Tuesday, January 19, 2010

सांस्कृतिक पर्यावरण और शिक्षा

शिक्षा मानव को शिक्षित ही नहीं करती,अपितु उसे विचारसंपन्नऔर सचेतन भी बनाती है|शिक्षा का मुख्य उद्देश्य 

सूचनाओं का संग्रहण नहीं,मनुष्य का सर्वागीण विकास है|प्राथमिक स्तर पर बालको के शैक्षिक विकास का स्वरूप इतना विशाल आकार ले चुका हैकि उसके आगे बचपन बौना हो चुका है |वह किताबो के बोझ से दब गया हैऔर अपने आसपास फैले प्राक्रटिक सौंदर्य का आनन्द भीनही ले पाताजब्की इस उम्र तक्बच्चो को केवल आक्षरिक और अन्कीय ज्ञान ही दिया जाना चाहिए |शेष समय्पर्यावारंके माध्यम से शिक्षा के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए |

हमारा पूरा का पूरा पर्यावरण शैक्षिक और प्राक्रतिक संदेशो से घिरा हुआ है |पर्वत की ऊचाई,सागरी गहराई ,लहरों की उमंग.आकाश की विशालताऔर प्रथ्वी का धैर्य कविता की इन ्पंक्तियोमे सिमट  जाता है-पर्वत कहता शीश उठाकर तुम भी ऊचे बन जाओ अथवा प्रकृति हमें देती है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे |पर्यावरण शिक्षा पाठ्यपुस्तको के स्थान पर क्रियात्मक रूप सेदीी जानीचाहिये|मानसिक स्वास्थ्य का मुख्य आधार पर्यावरण में प्राप्त सांस्कृतिक धरोहर है|हम जैसा सुनते है,देखते है और अनुभव करते है वैसे विचार ही हममे विकसित होते है |

                         मानव मूल्यों के शैक्षिक सन्दर्भ उपेक्षणीय हो अपितु शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति में ऐसे गुणों का विकास किया जा सके जिससे निराशा के क्षणों में उत्साह का संचार हो , असफलता में धैर्य बना रहे , निर्णय में विवेक हो, व्यव्हार में शालीनता हो , विपत्ति में सहनशीलता हो , इश्वर और स्वयं में विश्वास रहे , काम में लगन हो , दया क्षमा ,शील शांति गुणों का विकास हो|

                         शिक्षा के माध्यम से इन मूल्यों को विकसित करने के लिए कुछ व्यावहारिक उपायों पर विमर्श किया जा सकता है -

                            *     ध्यान रखें जैसे शब्द हमारे कानो में पड़ते है , हम जैसा सुनते है , वैसे ही विचारों के                                                स्वामी हम बन जाते है | ये विचार ही परिपक्व होकर द्रष्टिकोणबनाते हैऔर द्रष्टिकोण ही   

                                 हमारे जीवन के दिशानिर्देशित करते हैअत:सदैव सत्साहित्य का चुनाव करे|अश्लील 

                                साहित्य न पढ़े|

                          .अपने आस-पास के वातावरणमे अच्छे संगीत को प्राथमिकता दें|शिक्षा परक गीतों,देशभक्ति गीत और संदेशपरक कविताओ को सुने,गुनगुनाये और कंठस्थ करे जिससे ये मूल्य हमारे व्यवहार के अंग बन जाए\ पतंजली योगपीठ का इस दिशा में सराहनीय है|

                        .विवेकानंद,लालबहादुर शास्त्री,गुरुनानक,रामप्रसाद बिस्मिल,चंद्रशेखर आजाद,भगत सिंह  आदि महापुरुषों की जीवनी अवश्य पड़े और जाने कि व्यक्ति अपने कर्मो से महान बनाता है\छोटी-छोटी बात ेजीवन को बड़ा बनाती है|

                         .जीवन के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करे|सकारात्मक चिंतानाच्छे व्यक्तियों के साथ और अच्छी पुसतको के अध्ययन से विकसित होता है |

                          .अपने रोलमोडल स्वयम निशचित करे|शोर्टकट प्रवृति का त्याग करे|

                         .ध्रुव ,प्रहलाद और आरुणी के आदर्शो की उपेक्षा न करे | ये आदर्श आज भी हमारे मनोमस्तिश्क को आलोडित करते है|

                       .नैतिक कथाओं का श्रवण व्यवहार का अंग हो |चरित्र अनुसरण को केवल सैद्धान्तिक विषय न माने उसे व्यवहार में डालने का प्रयत्न करे|

                        .मानसिक प्रदूषण अधिक खतरना क है|हम जैसा खाते पीते है उससे हमारा शरीर प्रभावित होता है लेकिन कानो से सूना और आँखों से देखा गया तो सीधा हमारी अंतरात्मा में प्रविष्ट होता है और मन मस्तिष्क पूरा विषाक्त हो जाता है|

                   .खाए-पीये का विष तो वमन और औषधि द्वारा निकल जाता है  पर सांसकृतिक प्रदूषण का कोई इलाज नहीं है| यह धीमा जहर हमारे अंदर इन्सर्ट किया जा रहा है और हम बिना किसीचू-चपड़ के उस विष के आदि होते जा रहे है| हमें इसा स्थिति के प्रति सतर्क रहना है|

                                                         

2 comments:

  1. Bahut hi sargarbhit aur chintaniy alekh . Apane bilkul sahi likha hai manasik pradooshan sidhe hamare man mastshk ko prabhavit kar hamen is tarah se rogi bana deta hai jisaka ilaj asani se sambhav nahi isliye manasik swaasthy par dhyan dena param avashyak hai. Bachchon ke vyaktitv ke vikas me iske mahatv kee upeksha nahin ki ja sakti. Kya hamari shiksha pranali me badalav ki avashyakta nahin hai? Bahut dino ke bad itna achchha sandesh prasarit karne wala alekh padha. Aabhar.

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  2. Jai Shri Krishna,

    You are absolutely correct; education makes a man perfect. But, we (Indians) must learn to practice what has been taught (this is what we lack the most). Our religious Gurus have larger role for the society as what should they be preaching. After meeting various learned persons in the field, I have summed up following; kindly have a glance and offer your invaluable comments :-


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