Sunday, April 4, 2010

बोले तो अब क्या बोलें?

कहने को अलफाज नहीं ,

शब्दों के आगार नहीं है|

कह-कह कर मन घट रीता ,

उम्मीदों की थाह नहीं है |

अपना सा सब हम कर बैठे,

सीमा अपनी खत्म हो चुकी |

दे दी अब तो अंतिम अरजी ,

भविष्य हमारा उज्जवल होगा 

सुन लेगा विश्वास बढ़ेगा ,

आस्था का संसार बनेगा|

बोल -बोल कर मौन हो चुके ,

वीणा के सब तार सो गए |

अब अपना विश्वास बढा  है ,

जो भी होगा हित में होगा |

घटा अंधेरी छंटने वाली ,

नया सवेरा आता होगा|

 

4 comments:

  1. अब अपना विश्वास बढा है ,

    जो भी होगा हित में होगा |

    घटा अंधेरी छंटने वाली ,

    नया सवेरा आता होगा
    bahut sundar panktiyaan ,achchhi rachna .

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  2. बोल -बोल कर मौन हो चुके ,
    वीणा के सब तार सो गए |
    अब अपना विश्वास बढा है ,
    जो भी होगा हित में होगा |
    घटा अंधेरी छंटने वाली ,
    नया सवेरा आता होगा|
    ....अच्छी प्रस्तुति......
    http://laddoospeaks.blogspot.com/

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  3. आशा और आत्मविश्वास से परिपूर्ण एक सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  4. यही विश्वास बनाए रखिए।

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