Thursday, July 8, 2010

आंख क्यो भर आई है

कदम -कदम पर अपनो का दंश
व्यक्ति को किस कदर तोड देता है ।
ये अपने कहे जाने वाले
क्यो हर कदम पर केवल
अपना और अपना स्वार्थ ही देखते है।
अब कैसे कहे इन्हे हम अपना
और जब अपने है ही नही तो
क्यो ना अपना जगत अलग बनाये
जहा अकेले है तो क्या
निक्रष्ट स्वार्थ की गन्ध तो नही
जब पूरी वसुधा ही कुटुम्ब है
तो क्या अपने और क्या पराये
इन मानवो से अच्छे तो
वे शुक शावक है
जिन्हे हम पशु -पक्षी की
संज्ञा से नवाजते है।
कदम -कदम पर दुतकारते है ।
और वही देते है हमारा साथ अंत तक
जैसे सत्यवादी युधिष्ठर का
साथ दिया था श्वान ने
अरे मुझे तो ये पषु-पक्षी बहुत ही भाते है
कम सेकम बच्चो का सा
निर्मल हृदय तो रखते है ।

5 comments:

  1. खूबसूरत पोस्ट

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  2. सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें

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  3. बिलकुल सत्य कहा आपने ! इंसान से तो शुक शावक ही निसंदेह अच्छे हैं क्योंकि उनका प्रेम निश्चित रूप से निस्वार्थ होता है ! वे सिर्फ विशुद्ध प्यार देना ही जानते हैं ! उनका प्रेम किसी लोभ लालच के प्रयोजन से जनित नहीं होता ! सुन्दर रचना के लिये बधाई !

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  4. यही विश्वास बनाए रखिए|

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