Wednesday, August 5, 2009

ये लडकियां

पहाड जैसे दुख सहकर भी
क्यों होती है मोम सी सम्वेदंशील ये लडकियां
पिता, भाई,पति और पुत्र को
सहेजे रखकर भी
क्यों होती है अकेली ये लडकियां
निभाने की कोशिश करती
अपने दायित्वों को,फिर भी दूसरी क्यों होती हैं
यि लडकियां
केवल कर्तव्य करतीऔर अधिकारों सि वंचित
क्यों होती हैंये लडकियां
जिन्दगी का बोझ सिर पर उठाये
तेज गति से चलती,फिर भी नाजुक
क्यों होती हैं,ये लडकियां
उम्र भारत तपती आग के आगे
रोटी सेंकती और भाजी छोंकती
फिर भी जलने को विवश
क्यों होती है,ये लडकियां
घर के सामानों को सजाती-संवारती
मकान को घर बनाती,फिर भीघर से वंचित
क्यों होती हैं येलडकियां
मात्र लिंग भेद के चलते
और सामाजिकता के नाते,दोयम दर्जे की हो जाती है
क्यों ये लडकियां
कभी देवी तो कभी डायन पद पाती
पर मानवी न हो पाती
क्यों ये लडकियां
भाइयों की जुठन खाती
और भाइयों के लिये आड बनती
क्यों प्यारी बहना नहीं बन पाती
ये लडकियां
सबकी आवाज सुनती ,समझती और गुनती
बहरी कही जाती है
क्यों एय्लडकियां
सबके जख्मों को भरती और मरहम लगाती
फिर भीखुद लहुलुहान
क्यों होती है ये लडकियां
सारे प्रशनों का इक ही उत्तर है
सारे सवालों का इक ही हल है
ये सब घटता है पूरे विश्व में
क्योंकि लडकियां होती ही है लडकियाको

5 comments:

  1. सही में लड़कियों में जो साहस, जज़्बा और लगन होता है उसकी कोई मिसाल नहीं है, इसके बावजूद हम उनकी अहमियत को किस नजरिए से देखते हैं यो सोचन की बात है,दुनिया बदल रही,पर सोच अभी भी वही है

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  2. ज्वलंत प्रश्न --
    सामयिक मुद्दे --

    बहुत सुन्दर

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  3. अपनी पहचान को जब तक नही जानेंगे तबतक यह सब सहना होगा ।पुरुष का पल्लू छोड्कर उसे यह अहसास कराना होगा कि नर की खान नारी है।

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  4. अपने को लडकी न मानकर इंसान मानें। अपनी शक्ति को जानें।पुरुष का पल्लू छोडें उसे अहसास कराएं-नर की खान है नारी।

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  5. सुन्दर अति सुन्दर है रचना
    पर स्थिति इतनी बदतर भी तो नहीं
    जो सहता है सहता ही रहता है
    शायद वह जीवन सहने को है रहने को नहीं

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