हाँ जब मैं छोटी थी
माँ हर बात पर कहती थी
रिश्ते रिश्ते होते हैं
कोई दो दूनी चार के फार्मूले
नहीं हुआ करते|
ये तुम्हारे सवाल नहीं है
जिनके उत्तर अन्तिम पृष्ठ पर छपे हो
और तुम सवाल ना कर पाओ
तो झट उत्तर टीप लो|
हर रिश्ते की गरिमा और उसका वजूद
अपनी शिद्दत से महसूस कर पाते थे|
घर मेंशादी हो ,ताऊ-चाचा,बुआ
मामा,मौसी के यहाँ
भाई बहिन काजन्म हो|
हर बार हमारा जाना सुनिशिचित था|
और रिश्तों की गर्माहट से
और हरहराहट से जिंदादिल होते हम
एक और अवसर की प्रतीक्षा में
खाना -पीना सब भूल जाते|
अब नाते -रिश्तों का क्या
सब भौतिकता निगल गई
अब तय होते हैं रिश्ते
संबंधों से नहीं
खून से नहीं
केवल और केवल आपके
स्टेटस से,
स्वार्थ से ,
मतलब से
अब वाकई रिश्ते गणित हो गए
दो और दो चार हो गए|
वाकई में विचारणीय प्रश्न हैं कविता में......."
ReplyDeleteवाकई रिश्ते गणित हो गए..बढ़िया रचना!
ReplyDeleteरिश्ते गणित
ReplyDeleteसम्बन्ध तड़ित ।
रचना प्रशंसनीय ।