Thursday, October 28, 2010

लडकी की शादी के लिए क्या जरूरी है –शिक्षा ,नौकरी या दहेज ?

बात तो कई दिनों से मथ रही थी पर आज तो इंतहा हो गई और मैं यह पोस्ट लिखे बिना नहीं रह पाई।मेरी मौसी जात बहिन की शादी 18 नवम्बर की तय हुई,निमंत्रण पत्र भी भेज दिए गये ।मैं बहुत उत्साह में थी ,सबसे मिलने –जुलने का अवसर जो हाथ आया था। पति देव ने भी छुट्टियो के लिए आवेदन दे दिया था और मैं योजनाए बनाने में व्यस्त हो गई। कल शाम मेरे बहनोई का फोन आया । उन्होने जानकारी दी कि दीदी शादी केंसिल कर दी गई है क्योंकि ऐन वक्त पर लडके वालों की मांग बढ़ गई और मैं पूरा करने की स्थिति में नहीं हूं।फोन मेरे पति ने ले लिया और उन्हें सांतवना देने लगे , आपने बिल्कुल ठीक निर्णय लिया, हम आपके साहस की प्रंसंशा करते है और आपके साथ है।
बात तो केवल इतनी सी है पर मैं बहुत सारे सवालों से घिर गई हूं। यदि लडकी की शिक्षा दीक्षा की बात है तो लडकी उच्च शिक्षित है ,नौकरी पेशा की बात है तो बैंक
मेनेजर है, दहेज की बात करें तो कन्या के पिता मध्य्वर्गीय जरूरतों को पूरा कर लेते हैं जिस लड्के से सम्बन्ध तय हुआ वह नौकरी की दृष्टि से लड़्की से एक पायदान नीचे ही है फिर ये शादी क्यों न हो सकी ?पहले तो यह माना जाता था कि अपनी सामर्थ्य के अनुसार माता –पिता जो धन सम्पत्ति ,गहने आदि देते हैं ,उसे ही दहेज कह दिया जाता है । फिर माता-पिता अपनी लड कियों को पढाने लगे ।उनमें जागरूकता आई पर शादी की समस्या मे दहेज के मामले में कोई परिवर्तन नही हुआ। अब लडकिया शिक्षित भी हो गई लडकों के बराबर बल्कि उनसे एक कदम आगे ही ,नौकरी पेशा भी हो गई लेकिन दहेज की समस्या में कोई रियायत नहीं मिली । हम लडकियो की समझ में नहीं आता कि हम करें तो कया करें?
जब पढाई की बात आती है तब भी एक तनाव होता है कि यदि ज्यादा पढ लिख लिए तो मुसीबत कि उतना योग्य लडका नहीं मिला तो ,शोध के लिए जाएं तो शोध निर्देशक का पहला सवाल होता है _अरे भाई तुम् लडकियों के साथ एक ही मुसीबत है अब कहीं बीच में शादी वादी हो गई तो तुम शोध का कार्य क्या करोगी ,अपनी गृहस्थी में लग जाओगी पर यही प्रश्न कभी भी किसी शोध छात्र के सामने नही उठाया जाता जबकि शादी तो उनकी भी होती है ।
जोब के लिए जाये तो फिर वही प्रश्न कि शादी के बाद नौकरी कर पाओगी या नहीं । लगता है जिन्दगी के सारे प्रश्न केवल विवाह और विवाह से ही जुडे हुए हैं । कभी- कभी तो लगता है कि शादी केवल हम लडकियों की ही होती है क्या ?अब यदि किसी कारण से कहीं सम्बन्ध न हो पाये तो भी मीन मेख लडकी में ही निकाली जाती है अरे वो पहले से ही तेज है क्या किसी के साथ घर बसायेगी ।अरे पहले मां पिता की जिम्मेवारी तो उठा ले तब शादी की बात हो ।यदि परिवार में पुत्री ही पुत्री है और यदि कहीं अपने माता-पिता की देखभाल करने का संकल्प ले लिया तो और मुसीबत ।अब उसे शादी के बारे में तो बिल्कुल ही नहीं सोचना चाहिए। हमेशा से लडका अपने माता पिता के साथ रहता है शादी से पहले और शादी के बाद भी और यह बहुत सम्मान की बात समझी जाती है पर यदि आपने कन्या की योनि में जन्म लेकर कहीं गलती से भी इस विषय में सोच भर लिया तो समझो आफत आ गई। बेचारा लडका तो जिन्दगी भर बीच मझदार में पड जायेगा ।अब वह यदि अपनी पत्नी की बातों का समर्थन करता है तो अपने माता पिता की नजरों में ससुराल का मजनू कहलायेगा । आज तक समझ नहीं आया जिन मांबाप की सेवा करके बहू को पुण्य प्राप्त होता है ,उसी सेवा को करते हुए जामाता को निन्दा का पात्र बनना पड़्ता है और लड्की को भी लगातार आलोचना का पात्र बनना पडता है।यदि कडा दिल करके घर की बहू कहीं माता – पिता के विषय में सोचना प्रारंभ कर दें तो यह मान लिया जाता है कि वह ससुराल को क्या देखेगी उसे तो अपने पीहर वालो से ही फुरसत नहीं मिलती
मेरी अनेक मित्र है जिन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया है । उनका पूरा जीवन किसी एक परिवार की सेवा और केवल अपनी ही संतानो के लिए नहीं वरन समाज के एक बडे वर्ग की सेवा में बीत जाता है। हमें तो खुश होना चाहिये पर इसमेंभी हमें इतराज हो जाता है हम खोद –खोद कर यह जानने में लगे रहते हैं कि आखिर उनकी शादी क्यों नहीं हुई ? जरूर कुछ कमी रही होगी और हम तब तक चुप
नहीं बैठते जब तक कि हम अपनेमन की संतुष्टि ना कर लें।कैसी गन्दी मानसिकता है और कैसे गन्दे समाज के बीच रहते हैं हम? कन्या के माता –पिता होना ही इतना दुर्भाग्य पूर्ण होता है कि वे कभी गंगा नहीं नहा पाते ?उच्च शिक्षा दिलाकर तो वे अपने
पैरो पर और कुलहाडी मार लेते हैं। फिर कहीं बच्ची की नौकरी और लग जायें तो माना तो यह जाता है कि सोने में सुहागा पर शादी के लिए यह भी एक समस्या ही है । मसलन जिस शहर में उसकी शादी हो रही है क्या वहां लडकी को नौकरी मिल पायेगी?
क्या लडकी नौकरी के साथ अपने विवाहोपरांत के दायित्वों को पूरा कर पायेगी ? अब उसके सामने दो ही विकल्प हैं या तो वह नौकरी छोड दे और नई स्थितियों मे स्वयम को समायोजित कर ले अथवाऐसी नौकरी खोजें जिससे घर और परिवार बाधित न हो ।
अब इन स्थितियों में क्या यह ज्यादा उचित नहीं है कि वह नौकरी विवाह के बाद ही करना शुरु करे।उससे पूर्व वह स्वयम को नौकरी के लिए तैयार अवश्य कर ले, अपनी शिक्षा दीक्षापूरी कर ले ।
बस आज इतना ही पर मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई ।बाकी का अगली पोस्ट

