Sunday, April 4, 2010

व्यावहारिकता

यदि व्यावहारिकता के नाते 

ना चाहते हुए भी

मुस्कराहट बिखेरनी होती है|

आंसुओं को जज्ब कर 

भरसक खुशनुमा शक्ल  

अखित्यार करनी होती है|

और उन मवालियों के आगे

घुटने टेकने होते हैंजिन्हें आप

स्वप्न में भी देखना पसंद नहींकरते|

तो ऐसी सामाजिकता और

व्यावहारिकता के चलते

बेहतर है एकांत|

जहां आप कम से कम

अपना मन तो खोल पाते है|

अव्यावहारि क   कहे जाते

कम से कम मजबूर तो नहीं होते 

उन आदर्शों और मूल्यों  

की रक्षा तो  कर पाते हैं

जो आपका ओढन और बिछावन होते है|

कम पाते है तो क्या 

अपने मन के राजा तो हैं|

तलवे तो नहीं चाटते 

उन अपराधियों के

जिन्हें मनुष्य कहते

शर्म भी खुद शर्मा जाती है|

ऐसी व्यावहारिकता से तो

कई गुना अच्छा है

अपने वजूद को जिन्दा रख पाना|

1 comment:

  1. मैं आपसे पूर्णत: सहमत हूँ ! अपनी अंतरात्मा को कुचल कर कभी कोई समझौता नहीं करना चाहिए ! ऐसी सामाजिकता का कोई अर्थ नहीं जो हमें अपनी ही नज़रों में गिरा दे ! सारगर्भित प्रस्तुति के लिये आभार !

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