Thursday, October 21, 2010

हम स्वयं में खुश क्यों नहीं रह पाते ?

हमारा अपना वजूद इतना छोटा हो गया है कि हमने सारी खुशियों का आधार दूसरो को मान लिया है |कल हम इसलिए दुखी थे कि सामने वाले ने हमें तरजीह नहीं दी और आज इसलिए दुखी है कि मिस्टर क हमसे खुश नहीं है ,आने वाले दिनों में हम इसलिए परेशान रहेंगे कि हमें हमारा मनाचाहा नहीं मिला |क्यों भाई ,क्या हम स्वयं में खुश रहने की आदत नहीं डाल सकते | हमेशा अपने दुःख के लिए सामने वाले को दोषी ठहराना जरूरी है क्या?हम स्वयं में झाकने की कोशिश क्यों नहीं करते ?क्या हमारे साथ जो भी घटा ,उसके लिए हमेशा तीसरा व्यक्ति ही जिम्मेदार होता है / हम उसी काम को ही तो करते है जिसमे सुख मिलता है |यदि हम दबाव में काम कर रहे है तो हमें सोचना होगा आखिर हम उस दबाव में क्यो है ?कही ऐसा तो नहीं हम स्वयं भी उस कार्य में रुचि रखते है और ठीकरा दूसरों के सर फोड देते है | मेरी दोस्त ने मुझसे कहा - हा मुझे भी पता होता है कि यह काम गलत है पर दूसरों के संतोष के लिए मै ऐसा कर देती हूँ |बाद मे मेरी आत्मा मुझे बहुत कचोटती है |अब या तो उन्हें अपनी आत्मा की आवाज् सुननी चाहिए अथवा जो किया उसमे खुश रहना चाहिए था | मैंने उनसे प्रश्न किया जब आपको पता है कि यह कार्य अनुचित है तो आपने आखिर उसे किया ही क्यों ?बड़ा रटा हुआ सा जबाव मिला -यदि मै ऐसा नहीं करती तो मुझसे मेरे अपने नाराज हो जाते |इसका अर्थ तो यह हुआ कि कही न कही आपके मन में भी उस गलत के प्रति मोह रहा होगा | कहने के लिए कह देना और फिर अंतत: वही करना तो ऐसे विरोध का आखिर अर्थ ही क्या हुआ |प्रत्येक व्यक्ति कम से कम अपने विषय में तो जानता ही है अपनी शक्तियों को भी पहचानता है फिर अपनी सीमाओं में खुश रहना क्यों नहीं सीख लेता | उतने ही पैर क्यों नहीं पसारता जितनी उसकी चादर है| दर असल हम अभी तक अपने से ही अनजान है |हम अपनी शक्तियों को परखे विना ही दूसरों के बल पर अपने काम का निर्धारण करते है | हमारी अपनी प्रकृति क्या है , हम् कितना सह सकते है ,हमारी खुशियों का आधार क्या है ?यह सब सोच कर ही जिन्दगी में निर्णय करे|
अपने चारों ओर अपना दायरा बनाए ,उनमें अपनी खुशिया खोजे |अपनी रूचिया जाने |अपने शौको को विकसित करे | खुश रहने के तो अनेको तरीके है ,बच्चे की मुस्कराहट मे खुशिया ढूढे ,किसी जरूरत मंद की सहायता करे और देखे आप कितने खुश हो जाते है ?खुश रहने की की तो कोई सीमा नहीं , अच्छी पुस्तक पढ़े और खुश हो जाए ,आसमान मे उड़ते परिंदों को निहारे और खुश हो ,रचनात्मकता आपको सदैव खुश रखेगी , अच्छा सोचे ,सकारात्मक विचार रखे ,मन को आनंद की अवस्था मे बनाए रखे |भय को अपने ऊपर हावी ना होने दे ,आपकी खुशी आपके हाथो मे है |उसे ढूढने की कोशिश तो कीजिए|

6 comments:

  1. जहां दूसरों के दुख में ही सुख मिलता है। वहां पर इस तरह की सोच बेमानी है। पहले हमें उस स्थिति से बाहर निकलना होगा। जो कि संभव ही नहीं है। अपना सुख सुख, दूसरे का सुख कैसे बने दुख, इसी उधेड़बुन में जुटा मनुष्‍य, क्‍या मनुष्‍य कहलाने का हकदार है ?

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  2. बीना जी,

    जब तक हमारी अपनी सोच स्पष्ट नहीं होगी हम खुद में खुश नहीं रह पाते हैं. हमारी ख़ुशी हमारे मूल्यों में निहित होती है. अपने मूल्यों को हमें किसी के लिए भी नहीं छोड़ना चाहिए. हम दूसरों में भी खुशियाँ तलाश कर सकते हैं. जब हमारे किसी प्रयास से दूसरे के होंठों पर हो मुस्कराहट आती है तो हमें हो आंतरिक ख़ुशी मिलती है वही असली ख़ुशी है. जब उसमें हम खुश होते हैं तो किसी के नाराज और खुश होने की जरूरत नहीं होती.

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  3. बहुत अच्‍छा लिखा है आपने। जिनके अन्‍दर स्‍वयं का आनन्‍द नहीं होता वह हमेशा दुखी ही रहते हैं। कुछ लोग दुख को सुख से ज्‍यादा महत्‍व देते हैं। मित्र के साथ भी शत्रु को लेकर ही दुखी होते हैं। अच्‍छी पोस्‍ट के लिए बधाई।

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  4. जो खुद भीतर से खुश है , आनंदित है ...दूसरों के कारण दुखी नहीं हो सकता ....
    बहुत अच्छा आलेख ..!

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  5. बहुत ही अच्छी बात लिखी कई बार ऐसा होता है की हम कोई गलत काम करते है यदि वो सही हो गया तो हमने किया और गलत हुआ तो दूसरो के सर फोड़ दिया जिसने राय दी जबकि हम खुद कही ना कही उसको करने की इच्छा रखे हुए थे | सह८ कहा की हम खुश रह सकते है पर हम चाहते ही नहीं उसके लिए प्रयास ही नहीं करते है|

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  6. आपकी पोस्ट बहुत विचारणीय और प्रेरक है ! अपने जीवन में भी उसे उतारना चाहती हूँ ! सार्थक सन्देश के लिये बधाई एवं आभार !

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