5 comments:

  1. लड़की के पास केवल आत्‍मविश्‍वास चाहिए, यह है तो उसे किसी चीज की आवश्‍यकता नहीं है।

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  2. अजित जी ,बिलकुल सही कहा आपने | हमे^ अपनी बेटियों को े केवल आत्म विशवास ही देना चाहिए|

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  3. अब क्या कहे जी, अगर लडका ससुराल मे रहे तो किसी को का उसे या उस की बीबी को भी अच्छा नही लगता, कुछ बाते हे जिन से हम सब को समझोता करना पडता हे, बाकी इस लडकी की किस्मत अच्छी थी कि शादी से पहले ही लडके वालो के बारे पता चल गया, ओर सभी लडके या लडके वाले ऎसे नही होते, ओर कई बार लडकी वाले भी उस्ताद निकलते हे.... इस लिये इस बारे कोई किसी एक को दोष नही दे सकता.

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  4. बहुत विचारणीय पोस्ट है आज की ! यह हमारे समाज में रहने वाले लोगों के दोहरे चरित्र को दर्शाती है ! जो असंवेदनशील लोग अनाप शनाप माँग कर सुयोग्य कन्याओं का रिश्ता बेदर्दी से तोड़ कर उनके सपने तोड़ने में और उनका भविष्य बर्बाद करने में तनिक भी देर नहीं लगाते वही दहेज विरोधी मुहिम के झंडाबरदार बन अगले ही दिन दहेज के विरोध में महानता और उदारता का मुखौटा पहने लच्छेदार भाषण देते मिल जायेंगे ! पुरुषप्रधान समाज में आज भी स्त्री से ही घर के काम काज की सारी जिम्मेदारी उठाने की अपेक्षा की जाती है फिर चाहे वह नौकरी करती हो या समाजसेवा या फिर वह बीमार ही क्यों न हो ! आज भी स्त्री की नौकरी के प्रति प्रतिबद्धता कई घरों में उसके जिद या फैशनपरस्ती के रूप में देखी जाती है ! इसीलिये नौकरी या घर गृहस्थी में जब चुनाव करने बारी आती है तो समझौता करने की अपेक्षा लड़की से ही की जाती है ! शायद इसीलिये उन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं लेना चाहता ! यही उनकी हीन भावना और अवसाद का सबसे बड़ा कारण बन जाता है ! इस पोस्ट की प्रतिक्रया में एक पूरा आलेख लिखा जा सकता है ! इतने अच्छे आलेख के लिये मेरी बधाई स्वीकार करें !

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