झूठे- झूठे सिर चडे,सत्य हो गया दीन
सत्य हो गया दीन ,करें अब क्या कोई
झूठ बोलना सीखिए,सच की खो गई लोई
विनती करता सच फिरे,कोई न माने बात
सत्य बेचारे की रही,आज यही औकात
झूठ बोलना सीखते ,क्यों होते बदहाल
साधु तेरी नम्रता , न होती फटेहाल
न होती फटेहाल, ठाठ तेरेभी होते।
कर सकते थे राज,कनाडा बैठे-बैठे
अब भी खुद को तौलताधर्म तुला पर तू
धीरज धर फिर बैठ जामौन होजा तू,र्म
क्या आप अभी से हिम्मत हार गईं?ऐसे कैसे काम चलेगा?दुनिया अपना काम करेगी,हम अपना काम करेंगे।
ReplyDeleteसच का मूल्य किसी युग मे कम नही हो सकता । कृपया कवि राजेश जोशी की कविता पढ़ें "झूठ एक बाजे की तरह बजता था" - शरद कोकास
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