Sunday, April 11, 2010

अब रिश्ते भी गणित हो गए |

हाँ जब मैं छोटी थी

माँ हर बात पर कहती थी 

रिश्ते रिश्ते होते हैं

कोई दो दूनी चार के फार्मूले 

नहीं हुआ करते|

ये तुम्हारे सवाल नहीं है

जिनके उत्तर अन्तिम पृष्ठ पर छपे हो 

और तुम सवाल  ना कर पाओ 

तो झट उत्तर टीप लो|

हर रिश्ते की गरिमा और उसका वजूद

अपनी शिद्दत से महसूस कर पाते थे|

घर मेंशादी हो ,ताऊ-चाचा,बुआ 

मामा,मौसी के यहाँ

भाई बहिन काजन्म हो|

हर बार हमारा जाना सुनिशिचित था|

और रिश्तों की गर्माहट से 

और हरहराहट से जिंदादिल होते हम

एक और अवसर की प्रतीक्षा में

खाना -पीना सब भूल जाते|

अब नाते -रिश्तों का क्या 

सब भौतिकता निगल गई

अब तय होते हैं रिश्ते

संबंधों से नहीं

खून से नहीं

केवल और केवल आपके 

स्टेटस से,

स्वार्थ से ,

मतलब से 

अब वाकई रिश्ते गणित हो गए 

दो और दो चार हो गए|

3 comments:

  1. वाकई में विचारणीय प्रश्न हैं कविता में......."

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  2. वाकई रिश्ते गणित हो गए..बढ़िया रचना!

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  3. रिश्ते गणित
    सम्बन्ध तड़ित ।
    रचना प्रशंसनीय ।

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