Tuesday, July 27, 2010

सावन तो आयो है

फिर आया मनभावन सावन
याद आ गया बाबुल का आँगन
पीपल सरिस पे झूला डल गए
माजी की बांछे अब खिल गई |
आयेगी अब बिटिया रानी
घर भर में खुशिया दौडेंगी
साबन की मल्हारे गूंजेगी |
भैया जी मगन हो गए
बहना का अब लाड मिलेगा
बचपन फिर किलकारी लेगा |
सोच सोच कर सब ही खुश थे
पर ये कैसा सावन आया
बुंदिया बरसी मेहदी रच गई
पर प्यारी लाडो न आई |
अब आया था उसका मेल
मैया बापू दुखी हो गए
देख के बिटिया का येखेल |
सावन बावन क्या होता है
झूले तो अब बीत गए है
अब सब ये है बीती बातें |
अब तो मैं हूँ क्लब में जाती
हरे रंग की साडी पहने
हरियाली तीजे मनती है|
झूला ,पटली और मल्हारे
किसको अब अच्छी लगती है |
सावन आये भादों जाए
क्या मतलब अब इन बातों का
हमने तो इतना जाना है
तीन ही ऋतुएं होती है अब
जाड़ा ,गर्मी और बरसात |

2 comments:

  1. अति सुन्दर........सावन की अच्छी अगवानी की है अपने।


    "जब जमाने को भानु खूब भून देते हैं।
    तभी राहत सभी को मानसून देते हैं॥
    लाखों तौफ़ीक़ से हासिल न हो वैसी राहत­-
    हिज्र में मीठे - वचन जो सकून देते हैं॥"

    -डॉ० डण्डा लखनवी

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  2. बहुत ही सुन्दर बीनाजी ! आधुनिक परिवेश में सावन वास्तव में एक बरसात का मौसम भर रह गया है ! इस शब्द के साथ जो भावानात्मक अर्थ पहले निहित था अब बेमानी हो गया है जब बेटी ससुराल में साल भर की कष्टप्रद प्रतीक्षा के बाद सावन के महीने में मायके जाने के लिये अधीर होती थी और माता पिता भी बेटी को कलेजे से लगाने के लिए उसके लाड लड़ाने के लिये व्याकुल हुआ करते थे !अब तो ये सब किस्से कहानी की बातें हो गयी हैं ! सुन्दर और अर्थपूर्ण रचना के लिये बधाई !

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