सब कुछ है गडमड होता,दिखता भी अब तो कम है।
तार हैं अब निश्चल , वीणा भी सो गई है ।
कितने कदम की दूरी, तुझसे शे ष रह गई है।
स्वर्गिक सुख की छाया , छू भर गई थी ।
वेदना की लहरें भिगो- भिगो गई है ।
हर पल तुझे पुकारा, कहीं भूल रह गई है।
तेरी कृपा भी ईश्वर , मरीचिका बन गई है।
अपनी दया की दृ ष्टि ,कर दो मेरे अब ऊपर ।
बहुत सह लिया है, शक्ति नहीं बची है।
बहुत ही सुंदर पंक्तियां हैं बीना जी , मगर साज सज्जा में थोडी सी और मेहनत की जाए तो क्या बात हो। एक तो फ़ोंट को बडा कीजीये और पंक्तियों को करीने से सजाईये मेरा मतलब दो दो की शक्ल में एक साथ रख के देखिए कितने सुंदर लगते हैं । अन्यथा न लीजीएगा बस सलाह मात्र है ।
ReplyDeleteबड़ी मर्मस्पर्शी रचना है । लेकिन आपके व्यक्तित्व से कम मेल खाती है । आप जैसी जुझारू और संघर्ष में विश्वास करने वाली महिला हार मानने के लिये नहीं है । अपनी सोच से सकारात्मकता की पकड़ ढीली ना होने दें । ' ऐसा ना होने दें ।'
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