ही बडाबा देता है। मां का सूना- सूना माथा,सूनी कलाई,और नंगे -नंगे से पांव हमें रुलाने के लिये भरपूर मददगार होते हैं


पर हम बडे बनकर जल्दी से रुलाई को गले में ही घोंट कर,बडे समझदार से बनते,मां और छोटों को ढाढस बधाते,उन्हें गीता सुनाने लगते है
कभी-कभी तो उनकी मूर्खता परर्डांट भी पिलाने लगते है
पर ,पिता शायद आप नहीं जानते,यह सब करते -करते हम कितना टूट जाते है। भरभराया दिल तेरी गोद में बैठ गले तक़ आने लगता है और हम समझदारी दिखाते फिर अपने कच्चेपन का गला घोंत,अपनी सुबकियों को रोक एक जिम्मेबाराना व्यवहार निभाते- निभाते ,इतना थक जाते है
कि बस आकाश में चमकते तारे से तेरा पता पूछ बस तुझसे दो बात करना चाहते हैंजानते हुये भी
कि तेरी दुनिया में हम जैसों का प्रवेश अब निषिद्ध हैक्योंकि शेष बचे दायित्वों को पूरा करने के लिये हम छोदे गये हैं पिता तेरे द्वारा।
पिता सच-सच बताओ,क्या जब हुये थे तुम पिता विहीन तब कुछ ऐसा ही घटा था ,जैसा आजकल मेरे साथ घटता है।।।

1 comment:

  1. बहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट! भाव और भाषा पर आपक अधिकार गज़ब का है...लिखती रहें...
    नीरज

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