ना जाने क्यों
ये मन
मौसम हो आया है |
जब गर्म हवाएं चलती है
लू सबको झुलसाती है
घर के एसी ,कूलर भी
गरम हवाएं देते हैं
इस मन का क्या हाल कहें
मुरझाई ककड़ी जैसा है|
जब पारा कमहो जाता है
सर्द हवाएं चलती है
जाडे की लंबी रातें
बातों में कट जाती है
यह मन जाने क्यों
भुनी मूंगफली होता है|
जब आती बरखा रानी है
और चाय पकौड़ी चलती है
बरसाती रातों में मन
जाने क्यों भीगा-भीगा है|
पतझड़ का मौसम आया है
पीले पत्तों से बाग अटे
चर-चर मर-मर ध्वनियों से
अपने ही पागल कान ढके
मन भी झरता-झरता सा है|
बासंती मौसम आया है
पीपल की लाल नई कोंपल
मेरे मन को भा गईहै
मन हरियाला सावन है
अब हवा भी देखो महक उठी
आँगन अपना सरसाया है
मन मौसम हो आया है|
मन मौसम हो आया है
ReplyDeleteबढ़िया...बहुत बढ़िया रचना...धन्यवाद
बहुत बढियां
ReplyDeleteलिखते हैं
कभी हमारे ब्लाग पर भी आइये
अच्छा लगेगा
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है ! गर्म लू के थपेड़ों से हमारा मन भी विदग्ध है और इस समय झुलसे सुमन सा मुरझाया पड़ा है ! प्रकृति के साथ तादात्म्य का अनोखा उदाहरण ! बहुत बहुत बधाई व आभार !
ReplyDeleteसमयानुसार चलना ही सार्थकता की निशानी है।
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